बांस की खेती से किसान बन रहे मालामाल, सरकार दे रही है 50% तक सब्सिडी

देशभर में बांस की खेती अब तेजी पकड़ रही है। ये सिर्फ मुनाफे की फसल नहीं, बल्कि कम मेहनत और पर्यावरण बचाने का तरीका भी है। बांस मौसम की मार नहीं झेलता, किसी भी मिट्टी में उग जाता है, और बार-बार खाद-पानी की जरूरत नहीं पड़ती। खासकर पूर्वोत्तर और मध्य भारत के किसान इसे बड़े पैमाने पर अपना रहे हैं। कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट कहती है कि राष्ट्रीय बांस मिशन के तहत लाखों किसान जुड़ चुके हैं। एक बार लगा लिया, तो दशकों तक कमाई।

किसान भाइयों को बांस दीर्घकालिक आमदनी का जरिया लग रहा है। तीन से पांच साल में पौधा तैयार, फिर हर साल कटाई। प्रति एकड़ सालाना 1.5 लाख से 3 लाख तक कमाई संभव। कुछ किसानों ने 10 एकड़ से जीवनभर में 60-80 लाख तक कमाए। वैरायटी, बाजार और इलाके के हिसाब से फर्क पड़ता है।

शुरुआती साल कम कमाई, पांचवें से बंपर मुनाफा

पहले चार साल आमदनी कम रहती है, लेकिन पांचवें साल से हर साल कटाई। एक एकड़ से 15-20 टन बांस निकलता है। बाजार भाव 3000 से 5000 रुपये प्रति टन। अगर 4000 रुपये औसत और 15 टन मानें, तो 60 हजार से 1 लाख सालाना। जैसे-जैसे पौधे पकते हैं, पैदावार बढ़ती है।

त्रिपुरा के एक किसान ने बताया कि 5 एकड़ में 400 पौधे लगाए। तीसरे साल से फर्नीचर कंपनियों को बेचना शुरू। अब सालाना 8-10 लाख। मध्य प्रदेश के बैतूल में भी यही कहानी। बंजर जमीन पर बांस, अब हरा-भरा बाग।

लागत कम, सिर्फ 60-95 हजार प्रति एकड़

शुरुआत में ज्यादा खर्च नहीं। एक एकड़ में 60 हजार से 95 हजार तक लगते हैं। 400-500 पौधे लगते हैं, प्रति पौधा 50-100 रुपये। खेत तैयार करना, गड्ढा खोदना, मजदूरी, शुरुआती खाद – सब मिलाकर।

पहले तीन साल थोड़ी देखभाल, जैविक खाद, सिंचाई। उसके बाद पौधे खुद बढ़ते हैं। बार-बार कटाई, नया अंकुर। कृषि विश्वविद्यालय की गाइड कहती है कि बांस 70-100 साल तक चलता है। एक बार निवेश, जीवनभर कमाई।

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राष्ट्रीय बांस मिशन से 50 प्रतिशत सब्सिडी

केंद्र सरकार बांस को बढ़ावा दे रही है। राष्ट्रीय बांस मिशन के तहत पौधों पर 50 प्रतिशत तक सब्सिडी। प्रशिक्षण, बाजार कनेक्शन, उद्योग स्थापना में मदद।

पूर्वोत्तर में असम, त्रिपुरा, मिजोरम में सफल। वहां बांस पारंपरिक है, अब कमर्शियल। मध्य भारत में छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश के आदिवासी इलाकों में बूम। सरकार बांस आधारित उद्योग – फर्नीचर, पेपर, हैंडीक्राफ्ट – को प्रोत्साहन दे रही।

पर्यावरण का दोस्त

बांस दुनिया की सबसे तेज बढ़ने वाली घास। एक दिन में 3 फीट तक बढ़ता है। कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है, ऑक्सीजन छोड़ता है। मिट्टी कटाव रोकता है, बंजर जमीन सुधारता है।

पर्यावरण विशेषज्ञ कहते हैं कि बांस कार्बन क्रेडिट का स्रोत बनेगा। ग्रीन इकॉनमी की फसल। जलवायु परिवर्तन से लड़ाई में मदद।

कम उपजाऊ जमीन वालों के लिए वरदान

जिनके पास अनुपयोगी या कमजोर जमीन है, उनके लिए बांस बेस्ट। कम मेहनत, ज्यादा रिटर्न। कृषि वैज्ञानिक बता रहे हैं कि सही वैरायटी चुनो, बाजार से जुड़ो। बांस आय का स्थायी स्रोत बनेगा।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नई दिशा। आने वाले सालों में बांस किसानों की कमाई बढ़ाएगा, भारत की ग्रीन पॉलिसी को मजबूत करेगा। किसान भाइयों, मौका है। बांस लगाओ, भविष्य संवारो।

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  • Shashikant

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