जून में अदरक की बम्पर खेती का फॉर्मूला, किसान जरूर जानें ये तरीका!

किसान साथियों, अदरक की खेती नकदी और औषधीय फसल के रूप में आपके लिए आकर्षक बन गई है। जून का महीना अदरक की बुवाई के लिए उपयुक्त है, क्योंकि मानसून की शुरुआत नमी और अनुकूल तापमान प्रदान करती है। बेड विधि से खेती उत्पादन को बढ़ाती है, जल निकास को सुधारती है, और प्रकंद विकास को प्रोत्साहित करती है। यह तकनीक छोटे और मध्यम किसानों के लिए विशेष रूप से लाभकारी है। यह लेख जून में बेड विधि से अदरक की खेती, रोपण, देखभाल, लाभ, और चुनौतियों पर विस्तृत जानकारी देगा।

जून में अदरक की बुवाई का महत्व

जून में अदरक की बुवाई इसलिए आदर्श है, क्योंकि इस समय मानसून की शुरुआत होती है, जो 25-35 डिग्री सेल्सियस तापमान और मिट्टी में पर्याप्त नमी सुनिश्चित करती है। यह फसल के अंकुरण और प्रकंद विकास के लिए अनुकूल है। पंजाब के लुधियाना, हरियाणा के हिसार, झारखंड के राँची, और छत्तीसगढ़ के रायपुर जैसे क्षेत्रों में जून में बुवाई से फसल 8-9 महीनों में तैयार हो जाती है। बेड विधि जलभराव को रोकती है, जो अदरक की जड़ों के लिए हानिकारक है। यह मिट्टी को भुरभुरा रखती है और प्रकंदों को फैलने के लिए पर्याप्त जगह देती है। KVK के अनुसार, बेड विधि से प्रति हेक्टेयर 20-25% अधिक उत्पादन संभव है।

जलवायु और मिट्टी की आवश्यकता

अदरक की खेती के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु उपयुक्त है। 20-35 डिग्री सेल्सियस तापमान और 1000-2000 मिमी वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र सर्वोत्तम हैं। बलुई दोमट या हल्की दोमट मिट्टी (pH 5.5-7.0) जिसमें अच्छा जल निकास हो, इसके लिए आदर्श है। भारी मिट्टी या जलभराव वाली जमीन से बचें।

खेत की तैयारी के लिए 3-4 बार गहरी जुताई करें। मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए हल या पाटा चलाएँ। प्रति हेक्टेयर 15-20 टन सड़ी गोबर खाद और 1.5 टन नीम खली मिलाएँ। ICAR सलाह देता है कि मिट्टी का परीक्षण करवाकर नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, और पोटाश की कमी को पूरा करें। बेड बनाने से पहले खेत को समतल करें और सिंचाई व्यवस्था सुनिश्चित करें।

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बेड विधि से रोपण

बेड विधि अदरक की खेती को प्रभावी बनाती है। इसके लिए:

  1. बेड निर्माण: खेत में 1-1.2 मीटर चौड़े, 25-30 सेमी ऊँचे, और 3-5 मीटर लंबे बेड बनाएँ। बेड के बीच 50 सेमी की नाली रखें, ताकि अतिरिक्त पानी निकल सके।

  2. बीज चयन: स्वस्थ, रोगमुक्त, और 20-30 ग्राम वजन के प्रकंद चुनें, जिनमें 1-2 सक्रिय कलियाँ हों। प्रति हेक्टेयर 10-12 क्विंटल बीज पर्याप्त है। सुप्रभा, सुरुचि, और रियो-डी-जनेरियो जैसी उन्नत किस्में उच्च उत्पादन देती हैं।

  3. बीज उपचार: प्रकंदों को 0.3% डाइथेन M-45 (3 ग्राम/लीटर पानी) में 30 मिनट तक डुबोएँ। इसके बाद 2 मिली क्यूनालफॉस/लीटर पानी से उपचार करें और छाया में सुखाएँ।

  4. रोपण: बेड पर 40-50 सेमी की लाइन दूरी और 20-25 सेमी पौधा दूरी रखें। प्रकंदों को 5-7 सेमी गहराई पर रोपें। ऊपर से सड़ी गोबर खाद और मिट्टी की पतली परत डालें।

रोपण के बाद हल्की सिंचाई करें। जून के प्रथम या मध्य सप्ताह में बुवाई शुरू करें, ताकि मानसून का पूरा लाभ मिले।

देखभाल और उर्वरक प्रबंधन

अदरक की फसल को नियमित देखभाल की आवश्यकता होती है। रोपण के 25-30 दिन बाद अंकुरण शुरू होता है। शुरुआती दो महीनों में सप्ताह में 2-3 बार हल्की सिंचाई करें। मानसून के दौरान जलभराव से बचने के लिए नालियों को साफ रखें। ड्रिप सिस्टम पानी और उर्वरक की बचत करता है।

प्रति हेक्टेयर 100-120 किलो नाइट्रोजन, 60-80 किलो फॉस्फोरस, और 100-120 किलो पोटाश दें। नाइट्रोजन को दो हिस्सों में डालें: पहला 60 दिन बाद और दूसरा 120 दिन बाद। यूरिया, वर्मी कम्पोस्ट, और जीवामृत का उपयोग करें। खरपतवार नियंत्रण के लिए 2-3 बार निराई करें। कीटों (जैसे जड़ मक्खी) से बचाव के लिए नीम तेल (5 मिली/लीटर) और फफूंद रोग (राइजोम रॉट) से बचने के लिए कार्बेंडाजिम (0.1%) का छिड़काव करें।

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कटाई और उत्पादन का हिसाब

अदरक की फसल 8-10 महीने में तैयार होती है। जब पत्तियाँ पीली पड़कर सूखने लगें, आमतौर पर फरवरी-मार्च में, खुदाई करें। कुदाली या फावड़े से सावधानी से प्रकंद निकालें। प्रति हेक्टेयर 150-200 क्विंटल या प्रति एकड़ 60-80 क्विंटल उत्पादन संभव है। खुदाई के बाद प्रकंदों को पानी से धोएँ और छाया में 2-3 दिन सुखाएँ। ताजा अदरक को जूट के बोरे में स्टोर करें या सोंठ के लिए सुखाएँ।

लाभ और बाजारभाव क्या रहता है

अदरक की खेती कम लागत में उच्च मुनाफा देती है। प्रति एकड़ 1.5-2 लाख रुपये की लागत (बीज, खाद, मजदूरी) पर 3-5 लाख रुपये की आय संभव है। बाजार में ताजा अदरक 40-100 रुपये/किलो और सोंठ 200-300 रुपये/किलो बिकता है। सर्दियों में माँग बढ़ने से दाम 80-150 रुपये/किलो तक पहुँचते हैं।

भारत विश्व में अदरक का अग्रणी उत्पादक है, जो वैश्विक माँग का 39% हिस्सा पूरा करता है। पंजाब और हरियाणा में स्थानीय मंडियों, जबकि झारखंड और छत्तीसगढ़ में निर्यात के लिए माँग है। सोंठ, अचार, और मसाला पाउडर बनाकर अतिरिक्त आय हो सकती है। जैविक अदरक की माँग शहरी बाजारों और विदेशों में बढ़ रही है।

क्या क्या चुनौतियाँ आतीं हैं

जलभराव और राइजोम रॉट जैसी फफूंदी अदरक की फसल को नुकसान पहुँचाती है। बेड विधि और उचित जल निकास इस समस्या को कम करते हैं। बीज उपचार और जैविक कीटनाशक (नीम तेल) रोगों को नियंत्रित करते हैं। सूत्रकृमि (नेमैटोड) से बचाव के लिए नीम खली और 5-6 जुताई करें। मानसून में अनियमित बारिश उत्पादन को प्रभावित कर सकती है; ड्रिप सिस्टम और जल संचयन इसका समाधान है। KVK प्रशिक्षण और राष्ट्रीय बागवानी मिशन (NHM) की 40-50% सब्सिडी लागत कम करती है।

जून में बेड विधि से अदरक की खेती बम्पर उत्पादन और मुनाफे का शानदार अवसर प्रदान करती है। सुप्रभा और सुरुचि जैसी किस्में पंजाब, हरियाणा, झारखंड, और छत्तीसगढ़ के किसानों के लिए उपयुक्त हैं। ICAR और KVK की सलाह के साथ NHM की सब्सिडी का लाभ उठाकर किसान इसे अपनाकर आय बढ़ा सकते हैं। आज ही जून में अदरक की बुवाई शुरू करें और आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाएँ।

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  • Dharmendra

    मै धर्मेन्द्र पिछले तिन साल से पत्रकारिता कर रहा हूँ मै ugc नेट क्वालीफाई हूँ भूगोल विषय से मै एक विषय प्रवक्ता हूँ , मुझे कृषि सम्बन्धित लेख लिखने में बहुत रूचि है मैंने सम्भावना संस्थान हिमाचल प्रदेश से कोर्स किया हुआ है |

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