Arugula Ki Kheti: किसान भाइयों, जैविक और पोषक खाद्य पदार्थों की मांग तेजी से बढ़ रही है, खासकर मेट्रो शहरों और शहरी बाजारों में। ऐसे में विदेशी सब्जियां, जो स्वास्थ्यवर्धक और स्वादिष्ट हों, किसानों के लिए नया अवसर बन रही हैं। अरुगुला, जिसे रॉकेट लीफ या सलाद पत्ता भी कहते हैं, एक ऐसी पत्तेदार सब्जी है जो भारत में तेजी से लोकप्रिय हो रही है। इसका तीखा, सरसों जैसा स्वाद सलाद, पिज्जा, सैंडविच, और पास्ता में स्वाद बढ़ाता है। होटल, रेस्तरां, और ऑनलाइन ऑर्गेनिक स्टोर में इसकी भारी मांग है। अरुगुला की खेती छोटे और सीमांत किसानों के लिए कम लागत में मोटा मुनाफा देने का सुनहरा मौका है।
अरुगुला क्या है
अरुगुला, जिसका वैज्ञानिक नाम एरुका सटाइवा है, एक पत्तेदार हरी सब्जी है जो क्रूसिफेरस परिवार (सरसों, गोभी) से संबंधित है। इसका स्वाद हल्का तीखा और काली मिर्च जैसा होता है, जो इसे सलाद और गार्निश के लिए आदर्श बनाता है। अरुगुला में आयरन, फाइबर, विटामिन C, विटामिन K, और एंटीऑक्सीडेंट प्रचुर मात्रा में होते हैं, जो इसे स्वास्थ्यवर्धक बनाते हैं। भारत में इसे मुख्य रूप से मेट्रो शहरों (दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु) और पर्यटक स्थलों (हिमाचल, गोवा) में मांग है।
इसकी खेती का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह 30-40 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। एक बार बोने पर 3-4 बार कटाई संभव है, जिससे कम समय में अधिक उत्पादन मिलता है। हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में किसानों ने अरुगुला से प्रति एकड़ 3-4 लाख रुपये की कमाई की है।
जलवायु और मिट्टी
अरुगुला ठंडी और शुष्क जलवायु में अच्छी तरह उगती है। भारत में अक्टूबर से फरवरी तक का समय इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त है। यह 15-25 डिग्री सेल्सियस तापमान को पसंद करती है और अधिक गर्मी (30 डिग्री से ऊपर) सहन नहीं कर पाती। उत्तर भारत में सितंबर अंत से नवंबर तक और दक्षिण भारत में अगस्त से जनवरी तक बुवाई की जा सकती है।
मिट्टी के लिए दोमट या बलुई दोमट मिट्टी आदर्श है, जिसका pH 6.0 से 7.5 के बीच हो। मिट्टी में अच्छी जल निकासी जरूरी है, क्योंकि पानी का जमाव पौधों को नुकसान पहुंचाता है। खेत तैयार करने से पहले मिट्टी परीक्षण करवाएं और प्रति हेक्टेयर 50 टन गोबर खाद या वर्मीकम्पोस्ट मिलाएं। जैविक खेती से अरुगुला की गुणवत्ता और बाजार मूल्य बढ़ता है।

बुवाई और रोपण का तरीका
अरुगुला की बुवाई सीधे खेत में या नर्सरी में की जा सकती है। सीधी बुवाई के लिए खेत को अच्छी तरह जुताई करें और कतारें बनाएं। पंक्तियों के बीच 20-25 सेमी और पौधों के बीच 10 सेमी की दूरी रखें। प्रति एकड़ 1-1.5 किलोग्राम बीज पर्याप्त हैं। ICAR या KVK प्रमाणित बीज चुनें, जैसे ‘Astro’ या ‘Sylvetta’ किस्में, जो भारत में लोकप्रिय हैं।
नर्सरी में बुवाई के लिए बीजों को 0.5 सेमी गहराई पर बोएं और 15-20 दिनों बाद पौधों को खेत में रोपें। बुवाई से पहले बीजों को जैविक घोल (नीम तेल या गोमूत्र) में भिगोने से अंकुरण बेहतर होता है। बुवाई के बाद हल्की सिंचाई करें ताकि मिट्टी में नमी बनी रहे।
सिंचाई और देखरेख की जरुरत
अरुगुला को अधिक पानी की जरूरत नहीं होती, लेकिन नियमित और हल्की सिंचाई जरूरी है। बुवाई के तुरंत बाद पहली सिंचाई करें, फिर हर 7-10 दिन में मिट्टी की नमी के आधार पर पानी दें। ड्रिप इरिगेशन पानी की बचत करता है और पौधों को समान नमी देता है। अधिक पानी से जड़ सड़न की समस्या हो सकती है।
खरपतवार नियंत्रण के लिए बुवाई के 15-20 दिन बाद पहली निराई-गुड़ाई करें। जैविक कीटनाशक, जैसे नीम तेल या बीटी (बैसिलस थुरिंजिएंसिस), एफिड्स और लीफ माइनर जैसे कीटों से बचाते हैं। रासायनिक कीटनाशकों से बचें, क्योंकि अरुगुला जैविक सलाद के लिए पसंद की जाती है। पौधों को हवादार रखने के लिए घने हिस्सों को पतला करें।
उत्पादन और कटाई कब करें
अरुगुला की कटाई बीज बोने के 30-40 दिन बाद शुरू हो सकती है, जब पत्ते 10-15 सेमी लंबे हों। कोमल और ताजा पत्तों को सुबह जल्दी हाथों से या किचन शीयर से काटें। एक पौधे से 3-4 बार कटाई संभव है, अगर हर कटाई के बाद हल्की खाद और सिंचाई दी जाए। प्रति एकड़ 1.5 से 2 टन पत्तियां निकलती हैं, जो मौसम और देखभाल पर निर्भर करता है।
कटाई के बाद पत्तों को तुरंत ठंडे पानी में धोएं और छायादार जगह में सुखाएं। गुणवत्ता बनाए रखने के लिए कटाई के 2-3 घंटे के भीतर पैकिंग करें। छोटे किसान ग्रीनहाउस या पॉलीहाउस में खेती कर साल भर उत्पादन ले सकते हैं।
भंडारण और विपणन कैसे करें
अरुगुला जल्दी खराब होने वाली सब्जी है, इसलिए भंडारण में सावधानी बरतें। कटाई के बाद पत्तों को 0-4 डिग्री सेल्सियस पर कोल्ड स्टोरेज में रखें। प्लास्टिक क्रेट्स या छिद्रित पॉली बैग में पैक करें, ताकि हवा का प्रवाह बना रहे। सामान्य तापमान पर यह 4-5 दिन और कोल्ड स्टोरेज में 10-12 दिन तक ताजा रहता है।
विपणन के लिए मेट्रो शहरों के होटल, रेस्तरां, सुपरमार्केट, और ऑनलाइन ऑर्गेनिक स्टोर (BigBasket, OrganicBazar) को टारगेट करें। स्थानीय बाजारों और डोर-टू-डोर बिक्री भी प्रभावी है। 100-250 ग्राम की छोटी पैकिंग में बेचने से उपभोक्ताओं को आकर्षित करना आसान होता है। बाजार में ताजा अरुगुला 150-300 रुपये प्रति किलो बिकता है, और जैविक अरुगुला 400 रुपये तक पहुंच सकता है।
लागत और मुनाफा का हिसाब
अरुगुला की खेती (Arugula Ki Kheti) में प्रति एकड़ लागत 15,000-20,000 रुपये आती है। इसमें बीज (2,000-3,000 रुपये), जैविक खाद (5,000-7,000 रुपये), मजदूरी (5,000-6,000 रुपये), और सिंचाई (2,000-3,000 रुपये) शामिल हैं। ड्रिप इरिगेशन और पॉलीहाउस का उपयोग लागत बढ़ा सकता है, लेकिन उत्पादन और गुणवत्ता में सुधार करता है।
एक एकड़ से 1.5-2 टन पत्तियां निकलती हैं। अगर औसतन 200 रुपये प्रति किलो भी मिले, तो 3-4 लाख रुपये की आय संभव है। शुद्ध मुनाफा 2.5-3.5 लाख रुपये तक हो सकता है। हिमाचल के शिमला में किसानों ने जैविक अरुगुला को होटलों और निर्यातकों को बेचकर 5 लाख रुपये प्रति एकड़ कमाए।
सरकारी सहायता और प्रशिक्षण
सरकार अरुगुला जैसी विदेशी सब्जियों की खेती को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चला रही है। राष्ट्रीय बागवानी मिशन (NHM) और PMKSY ड्रिप इरिगेशन और पॉलीहाउस के लिए 50% सब्सिडी देते हैं। किसान उत्पादक संगठन (FPO) छोटे किसानों को बाजार और प्रोसेसिंग इकाइयों से जोड़ते हैं। ऑनलाइन मार्केटिंग प्लेटफॉर्म बिक्री को आसान बनाते हैं।
KVK और ICAR जैविक खेती, कीट प्रबंधन, और विपणन पर मुफ्त प्रशिक्षण देते हैं। NABARD से 2-5 लाख रुपये का लोन और किसान क्रेडिट कार्ड से ब्याज-मुक्त ऋण उपलब्ध है। pib.gov.in पर योजनाओं की जानकारी मिलती है। हिमाचल और कर्नाटक में KVK ने 500 से अधिक किसानों को अरुगुला खेती का प्रशिक्षण दिया है।
विशेष सुझाव
जैविक खेती पर जोर दें, क्योंकि शहरी उपभोक्ता और निर्यातक जैविक अरुगुला को प्राथमिकता देते हैं। छोटी पैकिंग (100-250 ग्राम) में बेचने से बिक्री बढ़ती है। स्थानीय रेस्तरां और कैफे से अनुबंध करें। ग्रीनहाउस या हाइड्रोपोनिक्स में खेती कर साल भर उत्पादन लें। सोशल मीडिया और ऑनलाइन स्टोर (OrganicBazar, Farmizen) के जरिए डायरेक्ट-टू-कंज्यूमर मॉडल अपनाएं।
अरुगुला की खेती 2025 में भारत के छोटे किसानों के लिए कम लागत और उच्च मुनाफे का अवसर है। इसकी तेज कटाई, कम रखरखाव, और शहरी बाजारों में मांग इसे आदर्श बनाती है। सही जानकारी, जैविक खेती, और बाजार रणनीति के साथ किसान प्रति एकड़ 3-5 लाख रुपये कमा सकते हैं। NHM, KVK, और का लाभ उठाएं। अरुगुला की खेती आपके खेत और भविष्य को हरा-भरा बनाएगी।
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