लहसुन की भिमा पर्पल वैरायटी 120 दिन में दे रही 7 टन पैदावार, सस्ते में बीज यहाँ से खरीदें

लहसुन की बुवाई का मौसम शुरू होते ही खेतों में हलचल बढ़ गई है। उत्तर प्रदेश के मैदानों से लेकर आंध्र प्रदेश की काली मिट्टी तक हर तरफ किसान लहसुन की नई फसल की तैयारी में जुटे हैं। इस बार नेशनल सीड्स कॉर्पोरेशन लिमिटेड ने किसानों के लिए एक खास तोहफा पेश किया है। भिमा पर्पल नाम की नई लहसुन किस्म अब बाजार में आ गई है।

सबसे बड़ी बात ये है कि 500 ग्राम बीज सिर्फ 100 रुपये में मिल रहा है। यह बीज आठ राज्यों के किसानों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। इनमें आंध्र प्रदेश, बिहार, दिल्ली, हरियाणा, कर्नाटक, महाराष्ट्र, पंजाब और उत्तर प्रदेश शामिल हैं। कृषि वैज्ञानिकों ने इसे इस तरह डिजाइन किया है कि हर इलाके की मिट्टी और मौसम में यह अच्छा परिणाम दे सके।

नई किस्म की खासियतें

भिमा पर्पल को देखते ही इसका नाम सार्थक लगता है। लहसुन की लौंग का रंग गहरा बैंगनी होता है, जो बाजार में आम सफेद लहसुन से अलग दिखता है। ग्राहक इसे देखकर तुरंत खरीदने को तैयार हो जाते हैं। फसल तैयार होने में सिर्फ 120 से 135 दिन लगते हैं। यानी बुवाई के चार महीने बाद ही खेत से लहसुन निकलने लगता है। एक हेक्टेयर खेत से 6-7 टन पैदावार की उम्मीद की जा रही है।

पिछले साल देश के कई हिस्सों में बारिश ने लहसुन की फसल को भारी नुकसान पहुंचाया था। सप्लाई कम होने से बाजार में कीमतें आसमान छू गई थीं। इस बार भिमा पर्पल जैसी मजबूत किस्म किसानों को बाजार में अच्छी पकड़ दे सकती है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के लहसुन अनुसंधान निदेशालय ने इसे विकसित किया है। बीज की गुणवत्ता की जांच कई चरणों में हुई है। हर पैकेट में अंकुरण दर 85 फीसदी से ज्यादा रहने की गारंटी है।

नवंबर का मौसम बुवाई के लिए अनुकूल

इस समय उत्तर भारत में न्यूनतम तापमान सामान्य से 1.6 से 3 डिग्री नीचे चल रहा है। ठंडी हवा और सुबह की ओस लहसुन की जड़ों को मजबूत बनाने में मदद करती है। दक्षिण भारत में भी तापमान 20 से 25 डिग्री के बीच बना हुआ है, जो बुवाई के लिए उपयुक्त है। लेकिन खेत में पानी का भराव नहीं होना चाहिए। अगर मिट्टी भारी है तो बुवाई से पहले गोबर की खाद और पुरानी फसल की राख मिला दें।

इससे मिट्टी हल्की हो जाएगी और जड़ें आसानी से फैल सकेंगी। कई किसान भाई जल्दबाजी में बुवाई कर देते हैं और बाद में जलभराव की समस्या से परेशान होते हैं। इसका असर पूरी फसल पर पड़ता है। इसलिए खेत की ऊंचाई एक समान रखें और किनारे पर छोटी नालियां बना लें।

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सस्ता बीज

सरकार का लक्ष्य है कि किसानों की लागत कम हो और कमाई बढ़े। भिमा पर्पल का बीज सस्ता होने से छोटे किसान भी इसे आसानी से खरीद सकते हैं। अगर बाजार में लहसुन का भाव चालीस से पचास रुपये किलो रहा तो एक हेक्टेयर से दो लाख रुपये तक की आय हो सकती है। इसमें बीज की लागत सिर्फ 250 रुपये प्रति हेक्टेयर आएगी। बाकी खर्च खाद, मजदूरी और सिंचाई में होगा।

कृषि विज्ञान केंद्र के विशेषज्ञ बताते हैं कि बुवाई से पहले खेत में खरपतवार पूरी तरह साफ कर दें। हर 15 दिन में हल्की सिंचाई करें। ज्यादा पानी देने से लौंग सड़ने लगती है। कीटों से बचाव के लिए नीम की पत्तियों को पानी में उबालकर ठंडा करें और छिड़काव करें। यह तरीका सस्ता और कारगर दोनों है। नेशनल सीड्स कॉर्पोरेशन ने वादा किया है कि बीज खरीदने वाले हर किसान को मुफ्त ट्रेनिंग दी जाएगी। इसमें बुवाई का सही तरीका, खाद की मात्रा और कीट नियंत्रण की जानकारी शामिल होगी।

घर बैठे करें ऑर्डर

अब बीज लेने के लिए बाजार की दौड़भाग नहीं करनी पड़ेगी। नेशनल सीड्स कॉर्पोरेशन की आधिकारिक वेबसाइट पर जाएं और भिमा पर्पल सर्च करें। वहां से सीधे ऑर्डर कर सकते हैं। भुगतान के लिए क्यूआर कोड भी उपलब्ध है, जिसे स्कैन करके यूपीआई से पैसे भेजे जा सकते हैं। डिलीवरी 3 से 5 दिन में घर पर हो जाती है। छोटे किसानों के लिए यह सुविधा बहुत बड़ी राहत है।

पहले उन्हें कोऑपरेटिव सोसाइटी या दूर के बाजार जाना पड़ता था। अब सब कुछ मोबाइल पर हो रहा है। कृषि मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के अनुसार देश में जैविक खेती का रकबा तेजी से बढ़ रहा है। बैंगनी लहसुन की मांग भी इसी के साथ बढ़ रही है। लोग रासायनिक खाद से बनी फसल के बजाय प्राकृतिक उत्पादों को तरजीह दे रहे हैं। भिमा पर्पल जैसी किस्में इस मांग को पूरा करने में सक्षम हैं।

लहसुन की खेती में सफलता के छोटे-छोटे राज

लहसुन की सफल खेती के लिए कुछ बातें हमेशा ध्यान में रखें। बुवाई के समय लौंग को ज्यादा गहराई में न बोएं। 2-3 सेंटीमीटर गहराई काफी है। पंक्तियों के बीच 15 सेंटीमीटर और लौंग के बीच 10 सेंटीमीटर की दूरी रखें। इससे हर पौधे को पर्याप्त जगह और पोषण मिलेगा। खाद के रूप में गोबर की सड़ी खाद दस टन प्रति हेक्टेयर डालें।

रासायनिक खाद में यूरिया, डीएपी और पोटाश का संतुलित उपयोग करें। लेकिन जैविक खेती करना चाहते हैं तो वर्मी कम्पोस्ट और नीम की खली काफी है। फसल में पहली सिंचाई बुवाई के 10 दिन बाद करें। इसके बाद मौसम के अनुसार हर 12 से 15 दिन में पानी दें। लहसुन की पत्तियां पीली पड़ने लगें तो समझ जाएं कि फसल तैयार है। तुरंत कटाई शुरू कर दें। देर करने से लौंग फटने लगती है और बाजार मूल्य कम हो जाता है।

कुल मिलाकर भिमा पर्पल लहसुन की खेती के लिए एक सुनहरा मौका है। सस्ता बीज, कम समय में तैयार फसल और बाजार में अच्छी कीमत। बस जरूरत है सही तैयारी और थोड़ी मेहनत की। नेशनल सीड्स कॉर्पोरेशन का यह कदम छोटे-बड़े हर किसान के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।

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  • Shashikant

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