शकरकंद की भू कृष्णा बायोफोर्टीफाइड किस्म अब किसानों के लिए सेहत और मुनाफे का जरिया बन सकती है। ये खास किस्म विटामिन A से भरपूर है और शुगर मरीजों के लिए फायदेमंद है। गर्मी की विदाई और बारिश की दस्तक के साथ जून-जुलाई का मौसम इसकी खेती शुरू करने के लिए बिल्कुल सही है। शहरों में इसकी मांग बढ़ रही है, क्योंकि लोग सेहतमंद भोजन की ओर बढ़ रहे हैं। आइए, जानते हैं कि भू कृष्णा शकरकंद की खेती कैसे करें और इसके बीज कहाँ से लें।
भू कृष्णा का सेहतमंद जादू
भू कृष्णा बायोफोर्टीफाइड शकरकंद एक ऐसी किस्म है, जो सेहत के लिए खास तौर पर तैयार की गई है। इसमें β-कारोटीन की प्रचुर मात्रा होती है, जो विटामिन A का स्रोत है और आँखों की रोशनी बढ़ाने में मदद करती है। इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम है, इसलिए शुगर मरीज इसे खाकर ब्लड शुगर को काबू में रख सकते हैं। ये फसल प्रोटीन, फाइबर, और एंटीऑक्सिडेंट्स से लैस है, जो शरीर को ताकत देती है और बीमारियों से बचाती है। गाँवों में इसे उबालकर, भूनकर, या सब्जी बनाकर खाया जा सकता है, जो स्वाद के साथ सेहत का ख्याल रखता है। कम पानी और जैविक खाद में उगने की खूबी इसे सूखे इलाकों के लिए खास बनाती है।
खेत में शकरकंद की नींव
भू कृष्णा शकरकंद की खेती शुरू करने के लिए सही वक्त यही है। इसे बेलों से उगाया जाता है, और बुआई जून-जुलाई में करनी चाहिए, जब बारिश की शुरुआत हो। खेत को हल से जोतकर समतल करें और गोबर की खाद या वर्मीकम्पोस्ट डालें, ताकि मिट्टी की उर्वरता बढ़े। छितुआ विधि अपनाएँ, जिसमें बेलों को खेत में बिछाकर हल्की मिट्टी से ढक दें। ये तरीका कम मेहनत में अच्छी पैदावार देता है। बारिश होने पर सिंचाई की जरूरत कम पड़ती है, लेकिन अगर पानी कम हो, तो ड्रिप सिंचाई से काम चल सकता है। बेलों को 30-40 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाएँ, ताकि जड़ें फैलकर मजबूत हों।
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बीज और बेलों का स्रोत
भू कृष्णा शकरकंद (Bhukrishna variety sweet potato seeds) की बेलें पाने के लिए नेशनल सीड कॉर्पोरेशन (NSC) स्टोर सबसे भरोसेमंद विकल्प है। NSC की आधिकारिक वेबसाइट या नजदीकी स्टोर से संपर्क करें, जहाँ प्रमाणित और रोगमुक्त बेलें मिलती हैं। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, और अन्य राज्यों के कृषि केंद्रों में भी ये उपलब्ध हैं। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स, जैसे Amazon India या कृषि मंत्रालय की वेबसाइट्स, भी बेलें बेचते हैं। बेलें खरीदते समय उनकी ताजगी और गुणवत्ता चेक करें। बुआई से पहले इन्हें हल्के पानी में 4-6 घंटे भिगो दें, ताकि जड़ें जल्दी पकड़ बनाएँ।
मिट्टी और देखभाल का खेल
भू कृष्णा शकरकंद के लिए दोमट या रेतीली मिट्टी सबसे मुफीद है, जिसमें पानी का रुकावट न हो। इसका पीएच 5.5 से 6.5 के बीच रखें। ये फसल खारी मिट्टी में भी उग सकती है, जो सूखे इलाकों के लिए वरदान है। हर 15-20 दिन में हल्की सिंचाई करें, लेकिन पानी का जमाव न होने दें, वरना जड़ें सड़ सकती हैं। गोबर की खाद या कम्पोस्ट डालने से पैदावार बढ़ती है। मिट्टी की जाँच कराने से सही पोषक तत्वों का पता चलता है। खरपतवार हटाने के लिए हाथ से निराई करें, ताकि शकरकंद की ग्रोथ बाधित न हो।
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कीटों से बचाव का आसान तरीका
शकरकंद की फसल को कीटों से बचाना जरूरी है। पत्ता लपेट सुंडी और चूहे इसे नुकसान पहुँचा सकते हैं। नीम के पत्तों को पानी में भिगोकर छिड़काव करने से कीट भाग जाते हैं। खेत के किनारे गेंदे के फूल लगाने से भी कीटों की संख्या कम होती है। अगर पत्तों पर धब्बे या सड़न दिखे, तो 500 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड को 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़कें। ये देसी नुस्खा सस्ता और असरदार है। फसल की नियमित निगरानी करें और कृषि केंद्र से सलाह लें।
भू कृष्णा शकरकंद की खेती कम लागत में अच्छा मुनाफा देती है। रासायनिक खाद की जगह गोबर और नीम का इस्तेमाल लागत को घटाता है। शहरों में इसकी मांग बढ़ रही है, खासकर शुगर मरीजों और सेहत पसंद लोगों में। स्थानीय मंडी या ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर इसे बेचकर अच्छा दाम मिलता है। छोटे खेत में भी शुरूआत कर सकते हैं, जो धीरे-धीरे आमदनी का जरिया बन सकता है।
सरकारी सहायता का हाथ
सरकार शकरकंद जैसी फसलों को बढ़ावा दे रही है। परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) के तहत जैविक खेती के लिए सब्सिडी मिलती है। बीज या बेलें खरीदने पर छूट का फायदा उठाया जा सकता है। ड्रिप सिंचाई के लिए प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) मदद करती है। नजदीकी कृषि केंद्र से प्रशिक्षण और सलाह भी उपलब्ध है। ये योजनाएँ खेती को आसान और फायदेमंद बनाती हैं।
भू कृष्णा शकरकंद की खेती न सिर्फ़ मुनाफा देती है, बल्कि सेहत का खजाना भी है। कम पानी और देसी खाद से उगने वाली ये फसल पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद है। इसे अपनाकर गाँवों की तरक्की और सेहतमंद भविष्य की नींव रखी जा सकती है। जून 2025 से शुरूआत कर इस फसल को अपने खेत में लाएँ और नई शुरुआत करें।
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