Black Wheat Farming: हमारे देश में गेहूं की खेती सदियों से किसानों की रीढ़ रही है, लेकिन मध्य प्रदेश के कुछ किसानों ने इस पारंपरिक फसल को नया रंग देकर अपनी जिंदगी बदल दी है। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं काले गेहूं की, जो न सिर्फ सेहत के लिए फायदेमंद है, बल्कि किसानों की जेब भी भर रहा है। मध्य प्रदेश के कई किसान इस अनोखी फसल को उगाकर लाखों कमा रहे हैं। ये गेहूं दिखने में जितना अलग है, उतना ही खास है इसके गुणों और मुनाफे में। आइए, जानते हैं कि काला गेहूं क्या है, ये कैसे उगाया जाता है और क्यों ये किसानों के लिए सोने की खान बन रहा है।
काला गेहूं
काला गेहूं सामान्य गेहूं से दिखने में तो अलग है ही, इसके गुण भी इसे खास बनाते हैं। इसमें सामान्य गेहूं की तुलना में 60 फीसदी ज्यादा आयरन होता है, जो इसे डायबिटीज और खून की कमी जैसे रोगों से जूझ रहे लोगों के लिए फायदेमंद बनाता है। इसका स्वाद भी शरबती गेहूं जैसा होता है, और ये आसानी से पच जाता है। बाजार में इसकी माँग तेजी से बढ़ रही है, क्योंकि लोग अब सेहतमंद खानपान की ओर रुख कर रहे हैं।
मध्य प्रदेश के किसान इस माँग का फायदा उठा रहे हैं और काले गेहूं को ऊँचे दाम पर बेचकर मोटा मुनाफा कमा रहे हैं। एक किसान ने तो 8 एकड़ में 500 किलो बीज बोकर 2000 किलो काला गेहूं उगाया, जिससे उनकी कमाई कई गुना बढ़ गई।
मध्य प्रदेश में काले गेहूं की लहर
मध्य प्रदेश के किसानों ने पिछले कुछ सालों में काले गेहूं की खेती को बड़े पैमाने पर अपनाया है। पहले कुछ ही किसान इसकी खेती करते थे, लेकिन अब इसकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है। इसका कारण है इसकी कम लागत और ज्यादा कीमत। सामान्य गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) जहाँ 2275 रुपये प्रति क्विंटल है, वहीं काला गेहूं 4000 से 6000 रुपये प्रति क्विंटल तक बिक रहा है। यानी मुनाफा दोगुना-तिगुना। मध्य प्रदेश के अलावा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक और उत्तराखंड जैसे राज्यों से भी इसकी माँग आ रही है। कई किसानों ने यूट्यूब और कृषि वैज्ञानिकों की सलाह से इसकी खेती शुरू की और आज अपनी मेहनत का फल पा रहे हैं।
काले गेहूं की खेती का तरीका
काले गेहूं की खेती रबी सीजन में की जाती है, जो अक्टूबर-नवंबर में बोया जाता है और मार्च-अप्रैल में कटाई के लिए तैयार हो जाता है। ये फसल सामान्य गेहूं की तरह ही उगाई जाती है, लेकिन कुछ खास बातों का ध्यान रखना पड़ता है। सबसे पहले अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी चुनें। खेत की जुताई के बाद 20-25 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर डालें। बीज की मात्रा 100-120 किलो प्रति हेक्टेयर रखें और बीजोपचार करें ताकि रोगों से बचाव हो।
ड्रिप सिंचाई का इस्तेमाल करें, क्योंकि ये फसल ज्यादा पानी सहन नहीं करती। नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश की संतुलित खाद (120:60:40 किग्रा प्रति हेक्टेयर) डालें। कीटों और रोगों से बचाव के लिए नीम का तेल या जैविक कीटनाशक इस्तेमाल करें। सही समय पर बुवाई और देखभाल से एक हेक्टेयर में 30-40 क्विंटल तक पैदावार मिल सकती है।
क्यों है काला गेहूं खास?
काला गेहूं अपनी पोषण शक्ति के कारण बाजार में अलग पहचान बना रहा है। इसमें एंथोसायनिन नामक तत्व होता है, जो इसे गहरा बैंगनी-काला रंग देता है। ये तत्व एंटीऑक्सीडेंट का काम करता है, जो शरीर को कई बीमारियों से बचाता है। डायबिटीज रोगियों के लिए ये गेहूं कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स के कारण फायदेमंद है। साथ ही, इसमें प्रोटीन, स्टार्च और अन्य पोषक तत्व सामान्य गेहूं जितने ही होते हैं। बाजार में इसकी रोटी, बिस्किट, और अन्य उत्पादों की माँग बढ़ रही है, जिससे किसानों को अच्छा दाम मिल रहा है। मध्य प्रदेश के किसानों ने इसकी खेती को अपनाकर न सिर्फ अपनी आय बढ़ाई, बल्कि सेहतमंद खेती को भी बढ़ावा दिया।
काले गेहूं की खेती के लिए सलाह
अगर आप भी काले गेहूं की खेती शुरू करना चाहते हैं, तो कुछ बातों का ध्यान रखें। सबसे पहले अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र या विश्वसनीय बीज विक्रेता से प्रमाणित बीज लें। खेत में जैविक खाद का ज्यादा इस्तेमाल करें, ताकि फसल की गुणवत्ता बढ़े। समय पर बुवाई करें, क्योंकि देर होने से पैदावार कम हो सकती है। ड्रिप सिंचाई और मल्चिंग का इस्तेमाल करें, इससे पानी की बचत होगी और खरपतवार की समस्या कम होगी। फसल तैयार होने पर स्थानीय मंडी या सीधे व्यापारियों से संपर्क करें। कई किसान ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर भी अपनी फसल बेच रहे हैं, जिससे दाम और बेहतर मिलते हैं।
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