Amla cultivation: आंवला, जिसे लोग भारतीय गूजबेरी भी कहते हैं, एक ऐसा फल है जो न सिर्फ सेहत का खजाना है, बल्कि किसानों के लिए कमाई का धांसू जरिया भी। इसमें विटामिन सी, एंटीऑक्सिडेंट्स और ढेर सारे पोषक तत्व भरे हैं, जिसकी वजह से इसकी डिमांड बाजार में हमेशा रहती है। आंवला की खेती न सिर्फ जेब भरती है, बल्कि पर्यावरण को भी फायदा पहुंचाती है। ये पौधा कम पानी और कम उपजाऊ मिट्टी में भी उग जाता है। तो चलिए, जानते हैं कि आंवला की खेती कैसे करें, कब करें और इसके फायदे क्या हैं, ताकि किसान भाई मोटा मुनाफा कमा सकें।
कब लगाएं आंवला
विशेषज्ञों की मानें तो आंवला के पौधे लगाने का सबसे अच्छा समय है जुलाई-अगस्त का महीना। इस वक्त बारिश का मौसम होता है, जो पौधों की जड़ों को मजबूत करने में मदद करता है। पौधे लगाने के तीन साल बाद फल आने शुरू हो जाते हैं। फरवरी से अप्रैल तक पौधों में फूल खिलते हैं, और जुलाई से सितंबर के बीच फल पकने लगते हैं। अगर सही समय पर रोपाई करें, तो फसल की शुरुआत ही शानदार होगी। मध्य प्रदेश के पन्ना और सतना जैसे इलाकों में किसान इस समय का फायदा उठाकर अच्छी खेती कर रहे हैं।
मिट्टी और मौसम
आंवला की खेती के लिए सैंडी लूम यानी रेतीली-दोमट मिट्टी सबसे बढ़िया है। लेकिन ये पौधा इतना जुझारू है कि कम उपजाऊ या सूखी मिट्टी में भी आराम से उग जाता है। इसका pH लेवल 6.0 से 8.0 के बीच होना चाहिए। आंवला गर्म और शुष्क जलवायु में अच्छा परफॉर्म करता है, लेकिन हल्की ठंड भी झेल लेता है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार और गुजरात जैसे राज्यों में इसकी खेती आसानी से हो सकती है। पानी की अच्छी निकासी वाले खेत चुनें, क्योंकि जलभराव से जड़ें खराब हो सकती हैं।
पौधों की देखभाल, फसल का आधार
वरिष्ठ उद्यान विशेषज्ञ सुधा पटेल बताती हैं कि रोपाई के बाद पहले तीन साल पौधों की देखभाल बहुत जरूरी है। इस दौरान गोबर की खाद, वर्मीकंपोस्ट और थोड़ा NPK उर्वरक डालें। हर साल प्रति पौधा 10-15 किलो जैविक खाद और 200-300 ग्राम NPK देना काफी है। मार्च-अप्रैल में जब फूल आने शुरू हों, तो सिंचाई बंद कर दें, वरना फूल झड़ सकते हैं। गर्मियों में हफ्ते में एक बार और बरसात में जरूरत के हिसाब से पानी दें। खरपतवार हटाने और नमी बनाए रखने के लिए मल्चिंग करें, यानी पौधों के आसपास घास-फूस बिछाएं।
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सही किस्में, ज्यादा फल
आंवला की खेती में एक ही किस्म लगाने की गलती न करें। नारायण सेवन, चकैया, कृष्णा और हाथीजूल जैसी किस्में मिलाकर लगाएं। ऐसा करने से परागण बेहतर होता है, जिससे फूल और फल ज्यादा आते हैं। नारायण सेवन बड़े फल देती है, चकैया छोटे लेकिन स्वादिष्ट फल देती है, और कृष्णा मध्यम आकार के फल देती है। एक से डेढ़ एकड़ में 100-150 पौधे लगाएं, और हर पौधे के बीच 6-8 मीटर की दूरी रखें। इससे पौधों को धूप और हवा अच्छे से मिलती है, और फसल की क्वालिटी बढ़ती है।
पोषण का देसी जुगाड़
आंवला के पौधों को ताकत देने के लिए देसी तरीके भी कमाल करते हैं। उड़द की भूसी को पौधों के चारों ओर बिछाएं, फिर उस पर गोबर की खाद डालकर हल्का पानी दें। ये तरीका मिट्टी में कार्बन और नाइट्रोजन का बैलेंस बनाता है, जिससे फूल और फल ज्यादा लगते हैं। हर साल 2-3 किलो उड़द की भूसी और 10 किलो गोबर की खाद प्रति पौधा डालें। अगर मिट्टी में नाइट्रोजन की कमी हो, तो थोड़ा डीएपी भी मिला सकते हैं। मिट्टी की जांच करवाकर सही खाद का इस्तेमाल करें, ताकि फसल को पूरा पोषण मिले।
मध्य प्रदेश में आंवला का जलवा
मध्य प्रदेश आंवला उत्पादन में देश में नंबर दो पर है। पन्ना जिला इस मामले में सबसे आगे है, और सतना का मझगांव ब्लॉक भी आंवला की खेती में कमाल कर रहा है। यहां के किसान आंवला से न सिर्फ ताजा फल बेचते हैं, बल्कि इसका अचार, मुरब्बा, जूस और चूर्ण बनाकर अच्छी कमाई करते हैं। एक हेक्टेयर में 10-15 टन फल मिल सकता है, और बाजार में आंवला 50-100 रुपये प्रति किलो बिकता है। प्रोसेस्ड प्रोडक्ट्स जैसे आंवला कैंडी और चूर्ण 300-500 रुपये प्रति किलो तक बिकते हैं।
कमाई और फायदे
आंवला की खेती में लागत कम और मुनाफा ज्यादा है। एक हेक्टेयर में शुरुआती खर्च (पौधे, खाद, मजदूरी) 1-1.5 लाख रुपये आता है, लेकिन तीसरे साल से 5-10 लाख रुपये की कमाई हो सकती है। इसके फल, चूर्ण, अचार और जूस की डिमांड आयुर्वेदिक कंपनियों, फूड इंडस्ट्री और ऑनलाइन मार्केट में है। ये पौधा 20-30 साल तक फल देता है, यानी एक बार लगाओ और सालों तक कमाओ। साथ ही, आंवला के पेड़ मिट्टी को उपजाऊ बनाते हैं और पर्यावरण को साफ रखते हैं।
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