Ambika and Arunika Mango Farming: आम को फलों का राजा कहा जाता है, लेकिन इसके बड़े पेड़ और हर साल फल न देना अक्सर किसानों के लिए परेशानी का कारण बनता है। अब इस समस्या का हल मिल चुका है। केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, लखनऊ के वैज्ञानिकों ने 30 साल की मेहनत से अंबिका और अरूणिका जैसी बौनी किस्में विकसित की हैं।
ये छोटे आकार के पेड़ हर साल फल देते हैं और कम जगह में भी अच्छी उपज दे सकते हैं। चाहे बड़ा खेत हो या घर का आँगन, ये किस्में हर जगह फिट बैठती हैं। इस लेख में अंबिका और अरूणिका की खासियत, खेती का तरीका और फायदों के बारे में सरल भाषा में बताया जा रहा है, ताकि गाँव के किसान इन्हें आसानी से अपना सकें।
अंबिका और अरूणिका की खास विशेषताएँ
अंबिका और अरूणिका आम की बौनी किस्में हैं, जो छोटे कद और हर साल फल देने की खूबी के लिए जानी जाती हैं। अरूणिका अपने लाल रंग के आकर्षक फलों के कारण बाजार में खूब पसंद की जाती है और यह आम्रपाली किस्म से 40 प्रतिशत छोटी है। आम्रपाली भी अपने छोटे आकार के लिए मशहूर थी, लेकिन इसके पेड़ समय के साथ बड़े हो जाते थे और फलन में 30 साल तक लग जाते थे। दूसरी ओर, अंबिका और अरूणिका हर साल फल देती हैं। इनकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि फल तोड़ने के बाद पेड़ पर नई टहनियाँ निकल आती हैं, जिनमें अगले मौसम में फिर से फूल और फल लगते हैं। चौसा, लंगड़ा या दशहरी जैसी पारंपरिक किस्में हर दो साल में एक बार फल देती हैं, जिससे उनके पेड़ बड़े और फैलावदार हो जाते हैं।
सघन बागवानी के लिए आदर्श
सघन बागवानी का मतलब है कम जगह में ज्यादा पौधे लगाकर अधिक पैदावार लेना। अंबिका और अरूणिका इस तरह की खेती के लिए सबसे उपयुक्त हैं। इन पौधों को 5×5 मीटर की दूरी पर लगाया जा सकता है, जिससे एक एकड़ में 160 पेड़ आसानी से लगाए जा सकते हैं। पारंपरिक किस्मों के लिए 10-12 मीटर की दूरी चाहिए होती है, जिससे एक एकड़ में सिर्फ 30-40 पेड़ ही लग पाते हैं। इन बौनी किस्मों के पेड़ छोटे रहते हैं, जिससे फल तोड़ना और पेड़ों की देखभाल करना आसान हो जाता है। लागत भी कम आती है। ये किस्में न सिर्फ बड़े खेतों के लिए, बल्कि छोटे खेतों और घर के आँगन के लिए भी बेहतरीन हैं।
हर साल फलन का रहस्य
अंबिका और अरूणिका की सबसे बड़ी खूबी है इनका हर साल फल देना। यह गुण इन्हें दक्षिण भारतीय किस्म नीलम से मिला है, जो आम्रपाली की मूल किस्म है। नीलम अपने छोटे पौधों के लिए उत्तर भारत में प्रसिद्ध थी। अरूणिका ने आम्रपाली से बौनेपन और नियमित फलन का गुण लिया है। फल तोड़ने के बाद ये पेड़ नई टहनियाँ निकालते हैं, जिनमें अगले मौसम में फूल और फल आते हैं। चौसा या लंगड़ा जैसी किस्मों में ऐसा नहीं होता, उनके फल दो साल में एक बार आते हैं, जिससे पेड़ बड़े हो जाते हैं। अंबिका और अरूणिका के छोटे पेड़ न सिर्फ खेती को आसान बनाते हैं, बल्कि हर साल मुनाफा भी सुनिश्चित करते हैं।
खेती का सरल तरीका
अंबिका और अरूणिका की खेती शुरू करना बेहद आसान है। बुवाई के लिए फरवरी-मार्च का समय सबसे अच्छा है। खेत को मिट्टी पलटने वाले हल से जोतकर तैयार करें और प्रति एकड़ 5-6 टन गोबर की सड़ी खाद डालें। पौधों को 5×5 मीटर की दूरी पर लगाएँ। बीज या ग्राफ्ट को 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम से उपचारित करें, ताकि फंगस का खतरा न रहे। बुवाई के बाद पहली सिंचाई करें, फिर हर 15-20 दिन में हल्का पानी दें। ड्रिप सिस्टम से सिंचाई करना सबसे अच्छा है। फूल आने पर 2 ग्राम पोटेशियम नाइट्रेट प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। यह छिड़काव फल गिरने से रोकता है। ये सारे उपाय सरल और किफायती हैं, जिन्हें गाँव के किसान आसानी से अपना सकते हैं।
उपज और मुनाफा
इन बौनी किस्मों का सबसे बड़ा फायदा है कम जगह में अधिक उपज। एक पेड़ से 20 किलोग्राम तक आम प्राप्त हो सकते हैं। यदि एक एकड़ में 160 पेड़ लगाए जाएँ, तो 3000-3200 किलोग्राम फल मिल सकता है। बाजार में आम का भाव 30-50 रुपये प्रति किलोग्राम रहता है, जिससे 1 से 1.5 लाख रुपये की कमाई हो सकती है। खेती की लागत 20-25 हजार रुपये के आसपास आती है। छोटे पेड़ होने की वजह से छँटाई और फल तोड़ने में मजदूरी का खर्च भी कम लगता है। अरूणिका के लाल फल और अंबिका की मिठास बाजार में इनकी अलग पहचान बनाते हैं, जिससे अच्छा दाम मिलता है।
घर और बगीचे के लिए भी उपयुक्त
अंबिका और अरूणिका सिर्फ बड़े खेतों तक सीमित नहीं हैं। इन्हें घर के आँगन, छत या छोटे बगीचे में भी लगाया जा सकता है। एक पौधा 2-3 साल में फल देना शुरू कर देता है और हर साल 20 किलोग्राम तक आम दे सकता है। छोटे आकार की वजह से ये पेड़ बगीचे की सुंदरता भी बढ़ाते हैं। गाँव के छोटे किसान या घरेलू खेती करने वाले लोग इन किस्मों को अपनाकर न सिर्फ अपने लिए ताजा आम उगा सकते हैं, बल्कि बाजार में बेचकर अतिरिक्त आय भी कमा सकते हैं।
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