किसान भाइयों, सरसों रबी की प्रमुख तिलहनी फसल है, लेकिन खरीफ फसल की कटाई के बाद खेत खाली छोड़ने की बजाय अगेती सरसों की किस्में की बुवाई से कम समय में अच्छी कमाई हो सकती है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) और हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय ने ऐसी उन्नत किस्में विकसित की हैं, जो 95-115 दिन में पककर 18-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती हैं।
ये किस्में 39-40% तेल देती हैं और कम तापमान या सूखे को सहन करती हैं। 15 सितंबर से 15 अक्टूबर के बीच बुवाई के लिए ये आदर्श हैं। उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के किसान अजय पाल ने बताया कि अगेती सरसों से उनकी फसल जनवरी में तैयार हुई और बाजार में 7500 रुपये/क्विंटल का दाम मिला। सही किस्म और वैज्ञानिक तरीके से खेती मुनाफे का नया रास्ता खोलती है।
1. पन्त पियूष (Pant Piyush)
पन्त पियूष उत्तर भारत, खासकर उत्तर प्रदेश, पंजाब, और बिहार में किसानों की पसंदीदा किस्म है। यह 100-110 दिन में पककर 18-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है। इसके दानों में 39% तेल होता है, जो तेल उद्योगों के लिए फायदेमंद है। यह झुलसा और सफेद रतुआ रोगों के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है। बुवाई के लिए 4-5 किलो बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त हैं। यह उन किसानों के लिए उपयुक्त है, जिनके खेत खरीफ फसलों जैसे धान या मक्का की कटाई के बाद जल्दी खाली हो जाते हैं। पंजाब के अमृतसर में इस किस्म ने 19 क्विंटल/हेक्टेयर उपज देकर किसानों को 1.4 लाख रुपये/हेक्टेयर का मुनाफा दिलाया।
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2. वर्धन (Vardan / RGN-48)
वर्धन, जिसे आरजीएन-48 के नाम से भी जाना जाता है, उन क्षेत्रों के लिए बनाई गई है, जहाँ सितंबर के अंत तक तापमान अधिक रहता है। यह 95-105 दिन में तैयार होकर 20-22 क्विंटल/हेक्टेयर उपज देती है। सूखा और गर्मी सहने की क्षमता इसे राजस्थान और हरियाणा के लिए खास बनाती है। इसके दानों में 38-39% तेल होता है। यह किस्म फफूंदी और माहूँ जैसे कीटों के प्रति अच्छा प्रतिरोध दिखाती है। राजस्थान के बीकानेर में किसानों ने इसकी खेती से प्रति हेक्टेयर 1.5 लाख रुपये तक कमाए।
3. आरएच-0749 (RH-0749)
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय की आरएच-0749 अगेती बुवाई के लिए शानदार विकल्प है। यह 105-115 दिन में पककर 22-25 क्विंटल/हेक्टेयर उपज देती है। इसके दानों में 40% तेल होता है, जो इसे तेल उद्योगों में लोकप्रिय बनाता है। यह किस्म झुलसा और स्क्लेरोशिया रोगों के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है। हरियाणा के करनाल में इसकी खेती से किसानों ने 2.5 लाख रुपये/हेक्टेयर का मुनाफा कमाया। यह उन क्षेत्रों के लिए आदर्श है, जहाँ सिंचाई की सुविधा सीमित है।
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4. गिरीराज (Giriraj / NRC DR 2)
गिरीराज (एनआरसी डीआर-2) मध्य भारत, जैसे मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़, के लिए उपयुक्त है। यह 100-105 दिन में तैयार होकर 20-22 क्विंटल/हेक्टेयर उपज देती है। स्क्लेरोशिया और झुलसा रोगों के प्रति इसकी मजबूत प्रतिरोधकता इसे खास बनाती है। इसके दानों में 39% तेल होता है। मध्य प्रदेश के इंदौर में किसानों ने इस किस्म से 1.6 लाख रुपये/हेक्टेयर का मुनाफा कमाया। यह उन किसानों के लिए फायदेमंद है, जो रोग प्रतिरोध और स्थिर उपज चाहते हैं।
5. पीडीआर-15 (PDR-15)
पीडीआर-15 पूर्वी भारत, जैसे बिहार और पश्चिम बंगाल, के लिए बनाई गई है। यह 95-100 दिन में तैयार होकर 18-20 क्विंटल/हेक्टेयर उपज देती है। कम तापमान में भी इसका अंकुरण शानदार रहता है। इसके दानों में 38% तेल होता है। यह किस्म सफेद रतुआ और माहूँ के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है। बिहार के मुजफ्फरपुर में इसने 1.5 लाख रुपये/हेक्टेयर का मुनाफा दिया।
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खेती का वैज्ञानिक तरीका
अगेती सरसों की खेती के लिए खेत को एक गहरी जुताई के बाद दो-तीन हल्की जुताई और पाटा लगाकर नरम करें। 30 सेंटीमीटर की दूरी पर कतारों में बुवाई करें। प्रति हेक्टेयर 4-5 किलो बीज पर्याप्त हैं। खाद के लिए 80 किलो नाइट्रोजन, 40 किलो फॉस्फोरस, 40 किलो पोटाश, और 20 किलो सल्फर डालें। बीज को ट्राइकोडर्मा (5 ग्राम/किलो) या कार्बेन्डाजिम (2 ग्राम/किलो) से उपचारित करें। बुवाई के 25-30 दिन बाद हल्की सिंचाई करें। खरपतवार नियंत्रण के लिए पेंडिमेथालिन (1 किलो/हेक्टेयर) का छिड़काव करें। माहूँ से बचाव के लिए इमिडाक्लोप्रिड (0.3 मिली/लीटर) का उपयोग करें।
मुनाफे का सुनहरा मौका
इन अगेती सरसों की किस्में की बुवाई से जनवरी में फसल बेचकर 6000-8000 रुपये/क्विंटल का दाम मिल सकता है। प्रति हेक्टेयर 1.5-2 लाख रुपये का मुनाफा संभव है। लागत 30,000-40,000 रुपये/हेक्टेयर आती है। ये किस्में तेल और खल उद्योगों में लोकप्रिय हैं। किसान भाई नजदीकी ICAR केंद्र या कृषि विश्वविद्यालय से प्रमाणित बीज और सलाह लें, और अगेती सरसों से खेती को मुनाफेदार बनाएँ।
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