Contour farming : किसान भाइयों, गाँव में कई बार खेत ढलान पर होते हैं, जहाँ बारिश का पानी बह जाता है और मिट्टी कटने की चिंता रहती है। ऐसे में कंटूर खेती एक बढ़िया तरीका है। ये ढलान के साथ-साथ मेड़ें बनाकर फसल उगाने का ढंग है, जिससे पानी रुकता है और मिट्टी बची रहती है। गाँव में ये पुराने जमाने से चला आ रहा है, पर अब इसे सही तरीके से करने से फायदा दोगुना हो सकता है। आइए, समझें कि कंटूर खेती कैसे करें और फसल को कैसे बेहतर बनाएँ।
खेत को समझने और तैयार करने का तरीका
कंटूर खेती शुरू करने के लिए पहले अपने खेत को अच्छे से देख लें। ढलान कितना है, ये जानना जरूरी है। गाँव में फावड़े से खेत की जुताई करें, पर ढलान की दिशा में नहीं, बल्कि उसके खिलाफ मेड़ें बनाएँ। मई-जून में जब बारिश की शुरूआत हो, तब मिट्टी में गोबर की सड़ी खाद डालें, एक बीघे में 6-8 गट्ठर डालना ठीक है। मेड़ें 2-3 फीट ऊँची और चौड़ी बनाएँ, ताकि पानी ऊपर से नीचे धीरे-धीरे जाए। गाँव में नीम की टहनियाँ मेड़ों पर डालें, ये मिट्टी को मजबूत करेगी। ऐसा करने से खेत तैयार हो जाएगा।
बुआई का सरल ढंग
कंटूर खेती में फसल मेड़ों के साथ बोई जाती है। गाँव में मक्का, मूँग, बाजरा या सोयाबीन जैसी फसलें चुनें। बीज को मेड़ों के ऊपरी हिस्से पर 2-3 फीट की दूरी पर बो दें। अगर ढलान ज्यादा हो, तो मेड़ों के बीच छोटे गड्ढे बनाएँ और वहाँ बीज डालें। गाँव में बीज को बोने से पहले हल्का भिगो लें, अंकुर जल्दी निकलेंगे। बुआई के बाद हल्का पानी डालें, पर बारिश का इंतजार करें। मक्का 90 दिन में और मूँग 60-70 दिन में तैयार हो जाएगी। इस तरह फसल ढलान पर भी बढ़िया उगेगी।
देखभाल का साधारण उपाय
कंटूर खेती में पानी और मिट्टी को संभालना सबसे बड़ी बात है। मेड़ों के बीच पानी रुकने से फसल को नमी मिलती है, तो हफ्ते में एक बार ही पानी दें। गाँव में गोबर का घोल हर 20 दिन में डालें, ये पौधों को ताकत देगा। नीम का पानी छिड़कें, कीटों से बचाव होगा। मेड़ों पर घास या सूखी पत्तियाँ डालें, ये मिट्टी को ढककर कटने से बचाएगी। गाँव में बबूल या सहजन के पेड़ ढलान के ऊपर लगाएँ, इनकी जड़ें मिट्टी को जकड़ेंगी। ऐसा करने से फसल स्वस्थ रहेगी और खेत सुरक्षित होगा।
फसल और कमाई का हिसाब
कंटूर खेती से मक्का 8-10 क्विंटल, मूँग 3-5 क्विंटल और बाजरा 5-7 क्विंटल प्रति बीघा मिल सकता है। मिट्टी बचेगी, तो फसल हर साल बढ़िया होगी। बाजार में मक्का 20-25 रुपये किलो, मूँग 70-80 रुपये किलो और बाजरा 20-30 रुपये किलो बिकता है। यानी एक बीघे से 20-30 हज़ार रुपये की कमाई हो सकती है। गाँव में बचे चारे को पशुओं को खिलाएँ, दोहरा फायदा होगा। ये तरीका पानी और मिट्टी की बर्बादी रोकता है, जिससे खेत की कीमत बढ़ती है।
गाँव वालों के लिए खास सलाह
गाँव में कंटूर खेती इसलिए फायदेमंद है, क्योंकि ढलान वाले खेतों का सही इस्तेमाल होता है। बारिश का पानी बेकार नहीं बहता, और मिट्टी सालों तक उपजाऊ रहती है। गाँव की बहनें मक्के की रोटी बनाती हैं, और मूँग की दाल घर में काम आती है। ये तरीका सूखे और बाढ़ दोनों से बचाता है। तो भाइयों, कंटूर खेती को अपने खेत में अपनाएँ, मिट्टी को बचाएँ और फसल को बढ़ाएँ।