Aadu Ki Kheti: आडू एक रसीला, सुगंधित फल है, जो गर्मियों में खूब पसंद किया जाता है। विटामिन A, C, और फाइबर से भरपूर, ये सेहत के साथ-साथ कमाई का शानदार जरिया है। उत्तराखंड, हिमाचल जैसे पहाड़ी क्षेत्रों से लेकर उत्तर प्रदेश, बिहार के मैदानों तक इसकी खेती बढ़ रही है। वैज्ञानिक तरीके से खेती करने पर 1 एकड़ से 2.5-4 लाख रुपये सालाना मुनाफा हो सकता है। एक बार लगाने पर 10-15 साल तक फल देने वाली ये फसल छोटे-बड़े किसानों के लिए आदर्श है। लागत कम (50,000-70,000 रुपये/एकड़) और माँग ज्यादा होने से ये लाभकारी है। आइए जानें आडू की खेती कैसे करें।
मौसम और मिट्टी की जरूरत
आडू की खेती के लिए ठंडी जलवायु (10-25°C) उपयुक्त है। सर्दियों में हल्का पाला और गर्मियों में मध्यम तापमान (30-35°C) चाहिए। पहाड़ी क्षेत्र (500-2000 मीटर) आदर्श हैं, लेकिन उन्नत किस्में मैदानों में भी उगती हैं। बलुई दोमट मिट्टी (pH 5.5-6.5) सर्वोत्तम है, जिसमें जल निकासी अच्छी हो। ज्यादा पानी जड़ सड़न का कारण बन सकता है। खेत की गहरी जुताई करें, 2-3 टन गोबर खाद/एकड़ डालें। रोपण के लिए जनवरी-फरवरी या मॉनसून (जून-जुलाई) का समय चुनें। मैदानी क्षेत्रों में ड्रिप सिंचाई से पानी की बचत होती है।
बेहतरीन किस्में और चयन
भारत में आडू की कई उन्नत किस्में उपलब्ध हैं, जो जलवायु और क्षेत्र के हिसाब से चुनी जाती हैं:
शारदा: पहाड़ी क्षेत्रों में उच्च गुणवत्ता, रसीले फल।
फ्लोरिडा प्रिंस: मैदानी, गर्म क्षेत्रों के लिए उपयुक्त।
शिमला सुंदर: मध्यम ऊँचाई वाले इलाकों में लोकप्रिय।
प्रभात: जल्दी पकने वाली, छोटे मौसम के लिए।
अर्ली ग्रांडे: कम सर्दी वाले क्षेत्रों में सफल।
नर्सरी से ग्राफ्टेड या कलम वाले पौधे (150-300 रुपये/पौधा) लें। 1-2 साल पुराने, स्वस्थ पौधे चुनें। स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) से सलाह लें ताकि क्षेत्र के लिए सही किस्म मिले। उन्नत किस्में 20-30% ज्यादा पैदावार देती हैं।
रोपण और प्रबंधन
पौधे जनवरी-फरवरी में लगाएँ। 1x1x1 मीटर गड्ढे 15 दिन पहले तैयार करें, प्रत्येक में 10 किलो गोबर खाद, 1 किलो नीम खली, और मिट्टी डालें। 5×5 मीटर दूरी पर 250-300 पौधे/एकड़ लगाएँ। रोपण के बाद हल्की सिंचाई करें। पहले 2 साल हर 10-15 दिन में पानी दें, बाद में मॉनसून पर निर्भर करें। ड्रिप सिस्टम से 20% पानी बचता है। पहले साल खरपतवार हटाएँ और बाँस से सहारा दें। तीसरे साल से फल शुरू हो जाते हैं। इंटरक्रॉपिंग (मूँग, चना) से अतिरिक्त आय संभव है।
देखभाल और खाद-कीटनाशक
पैदावार बढ़ाने के लिए सही देखभाल जरूरी है। फरवरी-मार्च में पुरानी, सूखी शाखाओं की छंटाई करें ताकि पेड़ सही आकार ले। सालाना 10-15 किलो गोबर खाद, 1 किलो वर्मी कम्पोस्ट/पेड़ डालें। रासायनिक खाद: 500 ग्राम यूरिया, 1 किलो सुपर फास्फेट, 500 ग्राम पोटाश/पेड़। पत्तियाँ फीकी हों तो जिंक (0.5%) और बोरॉन (0.2%) का छिड़काव करें। कीट (एफिड्स, फल मक्खी) के लिए नीम तेल (5 मिली/लीटर) या फेरोमोन ट्रैप (4-5/एकड़) इस्तेमाल करें। फफूंद से बचाव के लिए बोर्डो मिश्रण (1%) छिड़कें। जैविक कीटनाशक प्राथमिकता दें।
तुड़ाई, बिक्री, और मुनाफा
आडू फरवरी-अप्रैल में पकते हैं, जब फल पीले-लाल और हल्के नरम हो जाएँ। कैंची से सावधानीपूर्वक तोड़ें ताकि पेड़ को नुकसान न हो। एक पेड़ से 30-40 किलो फल (80-150 रुपये/किलो) मिलते हैं, यानी 2,400-6,000 रुपये/पेड़। 250-300 पेड़ों से 7,500-12,000 किलो फल, 6-18 लाख रुपये आय। लागत (50,000-70,000 रुपये) और रखरखाव (20,000 रुपये/साल) घटाकर 2.5-4 लाख रुपये मुनाफा। शहरों, मंडियों, होटलों, और ऑनलाइन (BigBasket, Farmkart) में बेचें। प्रोसेसिंग (जैम, जूस) से दाम 20-30% बढ़ते हैं। निर्यात (मध्य पूर्व) के लिए APEDA से संपर्क करें।
सुझाव और सावधानियाँ
क्षेत्र के लिए सही किस्म चुनें; KVK या बागवानी विभाग से सलाह लें।
ज्यादा पानी से बचें; ड्रिप सिस्टम अपनाएँ।
जैविक खाद और कीटनाशक प्राथमिकता दें।
बागवानी विभाग से 40-60% सब्सिडी लें।
छोटे स्तर (0.5 एकड़) से शुरू करें।
आडू की खेती पहाड़ और मैदान में लाखों की कमाई का रास्ता है। इसकी बढ़ती माँग, निर्यात क्षमता, और सरकारी सहायता का फायदा उठाएँ, और खेती को लाभकारी बनाएँ।
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