पछेती गेहूं की खेती से भी होगी शानदार पैदावार, जानें ये 6 हाई यील्डिंग किस्में

भारत में गेहूं रबी सीजन की रीढ़ है, जो देश की खाद्य सुरक्षा को मजबूत बनाती है। इसकी बुवाई आमतौर पर अक्टूबर के आखिरी सप्ताह से नवंबर के तीसरे सप्ताह तक होती है। लेकिन धान की कटाई में देरी या मौसम की मार से किसान अक्सर समय पर बुवाई नहीं कर पाते। ऐसे में पछेती किस्में, जो कम समय में तैयार हो जाती हैं, किसानों के लिए एक बड़ा सहारा हैं।

ये किस्में कम पानी और कम मेहनत में अच्छी पैदावार देती हैं, साथ ही गर्मी को सहन करने की क्षमता रखती हैं। छोटे और सीमांत किसानों के लिए ये किस्में खासतौर पर फायदेमंद हैं, क्योंकि ये लागत बचाती हैं और मुनाफा बढ़ाती हैं। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि सही समय पर खाद और पानी देने से इनकी उपज और भी बेहतर हो जाती है। आइए, इन 6 प्रमुख पछेती किस्मों के बारे में विस्तार से जानें।

PBW 373

PBW 373 गेहूं की एक लोकप्रिय पछेती किस्म है, जो पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी (PAU) द्वारा विकसित की गई है। यह 1996 में जारी की गई थी और उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्र (NWPZ) जैसे पंजाब, हरियाणा, और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए बिल्कुल फिट बैठती है। यह किस्म 110 से 115 दिन में तैयार हो जाती है, जो देर से बुवाई वाले किसानों के लिए परफेक्ट है। प्रति हेक्टेयर 35 से 40 क्विंटल तक पैदावार देती है, और संभावित उपज 45 क्विंटल तक पहुँच सकती है।

पौधे की ऊँचाई 80 से 90 सेंटीमीटर रहती है, जो इसे मजबूत बनाती है। यह स्ट्राइप रस्ट (पीली जंग), लीफ रस्ट (भूरी जंग), और कर्नल बंट रोगों के प्रति प्रतिरोधी है, जिससे किसानों को दवाओं पर खर्च कम बचता है। देर से बुवाई में गर्मी सहन करने की इसकी क्षमता किसानों को बिना चिंता के खेती करने का मौका देती है। छोटे किसान इसे अपनाकर अपनी आय में 20-25 प्रतिशत की बढ़ोतरी कर सकते हैं।

HD 2985

HD 2985 गेहूं की एक और विश्वसनीय पछेती किस्म है, जो इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट (IARI) द्वारा विकसित की गई है। यह उत्तर-पश्चिमी और उत्तर-पूर्वी मैदानी क्षेत्रों (NWPZ और NEPZ) के लिए अनुशंसित है, खासकर देर से बुवाई वाली स्थितियों में। यह किस्म 105 से 110 दिन में पककर तैयार हो जाती है, जो इसे जल्दी फसल कटाई का विकल्प बनाती है। प्रति हेक्टेयर 40 से 42 क्विंटल तक पैदावार देती है, और संभावित उपज 59 क्विंटल तक हो सकती है।

पौधे की ऊँचाई मध्यम रहती है, और यह लीफ रस्ट तथा स्ट्राइप रस्ट रोगों के खिलाफ मजबूत है। कम पानी वाली सिंचाई (केवल 3-4 बार) में भी यह अच्छा प्रदर्शन करती है, जो पानी की कमी वाले इलाकों के किसानों के लिए वरदान है। अनाज की गुणवत्ता ब्रेड बनाने के लिए बेहतरीन है, जिससे बाजार में अच्छा दाम मिलता है। इस किस्म को अपनाने से किसान न केवल लागत बचाते हैं, बल्कि पर्यावरण के अनुकूल खेती भी कर पाते हैं।

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DBW 14

DBW 14 गेहूं की पछेती किस्म है, जो ICAR-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ व्हीट एंड बार्ली रिसर्च (IIWBR) द्वारा तैयार की गई है। यह NWPZ और NEPZ के देर से बुवाई वाले खेतों के लिए आदर्श है, जहाँ धान के बाद गेहूं बोया जाता है। यह किस्म 110 से 115 दिन में तैयार हो जाती है, और प्रति हेक्टेयर 30 से 35 क्विंटल तक पैदावार देती है। पौधे की ऊँचाई 90 से 100 सेंटीमीटर के आसपास रहती है, जो इसे हवा और तूफान से बचाती है।

यह लीफ रस्ट, स्ट्राइप रस्ट, और कर्नल बंट जैसे रोगों के प्रति प्रतिरोधी है, जिससे फसल को कम दवाओं की जरूरत पड़ती है। कम सिंचाई में भी यह अच्छी उपज देती है, और अनाज की गुणवत्ता चपाती और ब्रेड दोनों के लिए उपयुक्त है। छोटे किसानों के लिए यह किस्म खासतौर पर फायदेमंद है, क्योंकि यह गर्मी तनाव को सहन करती है और बाजार में स्थिर दाम सुनिश्चित करती है।

NW 1014

NW 1014 गेहूं की एक संतुलित पछेती किस्म है, जो ICAR-IIWBR द्वारा विकसित की गई है। यह NWPZ के देर से बुवाई वाले क्षेत्रों जैसे हरियाणा, राजस्थान, और उत्तर प्रदेश के लिए अनुकूल है। यह किस्म 110 से 115 दिन में पककर तैयार हो जाती है, जो किसानों को जल्दी अगली फसल बोने का मौका देती है। प्रति हेक्टेयर 35 से 40 क्विंटल तक पैदावार देती है, और संभावित उपज 50 क्विंटल तक पहुँच सकती है।

पौधे की ऊँचाई मध्यम (85-95 सेंटीमीटर) रहती है, और यह रस्ट रोगों तथा स्पॉट ब्लॉच के प्रति मजबूत है। कम पानी और जीरो टिलेज विधि में यह बेहतर प्रदर्शन करती है, जो मिट्टी की सेहत बनाए रखती है। अनाज की गुणवत्ता उच्च प्रोटीन वाली है, जो बाजार में अच्छी कीमत दिलाती है। यह किस्म जलवायु परिवर्तन के दौर में किसानों को स्थिर आय का भरोसा देती है।

HD 2643

HD 2643 गेहूं की बहुमुखी पछेती किस्म है, जो IARI द्वारा तैयार की गई है। यह NWPZ और NEPZ के देर से बुवाई वाले खेतों के लिए बिल्कुल सही है, खासकर जहाँ गर्मी तनाव ज्यादा रहता है। यह किस्म 105 से 110 दिन में तैयार हो जाती है, और प्रति हेक्टेयर 35 से 40 क्विंटल तक पैदावार देती है। पौधे की ऊँचाई 80 से 90 सेंटीमीटर रहती है, जो इसे मजबूत और लॉजिंग प्रतिरोधी बनाती है।

यह व्हीट ब्लास्ट, कर्नल बंट, लीफ ब्लाइट, और पाउडरी मिल्ड्यू रोगों के प्रति प्रतिरोधी है। कम सिंचाई (3-4 बार) में भी यह अच्छी उपज देती है, और अनाज ब्रेड बनाने के लिए उच्च गुणवत्ता वाला होता है। किसान इसे अपनाकर न केवल लागत बचाते हैं, बल्कि जैविक खेती के लिए भी उपयोगी पाते हैं।

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HP 1633

HP 1633 गेहूं की एक उच्च उपज वाली पछेती किस्म है, जो ICAR-IIWBR द्वारा विकसित की गई है। यह पेनिनसुलर जोन (महाराष्ट्र, कर्नाटक आदि) के देर से बुवाई वाले क्षेत्रों के लिए अनुशंसित है। यह किस्म 105 से 110 दिन में पककर तैयार हो जाती है, और प्रति हेक्टेयर 35 से 40 क्विंटल तक पैदावार देती है।

पौधे की ऊँचाई मध्यम रहती है, और यह ब्लैक रस्ट तथा ब्राउन रस्ट रोगों के प्रति प्रतिरोधी है। संभावित उपज 65 क्विंटल तक हो सकती है, जो इसे लाभकारी बनाती है। अनाज में उच्च प्रोटीन (12% से ज्यादा) होता है, जो चपाती और बिस्किट के लिए बेहतरीन है। कम पानी और तनावपूर्ण स्थितियों में यह अच्छा प्रदर्शन करती है, जिससे छोटे किसान अपनी आय दोगुनी कर सकते हैं।

बुवाई का सही तरीका और देखभाल

गेहूं की बंपर फसल के लिए सही किस्म चुनना जितना ज़रूरी है, उतना ही ज़रूरी है बुवाई और देखभाल का सही तरीका। विशेषज्ञों का कहना है कि जीरो टिलेज तकनीक का उपयोग करने से न केवल लागत कम होती है, बल्कि मिट्टी की उर्वरता भी बनी रहती है। इस विधि में खेत को बार-बार जोतने की ज़रूरत नहीं पड़ती, जिससे समय और संसाधनों की बचत होती है। बुवाई के बाद पहली बार पानी 20 से 25 दिन बाद देना चाहिए, जब पौधों की जड़ें मज़बूत हो रही होती हैं। दूसरा पानी 40 से 45 दिन बाद देना चाहिए, जब पौधों में कल्ले निकलने शुरू होते हैं।

तीसरी बार 60 से 65 दिन बाद पानी दें, जब पौधे तेज़ी से बढ़ रहे हों। अगर ज़रूरत हो, तो 85 से 90 दिन बाद चौथा पानी दें, जब फूल आने शुरू हों। आखिरी बार 100 से 105 दिन बाद पानी देना चाहिए, जब गेहूं के दाने दूधिया अवस्था में हों। इस तरह सही समय पर पानी देने से फसल की गुणवत्ता और पैदावार दोनों बढ़ती हैं।

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  • Shashikant

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