बरसात में उगाएं लोबिया की ये वैरायटी, कम लागत में बंपर मुनाफा

Cowpea Cultivation in Monsoon: बरसात का मौसम लोबिया की खेती के लिए सबसे उपयुक्त समय है। उत्तर भारत में इसे बोड़ा, फलियां, बोरो, चौला, चौरा, या बरबट्टी जैसे नामों से जाना जाता है। यह फसल न केवल आसानी से उगाई जा सकती है, बल्कि कम लागत में अच्छा मुनाफा भी देती है। जून के अंत से जुलाई तक का समय बुआई के लिए आदर्श है, जो खरीफ 2025 के लिए वर्तमान मौसम के अनुकूल है। लोबिया की खेती लगभग हर प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, बशर्ते मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 6.5 के बीच हो। यह फसल मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने और किसानों की आय दोगुनी करने में मदद करती है।

लोबिया की खेती का महत्व

लोबिया एक बहुमुखी फसल है, जिसे हरी फली, सूखे बीज, हरी खाद, और पशु चारे के रूप में उपयोग किया जाता है। यह लेग्यूमिनस कुल की फसल है, जिसकी जड़ें वायुमंडल से नाइट्रोजन को अवशोषित करती हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है। बरसात के मौसम में जब हरी सब्जियों की उपलब्धता कम होती है, लोबिया की मांग बाजार में बढ़ जाती है। इसका उपयोग सलाद, सब्जी, और दाल के रूप में होता है, और यह प्रोटीन व पोषक तत्वों से भरपूर है।

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उन्नत किस्मों का चयन

लोबिया की खेती में सही किस्मों का चयन उपज बढ़ाने की कुंजी है। पूसा कोमल, अर्का गरिमा, पूसा बरसाती, पूसा फाल्गुनी, अम्बा, और स्वर्ण जैसी किस्में उच्च उत्पादन के लिए जानी जाती हैं। भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी द्वारा विकसित काशी कंचन, काशी उन्नत, और काशी निधि विशेष रूप से बेहतर उपज देती हैं। ये किस्में रोग प्रतिरोधी हैं और भारतीय जलवायु के लिए उपयुक्त हैं। किसानों को अपने क्षेत्र की मिट्टी और मौसम के आधार पर सही किस्म चुनने के लिए स्थानीय कृषि केंद्र से सलाह लेनी चाहिए।

खेत की तैयारी और बुआई

लोबिया की खेती के लिए खेत को अच्छी तरह तैयार करना जरूरी है। खेत की 2-3 गहरी जुताई करें और मिट्टी को भुरभुरा बनाएं। दोमट या बलुई दोमट मिट्टी इस फसल के लिए आदर्श है। बुआई से पहले खेत में पर्याप्त नमी सुनिश्चित करें। अगर नमी कम हो, तो बीजों को रात भर पानी में भिगोएं। मेड़ बनाकर बुआई करने से फसल का प्रबंधन आसान होता है। कतार से कतार की दूरी 45-50 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 12-15 सेंटीमीटर रखें। प्रति एकड़ 20 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है। बुआई से पहले बीज को राइजोबियम या फफूंदनाशक से उपचारित करें ताकि हरे तेला और चूसक कीटों से बचाव हो।

खाद और उर्वरक प्रबंधन

लोबिया की जड़ें नाइट्रोजन अवशोषित करती हैं, इसलिए इसमें अधिक नाइट्रोजन की जरूरत नहीं होती। फिर भी, अच्छी उपज के लिए प्रति एकड़ 12-15 किलोग्राम नाइट्रोजन, 16 किलोग्राम फॉस्फोरस, और 16 किलोग्राम पोटाश का उपयोग करें। नाइट्रोजन की आधी मात्रा और बाकी उर्वरक खेत की तैयारी के समय मिट्टी में मिलाएं। बची हुई नाइट्रोजन को पौधों में 3-4 पत्तियां आने पर गुड़ाई के बाद डालें। गोबर की खाद या नीम की खली का उपयोग मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है। जैव उर्वरक, जैसे एजोटोबैक्टर और फॉस्फोरस विलेय बैक्टीरिया, डालने से रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम होती है।

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फसल की देखभाल और सिंचाई

बुआई के बाद खेत में हल्की सिंचाई करें, ताकि मेड़ आधी से ज्यादा न भीगे। पौधों में 3-4 पत्तियां आने पर गुड़ाई करें ताकि खरपतवार हटें और मिट्टी में हवा का संचार हो। बरसात न होने पर हर 7-10 दिन में हल्की सिंचाई करें। ड्रिप सिंचाई पानी की बचत और बेहतर विकास के लिए उपयुक्त है। लोबिया में कीट और रोगों का प्रकोप कम होता है, लेकिन हरे तेला और फफूंदी से बचाव के लिए नीम तेल या जैविक कीटनाशकों का छिड़काव करें। बुआई के 35-40 दिन बाद जरूरत पड़ने पर रासायनिक दवाओं का उपयोग करें, लेकिन जैविक तरीकों को प्राथमिकता दें।

लोबिया की खेती से मुनाफा

लोबिया की फसल 60-70 दिनों में तैयार हो जाती है, और प्रति एकड़ 8-12 क्विंटल हरी फलियां मिल सकती हैं। मंडी में हरी लोबिया की कीमत 30-50 रुपये प्रति किलोग्राम रहती है, जिससे प्रति एकड़ 50,000-1,00,000 रुपये की आय हो सकती है। लागत, जिसमें बीज, खाद, और मजदूरी शामिल है, लगभग 10,000-15,000 रुपये प्रति एकड़ आती है। इससे शुद्ध मुनाफा 40,000-85,000 रुपये प्रति एकड़ हो सकता है।

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  • Rahul Maurya

    मेरा नाम राहुल है। मैं उत्तर प्रदेश से हूं और मैंने संभावना इंस्टीट्यूट से पत्रकारिता में शिक्षा प्राप्त की है। मैं Krishitak.com का संस्थापक और प्रमुख लेखक हूं। पिछले 3 वर्षों से मैं खेती-किसानी, कृषि योजनाएं, और ग्रामीण भारत से जुड़े विषयों पर लेखन कर रहा हूं।

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