अमरूद की इस हाई-प्रॉफिट वैरायटी से किसान कमा रहे हैं तगड़ा मुनाफा, मार्केट में ₹600 किलो का भाव

Black Guava Cultivation: उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के खेतों में एक नया क्रांति का दौर चल रहा है काले अमरूद की खेती। यह फसल पारंपरिक हरे या गुलाबी अमरूद से बिल्कुल अलग है, और किसानों के लिए नया आय का स्रोत बन रही है। डॉक्टर कौशलेंद्र जैसे पर्यावरण प्रेमी किसान इसकी शुरुआत कर चुके हैं, जो पर्यावरण कार्यकर्ता के साथ-साथ खेती के क्षेत्र में भी सक्रिय हैं। उन्होंने उत्तर प्रदेश के सहारनपुर से पौधे मंगवाकर रोपाई शुरू की, और अब दूसरे किसान भी इसकी ओर रुख कर रहे हैं।

कम खर्च में उगने वाली यह किस्म बाजार में 500 से 600 रुपये प्रति किलो तक बिक रही है, जो छोटे किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है। सर्दियों के मौसम में जब फल बाजार चमकता है, काले अमरूद की अनोखी आकर्षण किसानों को नई उम्मीद दे रहा है। लेकिन यह फसल सिर्फ कमाई का साधन नहीं, बल्कि स्वास्थ्य का खजाना भी है। आइए, इसकी पूरी कहानी जानते हैं किस्म से लेकर खेती के तरीके और बाजार तक।

काले अमरूद की अनोखी किस्म

सुल्तानपुर में उगाई जा रही यह काले अमरूद की किस्म बिहार कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गई है, जो उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के लिए बिल्कुल फिट बैठती है। फल का वजन करीब 100 ग्राम होता है, और बाहर से काला दिखने वाला यह अमरूद अंदर से गहरे लाल या महरून रंग का गूदा रखता है।

दिखने में आकर्षक और स्वाद में हल्की मिठास वाली यह वैरायटी हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के कोलर क्षेत्र से लेकर बिहार तक फैल रही है। किसान भाई बताते हैं कि सहारनपुर जैसे इलाकों से पौधे मंगवाकर रोपाई आसान है। यह फसल ठंडे मौसम में अच्छी तरह बढ़ती है, और कम बीज वाली होने से बाजार में ग्राहकों को खूब भाती है।

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उत्तर प्रदेश में काले अमरूद की खेती अब एक ट्रेंड बन रही है। डॉक्टर कौशलेंद्र की तरह कई किसान इसे अपनाकर अपनी आय दोगुनी कर चुके हैं। सुल्तानपुर के एक छोटे किसान रामेश्वर सिंह ने 2 एकड़ में इसकी रोपाई की। पहले साल ही उन्हें 1.5 लाख का मुनाफा हुआ, क्योंकि बाजार में इसकी कीमत सामान्य अमरूद से दोगुनी है। इसी तरह, बिहार के मुजफ्फरपुर से सटे इलाकों में किसान इसे पारंपरिक फसलों के साथ इंटरक्रॉपिंग कर रहे हैं।

हिमाचल प्रदेश में भी कोलर क्षेत्र के किसान उत्तर प्रदेश से पौधे मंगवा रहे हैं, जहां पहाड़ी मिट्टी में यह अच्छी तरह पनप रही है। कुल मिलाकर, यह किस्म न केवल व्यावसायिक रूप से मजबूत है, बल्कि किसानों को पारंपरिक खेती से हटकर नया प्रयोग करने का आत्मविश्वास भी दे रही है। भारत में अमरूद की कुल खेती का क्षेत्र 1.9 लाख हेक्टेयर है, जिसमें से 10-15 प्रतिशत हिस्सा अब काली वैरायटी को मिल रहा है, जो तेजी से बढ़ रहा है।

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औषधीय गुणों से भरपूर

काले अमरूद सिर्फ कमाई का साधन नहीं, बल्कि स्वास्थ्य का खजाना भी है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट्स भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं, जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं। एंटी-एजिंग गुणों से बुढ़ापे के लक्षण कम होते हैं, और विटामिन सी व फिनोल जैसे तत्व पोषण देते हैं। आयुर्वेद में इसे प्राकृतिक ऊर्जा का स्रोत माना जाता है, जो डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर और सूजन जैसी समस्याओं में राहत देता है। एक शोध के अनुसार, 100 ग्राम काले अमरूद में 250 मिलीग्राम विटामिन-सी, विटामिन-ए और बी, कैल्शियम, आयरन और मल्टीविटामिन-मिनरल्स पाए जाते हैं। यह एंटीऑक्सीडेंट कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने में मदद करता है, और फाइबर की भरपूर मात्रा संक्रमण से बचाव करती है।

किसान इसे औषधीय फसल के रूप में प्रचारित कर रहे हैं, जिससे बाजार में मांग और बढ़ रही है। उदाहरण के लिए, दिल्ली और मुंबई के स्वास्थ्य स्टोरों में काले अमरूद को ‘सुपरफूड’ के रूप में बेचा जा रहा है। इसके अलावा, पत्तियां भी लाल रंग की होती हैं, जो चाय या चूर्ण के रूप में इस्तेमाल होती हैं।

एक अध्ययन में पाया गया कि काले अमरूद के पत्तों में एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटी-माइक्रोबियल गुण होते हैं, जो पाचन तंत्र को मजबूत बनाते हैं। ऐसे में, यह फसल न केवल पैसे लाती है, बल्कि किसानों को स्वास्थ्य जागरूकता का संदेश भी देती है। सर्दियों में इसका सेवन सर्दी-खांसी और कमजोरी को दूर रखता है, जो किसान परिवारों के लिए अतिरिक्त फायदा है।

कम लागत में आसान खेती

काले अमरूद की खेती की खासियत यह है कि इसमें ज्यादा खर्चा नहीं लगता। दोमट या रेतीली मिट्टी, जो पानी अच्छे से निकाल दे, इसके लिए सबसे सही है। पीएच मान 6 से 7.5 तक रखें, ताकि पौधे मजबूत बढ़ें। रोपाई के लिए 15 से 35 डिग्री तापमान आदर्श है, और गहरी जुताई के बाद गोबर की खाद मिलाएं। पौधों के बीच 5-6 मीटर की दूरी रखें, ताकि फैलने की जगह मिले।

कीट-रोगों का खतरा कम होने से पैदावार अच्छी मिलती है – एक पेड़ से 50 किलोग्राम तक फल। नियमित सिंचाई और हल्की खाद से पौधे 2-3 साल में फल देने लगते हैं, और 7-10 साल में चरम पर पहुंच जाते हैं। छोटे किसान भी बिना ज्यादा मेहनत के शुरू कर सकते हैं।

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खेती का तरीका सरल है: जून-जुलाई में पौधे लगाएं, और ड्रिप इरिगेशन से पानी दें। प्रति एकड़ 100-120 पौधे लगाने पर लागत 20-30 हजार रुपये आती है, लेकिन तीसरे साल से 1-2 लाख का मुनाफा शुरू हो जाता है। हाई डेंसिटी प्लांटिंग से उपज दोगुनी हो सकती है। हालांकि, चुनौतियां भी हैं ज्यादा ठंड या ओले से नुकसान हो सकता है, इसलिए नेटिंग का इस्तेमाल करें।

कीटों से बचाव के लिए नीम आधारित स्प्रे पर्याप्त है। बिहार और उत्तर प्रदेश में सरकार सब्सिडी दे रही है जैसे बेगूसराय में 2 लाख तक की मदद। हिमाचल में भी किसान इसे पहाड़ी खेती में अपनाने लगे हैं। कुल मिलाकर, यह फसल 30-35 साल तक लाभ देती है, जो लंबे निवेश के लिए बेस्ट है।

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किसानों के लिए क्यों है यह फसल गेम चेंजर

उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में जहां अमरूद की खेती पहले से ही प्रमुख है, काले अमरूद नया आय का द्वार खोल रहा है। पारंपरिक किस्मों जैसे अल्लाहाबाद सफेदा या लखनऊ 49 के अलावा यह वैरायटी अनोखी बाजार संभावनाएं पैदा कर रही है। डॉ. कौशलेंद्र जैसे किसान कहते हैं कि यह छोटे-बड़े सभी के लिए फायदेमंद है, और लंबे समय तक लाभ देती है। सही देखभाल से 30-35 साल तक कमाई का सिलसिला चलता रहेगा। बिहार के किसानों की तरह उत्तर प्रदेश में भी यह फसल आत्मविश्वास बढ़ा रही है, ताकि पारंपरिक खेती के अलावा नई प्रयोग हो सकें। बाजार में इसकी कीमत 500-600 रुपये प्रति किलो है, और दिल्ली-मुंबई जैसे शहरों में निर्यात की संभावना बढ़ रही है।

भविष्य में काले अमरूद का बाजार और बड़ा होगा, क्योंकि स्वास्थ्य जागरूकता बढ़ रही है। भारत में अमरूद उत्पादन 4.92 मिलियन टन है, जिसमें उत्तर प्रदेश का 22.93% हिस्सा है। काली वैरायटी से किसान प्रोसेस्ड प्रोडक्ट्स जैसे जैम, जूस या चाय बना सकते हैं। सरकार की क्लस्टर बागवानी योजना से सब्सिडी मिल रही है, जो छोटे किसानों को मदद करेगी।

अगर आप भी ट्राई करना चाहते हैं, तो स्थानीय नर्सरी से पौधे मंगवाएं और सर्दी से पहले रोपाई करें। यह फसल न केवल आर्थिक रूप से मजबूत बनाएगी, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान देगी। उत्तर प्रदेश और बिहार के खेतों में काले अमरूद की हरियाली से न केवल किसानों की जेब भरेगी, बल्कि देश की कृषि अर्थव्यवस्था को नया आयाम भी देगी।

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  • Shashikant

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