बहुत हुआ व्‍हाइट राइस, ब्राउन राइस, अब खाइए बैंगनी चावल! असम में तैयार कमाल की किस्‍म

Assam Purple Rice Labanya: किसान भाइयों, असम कृषि विश्वविद्यालय (AAU) ने खेती और खानपान में एक नया रंग भर दिया है। विश्वविद्यालय ने ‘लबन्या’ नाम की एक अनोखी बैंगनी चावल की किस्म विकसित की है, जो न सिर्फ देखने में सुंदर है, बल्कि पोषण और उपज के मामले में भी कमाल की है। गाँवों में देखा गया है कि किसान ऐसी फसलों की तलाश में रहते हैं, जो कम मेहनत में अच्छा मुनाफा दें।

यह चावल किसानों के लिए एक सुनहरा अवसर है, क्योंकि इसकी बाज़ार में मांग तेजी से बढ़ रही है। विश्वविद्यालय के पीआरओ रंजीत कुमार हाउट ने बताया कि ‘लबन्या’ को पादप किस्म एवं कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण (PPV&FRA) के तहत रजिस्टर कर लिया गया है। गाँवों में अनुभव है कि ऐसी नई किस्में न सिर्फ खेती को आधुनिक बनाती हैं, बल्कि किसानों की आय भी बढ़ाती हैं।

पोषण और स्वाद का अनोखा मेल

‘लबन्या’ बैंगनी चावल पारंपरिक काले चावल के पोषण गुणों को अपने में समेटे हुए है। यह रोजमर्रा के भोजन के लिए उपयुक्त है और व्यावसायिक खेती के लिए भी आदर्श है। रंजीत कुमार हाउट के अनुसार, यह चावल एंटीऑक्सीडेंट्स, फ्लेवोनोइड्स, जरूरी अमीनो एसिड, और खनिजों से भरपूर है। गाँवों में देखा गया है कि लोग अब पौष्टिक और स्वस्थ भोजन की ओर बढ़ रहे हैं। इस चावल का ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम है, जो मधुमेह रोगियों के लिए फायदेमंद है। इसके दाने सुगंधित हैं और जल्दी पकते हैं, जिससे रसोई में समय की बचत होती है। गाँवों में अनुभव है कि इसकी बनावट चिपचिपी नहीं होती, जो इसे पारंपरिक काले चावल से बेहतर बनाती है।

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ज्यादा उपज, ज्यादा मुनाफा

‘लबन्या’ की खेती किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है। यह चावल प्रति हेक्टेयर 4.5 से 5 टन की उपज देता है, जबकि पारंपरिक काले चावल की उपज 1.5 से 2 टन प्रति हेक्टेयर होती है। गाँवों में देखा गया है कि ज्यादा उपज वाली फसलें किसानों की आय को कई गुना बढ़ा देती हैं। इस चावल में 60 प्रतिशत हेड राइस रिकवरी और 18 प्रतिशत एमाइलोज की मात्रा होती है। इससे इसकी मिलिंग क्वालिटी बेहतर होती है और खाने में स्वाद भी बढ़िया रहता है। यह बेकरी उत्पादों, पारंपरिक व्यंजनों, और ग्लूटेन-फ्री आटे जैसे वैल्यू-एडेड उत्पादों के लिए भी उपयुक्त है। गाँवों में अनुभव है कि ऐसी फसलें बाज़ार में अच्छा दाम दिलाती हैं।

‘लबन्या’ की बाज़ार में धूम

‘लबन्या’ ने बाज़ार में अपनी मजबूत जगह बना ली है। रंजीत कुमार हाउट ने बताया कि इसे ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर बेचा जा रहा है और एक स्थानीय व्यवसायी को इसके व्यावसायिक अधिकार दिए गए हैं। यह चावल अब तक 18 से ज्यादा राज्यों में बिक चुका है। गाँवों में देखा गया है कि 30 प्रतिशत से ज्यादा ग्राहक इसे बार-बार खरीद रहे हैं, जो इसकी गुणवत्ता और स्वाद की लोकप्रियता को दिखाता है। विश्वविद्यालय ने भारत सरकार की औपचारिक अधिसूचना से पहले ही इसे व्यावसायीकरण के लिए लॉन्च कर दिया था, ताकि इसकी बाज़ार क्षमता का पूरा फायदा उठाया जा सके। गाँवों में अनुभव है कि ऐसी पहलें किसानों और उपभोक्ताओं दोनों के लिए फायदेमंद होती हैं।

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18 राज्यों में बिक्री

‘लबन्या’ की बिक्री 18 राज्यों तक पहुँच चुकी है। गाँवों में देखा गया है कि उपभोक्ता इसके पोषण गुणों और अनोखे रंग के कारण इसे पसंद कर रहे हैं। ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर इसकी उपलब्धता ने इसे आम लोगों तक आसानी से पहुँचाया है। रंजीत कुमार हाउट ने बताया कि 30 प्रतिशत से ज्यादा ग्राहक इस चावल को दोबारा खरीद रहे हैं। गाँवों में अनुभव है कि जब कोई उत्पाद बाज़ार में बार-बार माँगा जाता है, तो उसकी खेती किसानों के लिए और फायदेमंद हो जाती है। यह चावल न सिर्फ खाने में स्वादिष्ट है, बल्कि इसकी मांग बढ़ने से किसानों को अच्छा मुनाफा मिल रहा है।

PPV&FRA रजिस्ट्रेशन की उपलब्धि

‘लबन्या’ को PPV&FRA के तहत रजिस्टर करना असम कृषि विश्वविद्यालय के लिए बड़ी उपलब्धि है। रंजीत कुमार हाउट ने बताया कि यह रजिस्ट्रेशन वैज्ञानिकों की मेहनत का परिणाम है। गाँवों में देखा गया है कि रजिस्टर्ड किस्में किसानों को ज्यादा भरोसा देती हैं, क्योंकि इनकी गुणवत्ता और उपज की गारंटी होती है। इस रजिस्ट्रेशन से ‘लबन्या’ की खेती को और बढ़ावा मिलेगा। विश्वविद्यालय ने इसे व्यावसायीकरण के लिए जल्दी लॉन्च किया, ताकि किसान और उपभोक्ता दोनों इसका लाभ उठा सकें। गाँवों में अनुभव है कि ऐसी किस्में खेती को आधुनिक और लाभकारी बनाती हैं।

लबन्या’ की खेती किसानों के लिए कई मायनों में फायदेमंद है। इसकी ज्यादा उपज और बाज़ार मांग के कारण किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। गाँवों में अनुभव है कि यह चावल तीसरे साल से अच्छी पैदावार देना शुरू करता है। इसके दाने बाज़ार में 80 से 120 रुपये प्रति किलो तक बिकते हैं। यह बेकरी और ग्लूटेन-फ्री उत्पादों के लिए भी इस्तेमाल होता है, जिससे इसकी मांग और बढ़ती है। गाँवों में देखा गया है कि जिन किसानों ने नई किस्मों को अपनाया, उनकी आय में बढ़ोतरी हुई।

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  • Dharmendra

    मै धर्मेन्द्र एक कृषि विशेषज्ञ हूं जिसे खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी साझा करना और नई-नई तकनीकों को समझना बेहद पसंद है। कृषि से संबंधित लेख पढ़ना और लिखना मेरा जुनून है। मेरा उद्देश्य है कि किसानों तक सही और उपयोगी जानकारी पहुंचे ताकि वे अधिक उत्पादन कर सकें और खेती को एक लाभकारी व्यवसाय बना सकें।

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