चकोरी की खेती से किसानों की चांदी, कम लागत, कम देखभाल और चौतरफा मुनाफा

Chakori Ki Kheti: चकोरी की खेती आजकल किसानों के लिए एक नया और मुनाफे का जरिया बन रही है। ये न सिर्फ कम लागत वाली फसल है, बल्कि इससे अच्छी खासी कमाई भी हो सकती है। पारंपरिक फसलों की तुलना में चकोरी की खेती से किसानों को ज्यादा मुनाफा मिल रहा है, और कई किसान इसे अपनाकर लाखों कमा रहे हैं।

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी और हरियाणा के हमीरपुर जैसे इलाकों में चकोरी की खेती तेजी से लोकप्रिय हो रही है। इस लेख में हम चकोरी की खेती के बारे में पूरी जानकारी देंगे इसका इस्तेमाल, खेती का तरीका, सही समय, खाद, कटाई, बिक्री, लागत और मुनाफा। आइए जानते हैं कि चकोरी की खेती (Chakori Ki Kheti) कैसे किसानों की जिंदगी बदल सकती है।

चकोरी क्या है?

चकोरी, जिसे कासनी (Chicory) भी कहते हैं, कोई पक्षी नहीं बल्कि एक हरी पत्तेदार सब्जी है, जिसका वैज्ञानिक नाम Cichorium intybus है। इसका कंद मूली की तरह दिखता है, और इसकी जड़, तना, पत्तियां और बीज सभी काम में आते हैं। चकोरी को सलाद, सूप, सब्जी या कॉफी पाउडर के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसकी पत्तियों को कच्चा सलाद के तौर पर खाया जाता है या पकाकर सब्जी बनाई जाती है।

चकोरी की जड़ों को सुखाकर पाउडर बनाया जाता है, जिसे कॉफी, चॉकलेट, बिस्किट और दवाइयों में मिलाया जाता है। ये सेहत के लिए भी बहुत फायदेमंद है। चकोरी भूख बढ़ाने, कब्ज दूर करने, पेट की समस्याओं को ठीक करने, लीवर और पित्त की थैली के विकारों को सुधारने में मदद करती है। इसमें एंटी-इन्फ्लेमेटरी गुण होते हैं, जो कैंसर और दिल की बीमारियों को रोकने में सहायक हैं। इसके अलावा, ये पाचन तंत्र को मजबूत करती है और तेज धड़कन को नियंत्रित करने में भी उपयोगी है।

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चकोरी का इस्तेमाल

चकोरी एक बहुउपयोगी फसल है, जिसका हर हिस्सा किसी न किसी रूप में काम आता है। इसकी पत्तियों को सलाद या सब्जी के तौर पर खाया जाता है, जो पशुओं के लिए भी हरा चारा बनता है। चकोरी की जड़ों को सुखाकर पाउडर बनाया जाता है, जिसे कॉफी उद्योग में 20-50% तक मिलाया जाता है, खासकर कैफीन-मुक्त कॉफी में। ये पाउडर बिस्किट, चॉकलेट और अन्य खाद्य पदार्थों में भी इस्तेमाल होता है।

दवा उद्योग में चकोरी का उपयोग इंसानों और जानवरों की दवाइयां बनाने में होता है। ये भूख बढ़ाने, पाचन सुधारने, लीवर की समस्याओं को कम करने और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों को रोकने में मदद करती है। चकोरी की मांग कॉफी, दवा और खाद्य उद्योगों में लगातार बढ़ रही है, जिससे किसानों को अच्छा मुनाफा मिल रहा है।

चकोरी की खेती (Chakori Ki Kheti) का सही समय और जलवायु

चकोरी की खेती (Chakori Ki Kheti) के लिए सही समय अक्टूबर से नवंबर का महीना है, जब तापमान 15 से 25 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है। ये फसल सामान्य बारिश और तापमान में अच्छी तरह बढ़ती है। शुरुआती अंकुरण के लिए 25 डिग्री तापमान आदर्श है। चकोरी की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है, जिसमें जल निकासी की अच्छी व्यवस्था हो। मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए। जैविक पदार्थों से भरपूर मिट्टी चकोरी के पौधों को जरूरी पोषण देती है, जिससे पैदावार बढ़ती है। उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान जैसे राज्यों की जलवायु इस खेती के लिए उपयुक्त है।

चकोरी की खेती का तरीका

चकोरी की खेती (Chakori Ki Kheti) शुरू करने के लिए खेत को अच्छी तरह तैयार करना जरूरी है। सबसे पहले खेत की गहरी जुताई करें और मिट्टी को भुरभुरा बनाएं। खेत में पानी लगाकर पाटा चलाएं, ताकि जमीन समतल हो जाए। एक एकड़ खेत के लिए 600 ग्राम बीज पर्याप्त होते हैं। बीजों को छिड़काव विधि से बो सकते हैं या 4-5 फीट चौड़े बेड बनाकर बुवाई करें। बुवाई से पहले खेत में 5-6 ट्रॉली पुरानी गोबर की खाद डालें।

इसके अलावा, सल्फर और जिंक खाद का मिश्रण भी मिलाएं, ताकि पौधों को शुरुआती पोषण मिले। अगर फसल की बढ़ोतरी धीमी दिखे, तो नाइट्रोजन युक्त खाद, जैसे यूरिया, का इस्तेमाल करें। खेत में जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए, क्योंकि ज्यादा पानी जड़ों को नुकसान पहुंचा सकता है। चकोरी की खेती में कीट और बीमारियों की समस्या कम होती है, जिससे रखरखाव आसान रहता है।

चकोरी के लिए खाद

चकोरी की खेती (Chakori Ki Kheti) में गोबर की खाद सबसे अच्छी मानी जाती है। एक एकड़ खेत में 5-6 ट्रॉली पुरानी गोबर की खाद डालने से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और पैदावार अच्छी होती है। इसके साथ सल्फर और जिंक खाद का मिश्रण भी डालें, जो पौधों के विकास में मदद करता है। अगर फसल की ग्रोथ कम दिख रही हो, तो नाइट्रोजन युक्त खाद, जैसे यूरिया, का उपयोग करें। यूरिया डालने से पौधों का विकास तेज होता है और पत्तियां हरी-भरी रहती हैं। जैविक खाद का इस्तेमाल न सिर्फ पैदावार बढ़ाता है, बल्कि मिट्टी की सेहत को भी बनाए रखता है।

चकोरी की कटाई

चकोरी की कटाई का समय उसके उपयोग पर निर्भर करता है। अगर हरे चारे के लिए खेती कर रहे हैं, तो बुवाई के 25-30 दिन बाद पहली कटाई की जा सकती है। एक फसल से 10-12 बार चारे की कटाई हो सकती है, क्योंकि पौधे 12-15 दिन में दोबारा कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। अगर कंद और बीज चाहिए, तो बुवाई के 120-150 दिन बाद कटाई करें।

कंद की खुदाई के लिए कुदाल या फावड़े से ऊपरी मिट्टी हटाकर जड़ें निकालें। बीजों की कटाई दो-तीन बार अलग-अलग समय पर की जाती है, क्योंकि बीज धीरे-धीरे पकते हैं। अक्टूबर-नवंबर में बुवाई की गई फसल की कटाई अप्रैल-मई में शुरू हो जाती है। कटाई के समय जड़ों को सावधानी से निकालें, ताकि वे टूटें नहीं।

चकोरी की बिक्री

चकोरी की बिक्री के लिए कांट्रैक्ट फार्मिंग सबसे अच्छा तरीका है। किसान कॉफी, बिस्किट, चॉकलेट, और दवा बनाने वाली कंपनियों से संपर्क कर सकते हैं। इन कंपनियों के साथ पहले से कीमत तय करके चकोरी की खेती करें, ताकि नुकसान का जोखिम न रहे। चकोरी के कंद का बाजार भाव 400-600 रुपये प्रति क्विंटल और बीज का भाव 8000 रुपये प्रति क्विंटल तक मिलता है। कई कंपनियां किसानों को बीज भी उपलब्ध कराती हैं, जिससे लागत और कम हो जाती है। बाराबंकी और हमीरपुर जैसे इलाकों में किसान समूह बनाकर चकोरी की खेती करते हैं और कंपनियों को बेचकर अच्छा मुनाफा कमाते हैं। स्थानीय मंडियों में भी चकोरी की पत्तियां और कंद बेचे जा सकते हैं।

चकोरी की खेती में लागत और मुनाफा

चकोरी की खेती (Chakori Ki Kheti) में लागत बहुत कम आती है। एक एकड़ में खेती करने के लिए लगभग 10,000 से 25,000 रुपये का खर्च होता है, जिसमें बीज, खाद, जुताई और मजदूरी शामिल है। एक एकड़ से 150 क्विंटल कंद और 5 क्विंटल बीज का उत्पादन हो सकता है। कंद को 500-600 रुपये प्रति क्विंटल और बीज को 8000 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से बेचकर किसान 1.2 से 1.5 लाख रुपये तक कमा सकते हैं। लागत घटाने के बाद 1 लाख रुपये से ज्यादा का शुद्ध मुनाफा मिल सकता है। समूह में खेती करने या कांट्रैक्ट फार्मिंग से मुनाफा और बढ़ सकता है।

चकोरी की खेती कहां होती है?

चकोरी की खेती मुख्य रूप से उत्तर भारत के राज्यों में होती है, जैसे उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश। उत्तर प्रदेश के बाराबंकी और बदायूं जिले में किसान समूह बनाकर चकोरी की खेती कर रहे हैं। हरियाणा के हमीरपुर जिले में चकोरी को इंटर-क्रॉप के रूप में उगाया जाता है। इन इलाकों में एक एकड़ से 150 क्विंटल तक कंद का उत्पादन हो रहा है, और सही तरीके से खेती करने पर किसान 1.25 लाख रुपये तक कमा रहे हैं।

चकोरी की खेती का खास फायदा

चकोरी की खेती (Chakori Ki Kheti) का सबसे बड़ा फायदा ये है कि इसे जंगली जानवर नुकसान नहीं पहुंचाते। जिन इलाकों में जंगली जानवर फसलों को बर्बाद कर देते हैं, वहां चकोरी की खेती एक सुरक्षित विकल्प है। इसकी पत्तियों का स्वाद हल्का कड़वा होता है, जिसके कारण जानवर इसे खाने से बचते हैं। साथ ही, चकोरी की खेती में कीट और रोगों की समस्या कम होती है, जिससे कीटनाशकों पर खर्च बचता है।

चकोरी की खेती (Chakori Ki Kheti) के लिए सुझाव

चकोरी की खेती (Chakori Ki Kheti) को सफल बनाने के लिए कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखें। सबसे पहले, अच्छी गुणवत्ता वाले बीज चुनें और अक्टूबर-नवंबर में बुवाई करें। खेत में गोबर की खाद और सल्फर-जिंक का मिश्रण जरूर डालें। जल निकासी की व्यवस्था बनाए रखें, ताकि जड़ें सड़ें नहीं। कटाई के समय जड़ों को सावधानी से निकालें, ताकि नुकसान न हो। कांट्रैक्ट फार्मिंग के लिए स्थानीय कंपनियों या कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) से संपर्क करें। अगर हरा चारा चाहिए, तो 25-30 दिन बाद कटाई शुरू करें और 10-12 बार कटाई का फायदा लें। जैविक खेती के तरीके अपनाएं, ताकि बाजार में ज्यादा दाम मिले।

चकोरी की खेती (Chakori Ki Kheti) एक ऐसी फसल है, जो कम लागत में ज्यादा मुनाफा देती है। इसकी पत्तियां, जड़ें और बीज सभी बाजार में मांग में हैं। कॉफी, दवा और खाद्य उद्योगों की बढ़ती मांग के कारण चकोरी की खेती किसानों के लिए सोने का अंडा साबित हो रही है। उत्तर प्रदेश के बाराबंकी और हरियाणा के हमीरपुर जैसे इलाकों में ये खेती पहले से सफल है। अगर आप भी कम खर्च में लाखों कमाना चाहते हैं, तो चकोरी की खेती शुरू करें। अपने नजदीकी KVK से संपर्क करें, सही जानकारी लें और अपने खेत को चकोरी के खजाने में बदलें।

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Author

  • Rahul Maurya

    मेरा नाम राहुल है। मैं उत्तर प्रदेश से हूं और मैंने संभावना इंस्टीट्यूट से पत्रकारिता में शिक्षा प्राप्त की है। मैं Krishitak.com का संस्थापक और प्रमुख लेखक हूं। पिछले 3 वर्षों से मैं खेती-किसानी, कृषि योजनाएं, और ग्रामीण भारत से जुड़े विषयों पर लेखन कर रहा हूं।

    Krishitak.com के माध्यम से मेरा उद्देश्य है कि देशभर के किसानों तक सटीक, व्यावहारिक और नई कृषि जानकारी आसान भाषा में पहुँचे। मेरी कोशिश रहती है कि हर लेख पाठकों के लिए ज्ञानवर्धक और उपयोगी साबित हो, जिससे वे खेती में आधुनिकता और आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ सकें।

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