Chana Ki Kheti: रबी का मौसम शुरू हो चुका है और नवंबर चने की बुवाई के लिए सबसे सही समय है। ठंडी हवाओं और कम पानी की जरूरत वाली यह फसल छोटे-मझोले किसानों की कमाई का बड़ा जरिया है। लेकिन सूखा, पाला या उकठा जैसे रोग फसल को बर्बाद कर सकते हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) और राज्य कृषि विभागों की सिफारिशों के मुताबिक, पांच ऐसी उन्नत किस्में हैं जो इन मुसीबतों से लड़ती हैं और प्रति हेक्टेयर 20-25 क्विंटल तक पैदावार देती हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि सही किस्म चुनने से लागत 20-30 प्रतिशत कम हो जाती है और बाजार में अच्छे दाम मिलने पर आय दोगुनी हो सकती है। उत्तर भारत के मैदानी इलाकों जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश में ये किस्में खासतौर पर फायदेमंद साबित हो रही हैं।
बुवाई का सही समय और तैयारी
चने की बुवाई नवंबर के पहले पखवाड़े में करें, जब तापमान 20-25 डिग्री रहता है। इससे पौधे मजबूत होते हैं और फली भरपूर बनती है। खेत को अच्छी तरह जोतकर भुरभुरा बनाएं, पुरानी फसल के अवशेष हटा दें। दोमट या काली मिट्टी सबसे अच्छी है, जहां जल निकासी ठीक हो। बीज दर 60-75 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखें और कतारों से 30 सेंटीमीटर दूरी पर बोएं। गोबर खाद मिलाने से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और उपज 10-15 प्रतिशत ज्यादा हो जाती है। अगर मिट्टी में नमी कम हो तो हल्की सिंचाई करें, लेकिन ज्यादा पानी से बचें वरना जड़ सड़न हो सकती है। ICAR के अनुसार, समय पर बुवाई से पाला या सूखे का असर कम पड़ता है।
उकठा रोग का खतरा
चना फसल का सबसे बड़ा दुश्मन उकठा रोग है, जो फफूंद से फैलता है और पत्तियों को सुखाकर फसल को 30-50 प्रतिशत नुकसान पहुंचा देता है। यह बीज या मिट्टी से फैलता है, खासकर नम और ठंडे मौसम में। प्रबंधन के लिए सबसे पहला कदम प्रतिरोधी किस्मों का चयन है। इसके अलावा, बीज उपचार कार्बेन्डाजिम से करें और खेत में पानी जमा न होने दें। अगर रोग दिखे तो जैविक फंगीसाइड जैसे ट्राइकोडर्मा का छिड़काव करें। कृषि विभाग की सलाह है कि रोगग्रस्त अवशेषों को न जलाएं, बल्कि दफनाएं। इन उपायों से नुकसान 70-80 प्रतिशत तक रोका जा सकता है, और दवाइयों का खर्च भी बचता है।
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ये हैं चने की शीर्ष 5 किस्में
ICAR की अनुशंसित ये किस्में सूखा, पाला और रोगों को झेल लेती हैं, ताकि किसान भाई निश्चिंत रहें।
पूसा-372 जल्दी पकने वाली किस्म है, जो 110-115 दिनों में तैयार हो जाती है। प्रति हेक्टेयर 20-25 क्विंटल उपज देती है और उकठा रोग से लड़ती है। छोटे दाने वाली यह किस्म असिंचित खेतों के लिए बेस्ट है, जहां पानी की किल्लत रहती है।
जेजी-11 (JG-11) सूखा सहन करने वाली है, जो 20-22 क्विंटल पैदावार देती है। मध्यम आकार के दाने और उकठा प्रतिरोध से यह मध्य प्रदेश और राजस्थान के किसानों की पसंद बनी हुई है। परिपक्वता 120 दिन की है, और कम पानी में भी अच्छी फसल देती है।
अवरोधी नाम से ही साफ है कि यह उकठा रोग के खिलाफ मजबूत है। देर से बुवाई पर भी 18-20 क्विंटल उपज देती है, जो बीज या मिट्टी संक्रमित इलाकों के लिए आदर्श है। दाने मध्यम होते हैं और बाजार में आसानी से बिक जाते हैं।
आरवीजी-202 काले चने की उच्च उपज वाली किस्म है, जो 25 क्विंटल से ज्यादा पैदावार देती है। थोड़े बड़े और आकर्षक दाने सिंचित क्षेत्रों में अगेती बुवाई के लिए परफेक्ट हैं। उकठा और अन्य रोगों से बचाव करती है, जिससे प्रीमियम दाम मिलते हैं।
विशाल बड़े दानों वाली किस्म है, जो 120 दिनों में पक जाती है। उकठा प्रतिरोधी होने से सिंचित-असिंचित दोनों खेतों में चलती है। बाजार में उच्च मूल्य मिलने से किसानों की आय बढ़ाती है, और पाला सहन करने की क्षमता मजबूत है।
अन्य टिप्स
इन किस्मों से चना खेती में पानी की जरूरत आधी रह जाती है, और बाजार मूल्य 50-70 रुपये प्रति किलोग्राम मिलने पर एक एकड़ से 40-50 हजार की कमाई हो सकती है। निराई-गुड़ाई समय पर करें और फसल कटाई मार्च-अप्रैल में हो। अगर पाला पड़े तो पॉलीथीन शीट से ढकें। स्थानीय कृषि केंद्र से प्रमित बीज लें।
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