Barnyard Millet Farming: किसान भाइयों, गाँव में सांवा हमारा पुराना और भरोसेमंद मोटा अनाज है। इसे बार्नयार्ड मिलेट भी कहते हैं। कम पानी, कम मेहनत और सूखे को झेलने वाला ये अनाज चावल की तरह खाया जाता है। इसका भूसा पशुओं के लिए बढ़िया चारा बनता है। सांवा में प्रोटीन, फाइबर और पोषक तत्व चावल से कहीं ज्यादा होते हैं। आजकल बाजार में इसकी माँग भी खूब बढ़ रही है। गाँव में छोटे खेतों या बंजर जमीन पर भी इसे आसानी से उगा सकते हैं। चलिए, इसे समझते हैं कि सांवा की खेती कैसे करें और इससे फायदा कैसे लें।
खेत की तैयारी
सांवा की खेती के लिए ज्यादा उर्वर जमीन की जरूरत नहीं पड़ती। बलुई दोमट, हल्की मिट्टी या थोड़ी रेतीली जमीन इसके लिए ठीक रहती है। खेत को सजाने के लिए मानसून से पहले एक बार हल चला लें। फिर 2-3 बार बखर से जुताई करें ताकि मिट्टी भुरभुरी और मुलायम हो जाए। गोबर की सड़ी खाद डालें एक बीघे में 3-4 गट्ठर या 8-10 क्विंटल काफी है। गाँव में नीम की सूखी पत्तियाँ बिखेर दें, ये कीटों को भगाने का पुराना नुस्खा है। खेत को समतल करें ताकि बारिश का पानी रुक सके। ऐसा करने से सांवा के पौधे मजबूत जड़ें पकड़ते हैं।
बीज बोने की विधि
सांवा की बुआई का सबसे अच्छा समय जून से जुलाई है, जब मानसून की पहली बारिश शुरू होती है। उन्नत किस्में जैसे टी-46, आई.पी.एम.-97, डीएचबीएम-93-3 या वीएल मधिरा-181 चुनें। ये जल्दी पकती हैं और पैदावार भी बढ़िया देती हैं। बीज को 6-8 घंटे पानी में भिगो दें, फिर छिटककर या कतार में बो दें। कतार में बोना हो तो पौधों के बीच 25 सेमी और कतारों में 10 सेमी की दूरी रखें। प्रति बीघा 3-4 किलो बीज काफी है। बीज को 3-4 सेमी गहरा बोएँ और ऊपर से हल्की मिट्टी डाल दें। बुआई के बाद हल्का पानी छिड़कें। गाँव में ऐसा करने से 5-7 दिन में अंकुर फूट आते हैं।
फसल की देखभाल का आसान नुस्खा
सांवा खरीफ की फसल है, इसलिए ज्यादातर बारिश का पानी ही इसके लिए काफी होता है। लेकिन अगर बारिश कम हो और फूल आने का समय हो, तो हल्की सिंचाई कर दें। ध्यान रहे, खेत में पानी जमा न होने पाए, वरना फसल को नुकसान हो सकता है। बुआई के 25-30 दिन बाद खेत में उगने वाले खरपतवार साफ कर दें। इसके 15 दिन बाद एक और बार निराई करें। इससे पौधों को ज्यादा ताकत मिलती है। गोबर का घोल बनाकर हर 20 दिन में खेत में डालें। एक बीघे के लिए 10-15 लीटर घोल काफी है। कीटों से बचाने के लिए नीम का पानी छिड़कें। ये देसी तरीका सांवा को हरा-भरा और स्वस्थ रखता है।
फसल कटाई और मुनाफे का हिसाब
सांवा 90-100 दिन में पककर तैयार हो जाता है। जब दाने सख्त हो जाएं और पत्तियां पीली पड़ने लगें, तो फसल काटने का समय है। हंसिए से पौधों को जड़ समेत काट लें। फिर गट्ठर बनाकर खेत में 5-7 दिन धूप में सुखाएं। इसके बाद मड़ाई करें, चाहे हाथ से या बैलों की मदद से। एक बीघे से 4-6 क्विंटल दाना और 8-10 क्विंटल भूसा मिल सकता है। बाजार में सांवा का चावल 100-120 रुपये प्रति किलो बिकता है। यानी एक बीघे से 20-30 हजार रुपये की कमाई हो सकती है। भूसा भी 20-25 रुपये प्रति किलो बिकता है, जो पशुपालकों के लिए बड़ा फायदेमंद है। लागत 5-7 हजार रुपये आती है, और मुनाफा तीन-चार गुना हो सकता है।
सांवा क्यों है खास
गाँवों में सांवा इसलिए पसंद किया जाता है, क्योंकि ये कम मेहनत और कम पानी में उगता है। बंजर या कमजोर जमीन को भी हरा-भरा कर देता है। गाँव की बहनें इसे चावल, खीर, या रोटी बनाकर खाती हैं। ये सेहत के लिए बहुत अच्छा है, क्योंकि इसमें प्रोटीन, फाइबर, और आयरन भरपूर होता है। आजकल सरकार भी मोटे अनाज को बढ़ावा दे रही है, जिससे बाजार में सांवा के अच्छे दाम मिल रहे हैं। चाहे सूखा पड़े या बारिश कम हो, सांवा हर मुश्किल में साथ देता है। छोटे किसानों के लिए ये फसल किसी खजाने से कम नहीं है।
किसानों के लिए सलाह
किसान भाइयों सांवा की खेती शुरू करें। अपने नजदीकी कृषि केंद्र से उन्नत बीज लें। जून-जुलाई में बुआई करें। गोबर और नीम से खेती को हरा-भरा रखें। ये फसल न सिर्फ आपकी जेब भरेगी, बल्कि घर में पोषण और पशुओं के लिए चारा भी देगी। अभी से तैयारी करें ताकि मानसून में खेत लहलहाए और मुनाफा आपके हाथ में आए।
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