Bamboo Staking Method Farming : किसान भाइयों, तोरई गल्की की खेती तो हर गाँव में होती है, लेकिन अगर इसे बैंबू स्टेकिंग तकनीक से करें, तो मेहनत कम लगेगी और फायदा दुगना हो जाएगा। ये तकनीक गाँव के लिए एकदम सही है, क्यूँकि बैंबू हर जगह आसानी से मिल जाता है और तोरई की बेल को सहारा देने का इससे बढ़िया तरीका कोई नहीं। इस तरीके से न सिर्फ फसल बढ़िया होगी, बल्कि खेत की जगह का भी पूरा फायदा उठेगा। आइए, इसे आसान भाषा में समझते हैं कि कैसे बैंबू की मदद से तोरई उगाकर आप अपनी जेब भर सकते हैं।
खेत को तैयार करने का तरीका
सबसे पहले तो खेत को तैयार करना है। गर्मी या बरसात का मौसम तोरई के लिए सबसे अच्छा होता है, तो मार्च या जून-जुलाई में शुरुआत करें। खेत में पहले गहरी जुताई कर लें, ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए। फिर इसमें गोबर की सड़ी खाद डाल दें, करीब 8-10 गट्ठर प्रति बीघा। अगर मिट्टी में नमी कम हो, तो हल्का पानी छिड़क दें। गाँव में हम लोग जानते हैं कि अच्छी मिट्टी ही अच्छी फसल देती है, तो थोड़ा ध्यान रखें कि पानी का निकास ठीक हो, वरना बेल सड़ सकती है। बैंबू स्टेकिंग के लिए खेत में जगह छोड़ें, जहाँ बैंबू गाड़ने होंगे।
ये भी पढ़ें- लगा दें तोरई की ये 5 शानदार किस्में…50 दिनों में शुरू होगी ताबड़तोड़ कमाई, हो जायेंगे मालामाल
बैंबू स्टेकिंग का आसान तरीका
अब बात करते हैं बैंबू स्टेकिंग की। इसके लिए 6-8 फीट लंबे बैंबू लें, जो मजबूत हों। इन्हें खेत में 5-6 फीट की दूरी पर जमीन में गाड़ दें, आधा फीट नीचे और बाकी ऊपर रहे। हर बैंबू को सीधा रखें, ताकि बेल को सहारा मिले। ऊपर से बैंबू को आपस में रस्सी या तार से बाँध दें, जैसे चौपाल पर छप्पर बनाते हैं। तोरई की बेल जब बढ़ने लगे, तो उसे बैंबू पर चढ़ने दें। गाँव में पुराने लोग बांस की टहनियों को भी बेल के लिए सहारा बनाते थे, ये भी आजमा सकते हैं। इससे बेल जमीन पर नहीं फैलेगी, फल साफ-सुथरे रहेंगे और कटाई भी आसान होगी।
बीज बोने और देखभाल का नुस्खा
तोरई के अच्छे बीज लें, जैसे पूसा चिकनी या कल्याणपुर चिकनी, जो गाँव के बाजार में आसानी से मिल जाते हैं। बीज को बैंबू के पास 2-3 फीट की दूरी पर छोटी नालियों में बो दें। एक बीघे में 1-1.5 किलो बीज काफी है। बुवाई के बाद हल्का पानी दें और 15-20 दिन बाद जब बेल बढ़ने लगे, तो उसे बैंबू पर चढ़ाने में मदद करें। गर्मी में 5-6 दिन बाद पानी दें, और बरसात में जरूरत पड़े तभी। गाँव का पुराना नुस्खा है कि नीम की पत्तियों का पानी छिड़क दें, इससे कीड़े-मकोड़े कम लगते हैं। खाद के लिए गोबर के साथ थोड़ा यूरिया भी मिला सकते हैं, पर जरूरत से ज्यादा न डालें।
ये भी पढ़ें – तोरई की ये हैं टॉप 5 हाई यील्डिंग वैरायटी, किसानों के लिए बंपर मुनाफे का मौका
फसल की कटाई और फायदा
तोरई की बेल 45-50 दिन में फल देने लगती है। जब फल मुलायम और हरे हों, तो कैंची से काट लें। बैंबू स्टेकिंग की वजह से फल ऊपर लटकते हैं, तो कटाई में आसानी होती है और फल गंदे भी नहीं होते। हर 5-6 दिन में कटाई करें, एक सीजन में 7-8 बार फसल मिल सकती है। एक बीघे से 50-60 क्विंटल तोरई आसानी से निकल आती है। बाजार में 20-30 रुपये किलो भाव मिले, तो 1-1.5 लाख रुपये की कमाई हो सकती है। बचे हुए बैंबू को अगली फसल के लिए रख लें, ये देसी तरीका पैसे भी बचाएगा।
गाँव की तरकीब से ज्यादा कमाई
बैंबू स्टेकिंग से तोरई की खेती में एक फायदा ये भी है कि खेत में दूसरी फसल, जैसे मूँग या उड़द, साथ में उगा सकते हैं। इससे जमीन खाली नहीं रहती और दोहरा मुनाफा होता है। गाँव में कुछ लोग तोरई के सूखे फलों से लूफा बनाकर बेचते हैं, जो नहाने के काम आता है। इसे भी आजमाएँ, थोड़ी मेहनत से अलग कमाई होगी। बस इतना ध्यान रखें कि बेल को हवा और धूप अच्छे से मिले, ताकि फसल खराब न हो।
ये भी पढ़ें- अब किसान उगाएं 30 हजार रूपए किलो वाली सब्जी ,धरती उगलेगी सोना