अरहर की टॉप 5 जल्दी पकने वाली वैरायटी, जून-जुलाई में बुवाई का है सुनहरा मौका

Arhar Top 5 Varieties in 2025: अरहर (तुअर) की खेती हमेशा से किसानों के लिए लाभकारी रही है। हालांकि, बाजार में इसके दामों में उतार-चढ़ाव की चुनौती रहती है, लेकिन कम अवधि वाली किस्मों का चयन कर किसान इस जोखिम को कम कर सकते हैं। ये किस्में न केवल जल्दी पकती हैं, बल्कि रबी फसलों की समय पर बुवाई के लिए भी खेत को जल्दी खाली कर देती हैं। खरीफ 2025 में अरहर की खेती की योजना बना रहे किसानों के लिए कृषि विशेषज्ञ पाँच उन्नत कम अवधि वाली किस्मों की सिफारिश कर रहे हैं। इन किस्मों की उच्च पैदावार और रोग प्रतिरोधक क्षमता किसानों को बेहतर मुनाफा दिला सकती है।

JKM 189: पछेती और उच्च उपज वाली किस्म

JKM 189 अरहर की एक खास किस्म है, जो देर से बुवाई के लिए उपयुक्त है। इसकी फलियाँ हरी और काली धारियों वाली होती हैं, और दाने बड़े, लाल-भूरे रंग के होते हैं। यह किस्म 130-140 दिनों में पककर तैयार हो जाती है और प्रति हेक्टेयर 20-22 क्विंटल की औसत उपज देती है। इसकी जल्दी पकने की विशेषता इसे किसानों के बीच लोकप्रिय बनाती है। यह उत्तर भारत के मैदानी इलाकों, खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार, के लिए अनुकूल है।

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पूसा अगेती: कम समय में तैयार

पूसा अगेती एक अगेती किस्म है, जो 120-130 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी फसल की लंबाई कम होती है, और दाने मोटे व आकर्षक होते हैं। यह किस्म प्रति हेक्टेयर 10 क्विंटल तक उपज देती है। कम अवधि में पकने के कारण यह किसानों की पसंद बनी हुई है। यह पंजाब, हरियाणा, और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए विशेष रूप से उपयुक्त है। इसकी खेती से किसान रबी फसलों की बुवाई के लिए खेत को जल्दी तैयार कर सकते हैं।

ICPL 87: मोटी फलियों वाली किस्म

ICPL 87 एक अन्य कम अवधि वाली किस्म है, जो 130-150 दिनों में पकती है। इसकी फलियाँ मोटी, लंबी, और गुच्छों में आती हैं, जो एक साथ पकती हैं। यह प्रति हेक्टेयर 15-20 क्विंटल की उपज देती है। इसकी कम ऊँचाई और एकसमान पकने की विशेषता इसे कटाई के लिए सुविधाजनक बनाती है। यह किस्म उत्तर-पश्चिमी भारत, विशेषकर राजस्थान और हरियाणा, के लिए अनुकूल है।

पूसा 992: चमकदार दानों की किस्म

पूसा 992 को 2005 में विकसित किया गया था और यह जल्दी पकने वाली किस्म है। इसके भूरे, गोल, और चमकदार दाने बाजार में खूब पसंद किए जाते हैं। यह 120-140 दिनों में पककर तैयार हो जाती है और प्रति एकड़ 6 क्विंटल (लगभग 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर) तक उपज देती है। यह पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, और राजस्थान में व्यापक रूप से उगाई जाती है। इसकी खेती से किसान कम समय में अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।

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IPA 203: रोग प्रतिरोधी किस्म

IPA 203 की सबसे बड़ी खासियत है इसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता। यह किस्म कई बीमारियों से मुक्त रहती है, जिससे फसल की सुरक्षा आसान हो जाती है। यह 130-140 दिनों में पकती है और प्रति हेक्टेयर 18-20 क्विंटल की उपज देती है। जून में इसकी बुवाई करने से अधिक पैदावार मिलती है। यह उत्तर प्रदेश, बिहार, और मध्य प्रदेश के किसानों के लिए उपयुक्त है।

बुवाई का सही समय और तरीका

अरहर की बुवाई के लिए खेत की गहरी जुताई करें, फिर 2-3 बार कल्टीवेटर से जुताई कर पाटा चलाएँ। खेत को समतल रखें और जल निकासी का ध्यान दें, क्योंकि अरहर की फसल में जलभराव से मुरझाने का खतरा रहता है। कम अवधि वाली किस्मों की बुवाई 15 जून से 30 जून 2025 तक पूरी कर लें, ताकि रबी फसलों की बुवाई समय पर हो सके। जलभराव वाले खेतों में मेड़ों पर बुवाई करें। अरहर को कम पानी की जरूरत होती है, इसलिए सिंचाई की व्यवस्था सीमित रखें। बीज उपचार के लिए 2 ग्राम थीरम और 1 ग्राम कार्बेन्डाज़िम प्रति किलो बीज का उपयोग करें ताकि कीट और रोगों से बचाव हो।

किसानों के लिए सलाह

कृषि विशेषज्ञ सुझाव देते हैं कि अरहर की कम अवधि वाली किस्में चुनकर किसान बाजार के उतार-चढ़ाव से बच सकते हैं। इन किस्मों की बुवाई से न केवल समय की बचत होती है, बल्कि रबी फसलों के लिए खेत जल्दी तैयार हो जाता है। मिट्टी की जाँच करवाएँ और उर्वरकों का संतुलित उपयोग करें। प्रति हेक्टेयर 50 किलो डीएपी और 5 गाड़ी गोबर खाद डालने से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है। समय पर निराई-गुड़ाई और कीट-रोग प्रबंधन से फसल स्वस्थ रहेगी।

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  • Shashikant

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