पढ़ें करेले की ऑर्गेनिक खेती का सही तरीका, कम लागत में ज्यादा मुनाफा

Bitter Gourd Organic Farming: करेला भारतीय किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण सब्जी है, जिसकी मांग हर मौसम में बनी रहती है। यह न केवल पोषण से भरपूर होता है, बल्कि कई औषधीय गुणों के कारण घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी अच्छी कीमत पर बिकता है। यदि किसान इसे ऑर्गेनिक तरीके से उगाएं, तो न केवल उनकी फसल की गुणवत्ता बेहतर होगी, बल्कि उन्हें अधिक मुनाफा भी मिलेगा। ऑर्गेनिक खेती में रासायनिक खादों और कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं किया जाता, जिससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और पर्यावरण पर भी कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता।

Bitter Gourd Organic Farming

खेत और मिट्टी की तैयारी (Bitter Gourd Organic Farming)

करेले की खेती के लिए सबसे पहले खेत की अच्छी तरह जुताई करनी होती है। मिट्टी को भुरभुरा बनाकर उसमें गोबर की खाद, वर्मी कम्पोस्ट और जैविक तत्व मिलाना जरूरी होता है, ताकि फसल को पर्याप्त पोषण मिल सके। खेत का चुनाव करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पानी निकासी की अच्छी व्यवस्था हो, क्योंकि करेले के पौधे जलभराव सहन नहीं कर पाते।

अगर मिट्टी बलुई-दोमट हो और उसका पीएच स्तर 6 से 7 के बीच हो, तो यह करेले की खेती के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है। खेती शुरू करने से पहले मिट्टी की जांच करवा लेनी चाहिए, ताकि उसकी पोषकता और आवश्यक सुधारों की जानकारी मिल सके।

बीज की तैयारी और बुवाई

करेले की खेती के लिए उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का चयन करना बहुत जरूरी है। अगर बीज खराब होंगे तो उत्पादन पर नकारात्मक असर पड़ेगा। आमतौर पर एक हेक्टेयर खेत के लिए 3 से 4 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बीजों को बोने से पहले गौमूत्र या नीम के पत्तों के काढ़े में भिगोकर उपचारित किया जाता है, जिससे वे फंगल संक्रमण और कीटों से सुरक्षित रहते हैं।

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बुवाई के लिए फरवरी-मार्च और जून-जुलाई का समय सबसे सही होता है। करेले के पौधों को बेल पर चढ़ाने के लिए मचान या जालीदार संरचना तैयार करनी होती है, जिससे फसल को अच्छा सहारा मिले और उपज भी बढ़े। पौधों के बीच उचित दूरी रखनी चाहिए, जिससे हवा और धूप का संचार सही ढंग से हो सके।

सिंचाई और देखभाल

करेले के पौधों को नियमित सिंचाई की जरूरत होती है, लेकिन जलभराव से बचना जरूरी है। गर्मी के मौसम में 5 से 7 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए, जबकि बारिश के दिनों में जरूरत के हिसाब से पानी देना चाहिए।

सिंचाई के लिए ड्रिप प्रणाली का उपयोग करना सबसे अच्छा होता है, क्योंकि इससे पानी की बचत होती है और पौधों की जड़ों को नमी भी बराबर मिलती रहती है। खेत में खरपतवार नियंत्रण के लिए समय-समय पर निराई-गुड़ाई करनी चाहिए, ताकि फसल स्वस्थ बनी रहे।

जैविक खाद और पोषण प्रबंधन

करेले की ऑर्गेनिक खेती (Bitter Gourd Organic Farming) में रासायनिक उर्वरकों की जगह जैविक खाद का उपयोग किया जाता है। इसके लिए गोबर की खाद, वर्मी कम्पोस्ट, हरी खाद और नीम की खली जैसी प्राकृतिक खादों का इस्तेमाल किया जाता है।

Bitter Gourd Organic Farming
Bitter Gourd Organic Farming

अगर पौधों को पर्याप्त पोषण नहीं मिलेगा, तो उनकी वृद्धि पर असर पड़ेगा और उत्पादन घट जाएगा। इसलिए खेत में केंचुआ खाद, हड्डी चूर्ण और जैविक कचरे से बनी खाद का उपयोग करना चाहिए। जैविक पोषण से फसल की गुणवत्ता बेहतर होती है और मिट्टी की उर्वरता भी बनी रहती है।

कीट और रोग नियंत्रण के जैविक उपाय

ऑर्गेनिक खेती में रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग नहीं किया जाता, बल्कि प्राकृतिक तरीकों से कीट और रोगों को नियंत्रित किया जाता है। करेले की फसल में लगने वाले मुख्य कीटों में लाल मकड़ी, फल छेदक कीट और चूसक कीट शामिल हैं। इनसे बचाव के लिए निम्न उपाय किए जा सकते हैं:

  1. नीम तेल का छिड़काव: नीम तेल फसल को कीटों से बचाने में बहुत कारगर होता है। 5 लीटर पानी में 50 मिलीलीटर नीम तेल मिलाकर स्प्रे करने से कीटों का प्रकोप कम होता है।
  2. फेरोमोन ट्रैप का उपयोग: यह विधि खासतौर पर फल छेदक कीटों के नियंत्रण में बहुत प्रभावी होती है।
  3. गौमूत्र और छाछ का छिड़काव: गौमूत्र और छाछ में एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं, जो फसल को रोगों से बचाने में सहायक होते हैं।

इसके अलावा, खेत में अंतरवर्तीय फसल प्रणाली अपनाकर भी कीट नियंत्रण किया जा सकता है। जैसे करेले के साथ तुलसी, अदरक या प्याज की फसल लगाई जाए, तो कीटों का प्रभाव कम होगा।

तुड़ाई और उत्पादन

करेले की तुड़ाई बुवाई के 60 से 70 दिनों के बाद शुरू हो जाती है। जब फल हरे, नरम और बिना दाग-धब्बे के दिखें, तभी उनकी तुड़ाई करनी चाहिए। अधिक दिनों तक तुड़ाई में देरी करने से करेले का स्वाद कड़वा हो सकता है और उसकी गुणवत्ता गिर सकती है।

एक हेक्टेयर खेत से लगभग 50 से 60 क्विंटल करेले की पैदावार हो सकती है, लेकिन अगर सही देखभाल और जैविक तरीकों का पालन किया जाए, तो यह उत्पादन और भी ज्यादा हो सकता है।

बाजार में बिक्री और मुनाफा

ऑर्गेनिक करेले (Organic Bitter Gourd) की बाजार में सामान्य करेले की तुलना में ज्यादा कीमत मिलती है। इसे ऑर्गेनिक स्टोर्स, सुपरमार्केट, मंडियों और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर बेचा जा सकता है। यदि किसान अपने उत्पाद को ऑर्गेनिक प्रमाणित करा लें, तो वे बड़े शहरों में इसे ऊंचे दामों पर बेच सकते हैं।

ऑर्गेनिक खेती में उत्पादन की लागत थोड़ी अधिक होती है, लेकिन बाजार में जैविक उत्पादों की मांग लगातार बढ़ रही है, जिससे किसानों को पारंपरिक खेती की तुलना में अधिक लाभ मिल सकता है।

Bitter Gourd Organic Farming
Bitter Gourd Organic Farming

सरकारी योजनाएँ

परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) के तहत जैविक खेती करने वाले किसानों को 31,500 रुपये/हेक्टेयर सहायता मिलती है। पूर्वोत्तर राज्यों में जैविक खेती के लिए मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन (MOVCDNER) योजना के तहत प्रशिक्षण और वित्तीय मदद दी जाती है।

करेले की ऑर्गेनिक खेती (Bitter Gourd Organic Farming) एक लाभदायक विकल्प है, जो न केवल किसानों को अच्छा मुनाफा दिला सकता है, बल्कि मिट्टी और पर्यावरण को भी सुरक्षित रखता है। इस विधि में प्राकृतिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग करके फसल को स्वस्थ रखा जाता है और किसानों को अच्छी गुणवत्ता वाली उपज मिलती है। अगर किसान सही तकनीकों का पालन करें, तो वे कम लागत में ज्यादा उत्पादन कर सकते हैं और बाजार में ऊंचे दाम पर अपनी फसल बेच सकते हैं।

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  • Shashikant

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