भांग एक औद्योगिक और औषधीय फसल है, जिसका उपयोग दवाइयों, कपड़ों के रेशे, तेल और अन्य उत्पादों के निर्माण में किया जाता है। भारत में इसकी खेती सरकारी अनुमति के तहत की जा सकती है। इसके पौधे की पत्तियाँ, तना और बीज अलग-अलग उद्योगों में काम आते हैं। अगर आप भांग की खेती करना चाहते हैं, तो सबसे पहले इसकी कानूनी प्रक्रिया को समझना जरूरी है, क्योंकि बिना लाइसेंस के इसकी खेती करना गैरकानूनी होता है। आप लाइसेंस के लिए अपने जिलाधिकारी के यहाँ आवेदन कर सकते हैं. उत्तराखंड राज्य अभी इसकी खेती के लिए अनुमति दिया है बाकि राज्य भी मांग कर रहे हैं।
जलवायु और भूमि की आवश्यकता
भांग की खेती (bhang ki kheti) के लिए ठंडी और शुष्क जलवायु सबसे अनुकूल मानी जाती है। यह फसल 15 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान में अच्छी तरह बढ़ती है। ज्यादा गर्मी या अत्यधिक ठंड भांग के पौधों के विकास को प्रभावित कर सकती है। इसके लिए अच्छी जल निकासी वाली बलुई या दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। खेत की मिट्टी नरम और उपजाऊ होनी चाहिए, जिससे जड़ों को बढ़ने के लिए पर्याप्त जगह मिल सके। मिट्टी का पीएच स्तर 6 से 7 के बीच होना चाहिए, ताकि पौधे को सभी आवश्यक पोषक तत्व मिल सकें।
ये भी पढ़ें- मेंथा की खेती से बदली यूपी के किसानों की किस्मत, मुनाफे में जबरदस्त इजाफा
बीज चयन और बुवाई
भांग की अच्छी खेती के लिए उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का चयन करना जरूरी है। बाजार में भांग के कई प्रकार के बीज उपलब्ध होते हैं, लेकिन केवल उन्हीं बीजों का उपयोग करना चाहिए, जो खेती के लिए प्रमाणित हों। बुवाई के लिए सही समय फरवरी से अप्रैल के बीच होता है, जब तापमान न तो बहुत अधिक होता है और न ही बहुत कम।
बीजों को खेत में लगाने से पहले हल्की जुताई करें और मिट्टी को भुरभुरा बना लें। बीजों को 2 से 3 सेंटीमीटर गहराई में बोया जाता है और पंक्तियों के बीच कम से कम 30 से 40 सेंटीमीटर की दूरी रखी जाती है, ताकि पौधों को बढ़ने के लिए पर्याप्त जगह मिल सके। एक हेक्टेयर भूमि में लगभग 30 से 40 किलोग्राम बीज पर्याप्त होते हैं।
सिंचाई और खाद
भांग की खेती (bhang ki kheti) में अधिक पानी की जरूरत नहीं होती, लेकिन बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करना आवश्यक होता है, ताकि बीज जल्दी अंकुरित हो सकें। पहली सिंचाई के बाद मिट्टी की नमी को बनाए रखना जरूरी है। बारिश के मौसम में अधिक सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती, लेकिन गर्मी के दिनों में हर 10 से 15 दिन में सिंचाई करनी चाहिए।
खेत की उर्वरता बढ़ाने के लिए जैविक खाद जैसे गोबर खाद, वर्मी कंपोस्ट और हरी खाद का उपयोग करना फायदेमंद होता है। इसके अलावा, नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश जैसे उर्वरकों का संतुलित मात्रा में प्रयोग किया जाता है। सही मात्रा में पोषक तत्व मिलने से पौधे की बढ़वार अच्छी होती है और उत्पादन भी बढ़ता है।
ये भी पढ़ें- ये 5 औषधीय पौधे बना सकते हैं आपको करोड़पति, बस एक बार करें खेती और जीवनभर होगी कमाई
खरपतवार नियंत्रण और कीट प्रबंधन
खरपतवार भांग की खेती में एक बड़ी समस्या हो सकती है, इसलिए समय-समय पर निराई-गुड़ाई करना जरूरी होता है। यह न केवल खरपतवार को खत्म करता है, बल्कि मिट्टी में हवा का संचार भी सुनिश्चित करता है, जिससे पौधों की जड़ों को पर्याप्त ऑक्सीजन मिलती है।
भांग के पौधों को कीट और रोगों से बचाने के लिए जैविक कीटनाशकों का उपयोग करना चाहिए। नीम का अर्क, लहसुन का घोल और गोमूत्र आधारित जैविक कीटनाशक पौधों को कीटों से सुरक्षित रखते हैं। कुछ प्रमुख कीट, जैसे एफिड्स और थ्रिप्स, पत्तों का रस चूसकर पौधे को नुकसान पहुंचाते हैं, इसलिए इन पर समय रहते नियंत्रण जरूरी होता है।
फसल की कटाई
भांग के पौधे को बीज और रेशों के लिए उगाया जाता है, इसलिए कटाई का समय इस पर निर्भर करता है कि फसल का उपयोग किस उद्देश्य के लिए किया जा रहा है। यदि भांग से रेशे प्राप्त करने हैं, तो पौधे को 90 से 100 दिनों में काटा जाता है, जब तना पूरी तरह परिपक्व हो जाता है।
अगर बीज प्राप्त करने के लिए इसकी खेती की जा रही है, तो फसल को 120 से 140 दिनों के बाद काटा जाता है, जब बीज पूरी तरह विकसित हो जाते हैं। कटाई के बाद पौधों को धूप में सुखाया जाता है और फिर उनके रेशों को अलग किया जाता है। बीजों को अलग करने के बाद उन्हें तेल निकालने या आगे की खेती के लिए संरक्षित किया जाता है।
भांग की खेती के कानूनी पहलू
भारत में भांग की खेती के लिए सरकारी अनुमति लेना जरूरी है। विभिन्न राज्यों में इसके लिए अलग-अलग नियम हैं। केवल उन किसानों को इसकी खेती की अनुमति दी जाती है, जो इसे औद्योगिक और औषधीय उपयोग के लिए उगाना चाहते हैं। खेती शुरू करने से पहले संबंधित राज्य सरकार के कृषि विभाग से संपर्क करके लाइसेंस प्राप्त करना अनिवार्य है।
अगर बिना लाइसेंस के भांग की खेती की जाती है, तो यह कानून का उल्लंघन माना जाता है और इसके लिए कानूनी कार्रवाई हो सकती है। इसलिए, खेती शुरू करने से पहले सभी आवश्यक दस्तावेज और लाइसेंस प्राप्त करना बेहद जरूरी होता है।
ये भी पढ़ें –टिंडे की ऑर्गेनिक खेती: 40 दिन में तुड़ाई, कम लागत में बंपर मुनाफा