Arandi Ki Kheti: किसान भाइयों, गर्मी का मौसम कई फसलों के लिए चुनौतीपूर्ण होता है, लेकिन अरंडी की खेती सूखे और गर्मी में भी किसानों के लिए वरदान है। मई और जून इसकी बुवाई का सबसे अच्छा समय है। यह फसल कम पानी, कम देखभाल, और कम लागत में उच्च मुनाफा देती है। अरंडी के बीजों से निकलने वाला कैस्टर ऑयल आयुर्वेद, तेल उद्योग, सौंदर्य प्रसाधन, और बायोफ्यूल सेक्टर में उपयोग होता है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा अरंडी तेल उत्पादक देश है, और इसकी मांग देश-विदेश में बढ़ रही है। यह लेख अरंडी की वैज्ञानिक खेती, लागत, मुनाफा, और सरकारी सहायता की पूरी जानकारी देगा, ताकि मई 2025 में किसान अपने खाली खेतों को मुनाफे का खजाना बना सकें।
सूखे में सोना, अरंडी की खासियत
अरंडी एक बहुउपयोगी औषधीय और औद्योगिक फसल है। इसके बीजों से निकलने वाला कैस्टर ऑयल त्वचा, बालों, और पेट के लिए लाभकारी है। औद्योगिक रूप से इसका उपयोग ग्रेस, पेंट, साबुन, प्लास्टिक, और बायोफ्यूल में होता है। अरंडी का पौधा सूखा सहनशील है और कम उर्वर मिट्टी में भी उगता है। यह 20-35 डिग्री सेल्सियस तापमान में फलता-फूलता है। फसल 5-6 महीने में तैयार हो जाती है, और एक बार बुवाई के बाद कई सालों तक उत्पादन दे सकती है। भारत में गुजरात, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, और मध्य प्रदेश अरंडी उत्पादन में अग्रणी हैं। वैश्विक बाजार में भारत का 60% हिस्सा है, जिससे निर्यात से अच्छी कमाई होती है।
जलवायु और भूमि
अरंडी की खेती के लिए गर्म और शुष्क जलवायु आदर्श है। इसे हल्की दोमट, बलुई दोमट, या लाल मिट्टी (pH 6-7.5) में बोया जा सकता है। जल निकासी जरूरी है, क्योंकि जलभराव से जड़ें सड़ सकती हैं। खेत की तैयारी के लिए दो बार जुताई करें—पहली गहरी जुताई हल से और दूसरी रोटावेटर से, ताकि मिट्टी भुरभुरी हो। खरपतवार हटाने के लिए पेंडिमेथालिन (1 लीटर/हेक्टेयर) का छिड़काव करें। मई के अंत से जून की शुरुआत तक बुवाई करें, क्योंकि इस समय तापमान और नमी बुवाई के लिए उपयुक्त होती है।
बुवाई का तरीका, किस्में और विधि
अरंडी की बुवाई के लिए ICAR और KVK द्वारा अनुमोदित उन्नत किस्में चुनें। लोकप्रिय किस्में हैं: GAUCH-4, Jyoti, DCH-177 (हाइब्रिड), और TMV-5। हाइब्रिड किस्में 25-30 क्विंटल/हेक्टेयर तक उपज देती हैं। प्रति हेक्टेयर 10-12 किलो बीज पर्याप्त हैं। बीज को बोने से पहले थाइरम (3 ग्राम/किलो बीज) से उपचारित करें, ताकि फफूंद रोग न हों। बुवाई कतारों में करें, जहां पंक्तियों के बीच 60-90 सेमी और पौधों के बीच 45-60 सेमी दूरी हो। बीज को 5-6 सेमी गहराई में बोएं। बुवाई के बाद हल्की सिंचाई करें, ताकि अंकुरण तेज हो।
देखभाल, खाद और सिंचाई
अरंडी को कम पानी और उर्वरक चाहिए। खेत की तैयारी में 15-20 टन/हेक्टेयर गोबर की खाद या वर्मीकम्पोस्ट डालें। रासायनिक उर्वरक के लिए 60 किलो नाइट्रोजन, 40 किलो फॉस्फोरस, और 20 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर दें। नाइट्रोजन को दो हिस्सों में डालें—आधा बुवाई के समय और आधा 30 दिन बाद। बुवाई के बाद पहली सिंचाई तुरंत करें। इसके बाद मौसम के आधार पर 3-4 सिंचाई (20-25 दिन के अंतराल पर) पर्याप्त हैं। ड्रिप सिंचाई से पानी की बचत होती है। खरपतवार नियंत्रण के लिए बुवाई के 20-30 दिन बाद निराई-गुड़ाई करें।
कीट और रोग नियंत्रण कैसे करें
अरंडी में कुछ कीट और रोग लग सकते हैं, जैसे सफेद मक्खी, शूट बोरर, टिक्का रोग, और जड़ सड़न। सफेद मक्खी और शूट बोरर से बचाव के लिए नीम तेल (5 मिली/लीटर पानी) का छिड़काव करें। टिक्का रोग और जड़ सड़न के लिए मैनकोजेब (2 ग्राम/लीटर) या कार्बेन्डाजिम (1 ग्राम/लीटर) का उपयोग करें। जैविक खेती के लिए ट्राइकोडर्मा (5 किलो/हेक्टेयर) मिट्टी में मिलाएं। रोग या कीट की स्थिति गंभीर हो तो नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) से सलाह लें। नियमित जांच और साफ-सफाई से कीट-रोग नियंत्रित रहते हैं।
तुड़ाई और उत्पादन का समय
अरंडी की फसल 5-6 महीने (150-180 दिन) में तैयार होती है। जब फलियों का रंग हल्का भूरा हो और वे सूखने लगें, तो तुड़ाई करें। फलियों को हाथ से तोड़कर धूप में सुखाएं, फिर बीज निकालें। एक हेक्टेयर से औसतन 15-20 क्विंटल बीज मिलते हैं। हाइब्रिड किस्मों (जैसे DCH-177) से 25-30 क्विंटल तक उपज संभव है। बीजों को साफ करके हवादार जगह में स्टोर करें। अच्छी पैदावार के लिए समय पर तुड़ाई और सुखाना जरूरी है, ताकि बीजों की गुणवत्ता बनी रहे।
मुनाफे का खजाना, बाजार और कमाई
अरंडी के बीजों की बाजार कीमत 60-80 रुपये/किलो है। एक हेक्टेयर से 15-20 क्विंटल बीज की उपज से 90,000-1.6 लाख रुपये की आय हो सकती है। हाइब्रिड किस्मों से यह आय 1.5-2.4 लाख रुपये तक हो सकती है। लागत (बीज, खाद, श्रम, सिंचाई) 40,000-50,000 रुपये/हेक्टेयर है। शुद्ध मुनाफा 50,000-1.9 लाख रुपये तक हो सकता है। तेल उद्योग, दवा कंपनियां, और बायोफ्यूल सेक्टर सीधे किसानों से खरीद करते हैं। eNAM, स्थानीय मंडियों, या ऑनलाइन प्लेटफॉर्म (Amazon, Flipkart) पर जैविक अरंडी बीज बेचकर 20% अधिक कीमत पाएं। अपने ब्लॉग krishitak.com पर अरंडी की खेती, इसके उपयोग, और बाजार की जानकारी शेयर करें।
सरकारी सहारा, सब्सिडी और प्रशिक्षण
गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, और महाराष्ट्र सरकारें अरंडी की खेती के लिए 30-50% सब्सिडी देती हैं, जिसमें बीज, ड्रिप सिंचाई, और यंत्र शामिल हैं। राष्ट्रीय तिलहन मिशन और KVK प्रशिक्षण, तकनीकी सहायता, और बाजार लिंकेज प्रदान करते हैं। किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) से 1.6 लाख रुपये तक ब्याजमुक्त लोन लें। नजदीकी कृषि विभाग या KVK से संपर्क करें। ICAR की वेबसाइट (icar.gov.in) पर सब्सिडी और किस्मों की जानकारी उपलब्ध है।
अरंडी की खेती में चुनौतियां जैसे कीट-रोग, अनियमित बारिश, और बाजार जानकारी की कमी हो सकती हैं। इनसे निपटने के लिए जैविक खेती अपनाएं, ड्रिप सिंचाई उपयोग करें, जैविक प्रमाणन (NPOP) लेने से निर्यात में 30% अधिक कीमत मिलती है। KVK से नियमित सलाह लें।
मई में मुनाफे की शुरुआत
मई में अरंडी की खेती शुरू करना किसानों के लिए सुनहरा अवसर है। यह फसल कम पानी, कम लागत, और कम मेहनत में लाखों की कमाई देती है। सूखा सहनशील और बहुउपयोगी, अरंडी भारत की औद्योगिक और औषधीय मांग को पूरा करती है। वैज्ञानिक विधि, जैविक खेती, और सरकारी सहायता से किसान अपने खेतों को मुनाफे का खजाना बना सकते हैं। आज ही ICAR-अनुमोदित बीज लें, KVK से सब्सिडी की जानकारी लें, और अरंडी की खेती शुरू करें। यह आपके खेत और परिवार की समृद्धि का आधार बनेगी।
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