गेहूं की खेती के लिए खास हैं ये वैरायटी, इन बातों का रखें ध्यान तो होगी बंपर पैदावार

रबी का मौसम आते ही भारतीय किसान गेहूँ की खेती की तैयारियों में जुट जाते हैं। यह फसल न केवल देश के लिए खाद्य सुरक्षा की रीढ़ है, बल्कि किसानों के लिए आय का एक बड़ा स्रोत भी है। लेकिन कई बार किसान यह तय नहीं कर पाते कि कौन सी किस्में चुनें या खेती का सही तरीका क्या हो, जिससे अधिक पैदावार मिले।

अच्छी खबर यह है कि भारतीय कृषि विशेषज्ञों ने कुछ उन्नत किस्मों और खेती के तरीकों की सलाह दी है, जिन्हें अपनाकर आप कम लागत में अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। आइए जानते हैं कि गेहूँ की खेती के लिए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए और कौन सी किस्में आपके लिए सबसे अच्छी हो सकती हैं।

खेत की तैयारी और बुवाई का सही समय

गेहूँ की खेती की शुरुआत खेत की अच्छी तैयारी से होती है। सबसे पहले खेत को गहरी जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा करें। इसके बाद गोबर की खाद या जैविक उर्वरक मिलाएँ, ताकि मिट्टी की उर्वरता बढ़े। बुवाई का सबसे अच्छा समय 25 अक्टूबर से 25 नवंबर के बीच है। इस दौरान तापमान गेहूँ के अंकुरण और बढ़वार के लिए आदर्श होता है। बुवाई से पहले बीज को उपचारित करना न भूलें।

इसके लिए कार्बेंडाजिम जैसे रसायन का उपयोग करें, जो बीज को रोगों से बचाता है। प्रति हेक्टेयर 120-125 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है। पंक्तियों के बीच 22-23 सेंटीमीटर की दूरी और बीज को 5-7 सेंटीमीटर की गहराई पर बोएँ। इससे पौधों को पर्याप्त जगह मिलती है और पैदावार बढ़ती है।

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उन्नत किस्में जो देंगी शानदार पैदावार

कृषि वैज्ञानिकों ने गेहूँ की कुछ ऐसी किस्मों की सलाह दी है, जो भारतीय जलवायु और मिट्टी के लिए उपयुक्त हैं। इस रबी सीजन में आप एच.आई. 1531, एच.आई. 8627, एच.आई. 1500, मालवीय-533, एच.डी.-3338, और अमर जैसी किस्मों का चयन कर सकते हैं। ये किस्में अधिक पैदावार देने के साथ-साथ रोगों के प्रति भी प्रतिरोधी हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि हमेशा अपने क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन करने वाली और प्रमाणित बीजों का ही उपयोग करें। स्थानीय कृषि केंद्रों या सहकारी समितियों से संपर्क करके इन किस्मों के बारे में और जानकारी लें। अगर आप जैविक खेती में रुचि रखते हैं, तो इन किस्मों को जैविक उर्वरकों के साथ उगाकर बाजार में बेहतर दाम पा सकते हैं।

पोषक तत्व और खरपतवार नियंत्रण

गेहूँ की फसल को स्वस्थ रखने के लिए सही मात्रा में पोषक तत्व देना जरूरी है। बारानी या सीमित सिंचाई वाले खेतों में प्रति हेक्टेयर 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30 किलोग्राम फास्फोरस, और 20 किलोग्राम पोटाश का उपयोग करें। ये पोषक तत्व फसल की जड़ों को मजबूत करते हैं और पैदावार बढ़ाते हैं। साथ ही, खरपतवार फसल की वृद्धि को रोक सकते हैं, इसलिए इनका नियंत्रण जरूरी है।

बुवाई के तीन दिन के भीतर पेंडीमेथिलीन (1 लीटर प्रति हेक्टेयर) को 500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। यह चौड़ी पत्ती और घास वाले खरपतवारों को खत्म करता है। इसके अलावा, बुवाई के 25-30 दिन बाद मेट्रीब्युजिन (175 ग्राम प्रति हेक्टेयर) का छिड़काव करें। ध्यान रखें कि रसायनों का उपयोग धूप वाले दिन और कम हवा के समय करें, ताकि प्रभावी परिणाम मिलें।

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अतिरिक्त टिप्स: सरकारी योजनाओं का लाभ

गेहूँ की खेती को और लाभकारी बनाने के लिए कुछ अतिरिक्त बातों का ध्यान रखें। सबसे पहले, मिट्टी की जाँच करवाएँ ताकि आपको सही उर्वरक और उनकी मात्रा का पता चल सके। सरकार की योजनाएँ, जैसे प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि या फसल बीमा योजना, आपके लिए मददगार हो सकती हैं। ये योजनाएँ खेती के जोखिम को कम करती हैं और आर्थिक सहायता प्रदान करती हैं।

इसके अलावा, अपनी पैदावार को स्थानीय मंडियों के अलावा ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स या किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) के जरिए बेचने की कोशिश करें। आजकल जैविक और उन्नत किस्मों के गेहूँ की मांग शहरों में बढ़ रही है, जिससे आपको बेहतर दाम मिल सकते हैं। अगर आप गेहूँ से बने उत्पाद, जैसे आटा या अन्य सामग्री, बेचना चाहते हैं, तो स्थानीय सहकारी समितियों से संपर्क करें।

खेती को और बेहतर बनाने के लिए सुझाव

भारतीय किसानों के लिए गेहूँ की खेती न केवल परंपरा है, बल्कि आज के समय में यह एक व्यवसाय का रूप भी ले चुकी है। अगर आप नई तकनीकों, जैसे ड्रिप इरिगेशन या सटीक खेती (precision farming), का उपयोग करें, तो पानी और उर्वरकों की बचत के साथ पैदावार और बढ़ सकती है। साथ ही, अपने क्षेत्र के कृषि वैज्ञानिकों या कृषि विश्वविद्यालयों से संपर्क रखें। ये संस्थान समय-समय पर मुफ्त प्रशिक्षण और नई तकनीकों की जानकारी देते हैं। अगर आप जैविक खेती की ओर बढ़ रहे हैं, तो वर्मीकम्पोस्ट और नीम आधारित कीटनाशकों का उपयोग करें, क्योंकि इनकी मांग बाजार में तेजी से बढ़ रही है।

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  • Shashikant

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