जानिये क्या है CPRI इन विट्रो प्लांट हार्डनिंग टेक्नोलॉजी, जिससे आलू की खेती में आएगी क्रांति

किसान भाइयों, वर्तमान में, भारतीय कृषि में आलू एक प्रमुख फसल है, जो खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देता है। लेकिन, वायरस, फफूंद, और जीवाणु जैसे रोगजनक आलू के बीजों की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं, जिससे उपज और गुणवत्ता में कमी आती है। सेंट्रल पोटैटो रिसर्च इंस्टीट्यूट (CPRI), शिमला, ने इन समस्याओं से निपटने के लिए इन विट्रो प्लांट हार्डनिंग टेक्नोलॉजी विकसित की है। यह तकनीक टिशू कल्चर के माध्यम से वायरस-मुक्त आलू के पौधों को तैयार करने और उन्हें बाहरी वातावरण में अनुकूलित करने में मदद करती है। यह लेख CPRI की इस तकनीक के सिद्धांत, प्रक्रिया, आलू की खेती में इसके उपयोग, लाभ, लागत, और चुनौतियों पर विस्तार से जानकारी देगा।

इन विट्रो हार्डनिंग का महत्व

इन विट्रो हार्डनिंग टिशू कल्चर की प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण चरण है, जिसमें प्रयोगशाला में तैयार पौधों को बाहरी वातावरण के लिए तैयार किया जाता है। टिशू कल्चर में पौधे एक नियंत्रित, बंध्य वातावरण में उगाए जाते हैं, जहाँ उच्च आर्द्रता, कम रोशनी, और सुक्रोज जैसे पोषक तत्व उपलब्ध होते हैं। ऐसे पौधों में प्रकाश संश्लेषण की क्षमता कम होती है, और उनकी पत्तियों में क्यूटिकल परत और रंध्र (स्टोमेटा) पूरी तरह विकसित नहीं होते। सीधे खेत में रोपने पर ये पौधे पर्यावरणीय तनाव, जैसे तापमान परिवर्तन, कम आर्द्रता, और रोगजनकों का सामना नहीं कर पाते, जिससे 60-70% तक पौधे नष्ट हो सकते हैं।

CPRI की हार्डनिंग तकनीक इन पौधों को धीरे-धीरे ग्रीनहाउस और फिर खेत के वातावरण में अनुकूलित करती है। यह तकनीक विशेष रूप से आलू के लिए उपयोगी है, क्योंकि यह वायरस-मुक्त बीज उत्पादन को बढ़ावा देती है। वायरस, जैसे पोटैटो वायरस Y (PVY) और पोटैटो लीफ रोल वायरस (PLRV), पारंपरिक बीजों में जमा हो जाते हैं, जिससे उपज में 20-30% तक की कमी आती है। CPRI की तकनीक इन रोगों को नियंत्रित कर उच्च गुणवत्ता वाले बीज उपलब्ध कराती है।

CPRI की इन विट्रो हार्डनिंग तकनीक

CPRI ने आलू की माइक्रोप्रोपेगेशन और हार्डनिंग के लिए एक व्यवस्थित प्रक्रिया विकसित की है। यह प्रक्रिया कई चरणों में पूरी होती है, जो पौधों को प्रयोगशाला से खेत तक ले जाने में मदद करती है। प्रक्रिया की शुरुआत मेरिस्टेम कल्चर से होती है, जिसमें आलू के शीर्षस्थ मेरिस्टेम (0.1-0.3 मिमी) को बंध्य परिस्थितियों में लिया जाता है। इन मेरिस्टेम को मुराशिगे और स्कूग (MS) माध्यम पर उगाया जाता है, जिसमें सुक्रोज, विटामिन, और ग्रोथ रेगुलेटर (जैसे बेंजाइलएडेनाइन और ऑक्सिन) होते हैं। यह चरण वायरस-मुक्त पौधों की संख्या बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है।

मल्टीप्लिकेशन चरण में, पौधों की शूट्स को कई बार सब-कल्चर किया जाता है, ताकि अधिक संख्या में पौधे प्राप्त हों। इसके बाद, रूटिंग चरण में शूट्स को इंडोल-3-ब्यूटिरिक एसिड (IBA) युक्त माध्यम में रखा जाता है, जिससे जड़ें विकसित होती हैं। लेकिन, इन पौधों को सीधे खेत में रोपना जोखिम भरा होता है, क्योंकि उनकी शारीरिक संरचना बाहरी वातावरण के लिए तैयार नहीं होती। यहीं CPRI की हार्डनिंग तकनीक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

हार्डनिंग प्रक्रिया में, पौधों को पहले इन विट्रो हार्डनिंग के लिए कम सुक्रोज और कम आर्द्रता वाले माध्यम में रखा जाता है। उदाहरण के लिए, 1/10वें MS बेसल माध्यम का उपयोग किया जाता है, जिसमें चारकोल, ईंट के टुकड़े, या सड़ा हुआ लकड़ी का मिश्रण होता है। यह पौधों को धीरे-धीरे कम पोषक तत्वों और कम आर्द्रता के लिए अभ्यस्त करता है। इसके बाद, पौधों को ग्रीनहाउस में स्थानांतरित किया जाता है, जहाँ 80-90% आर्द्रता, कम तीव्रता वाली रोशनी, और 20-25 डिग्री सेल्सियस तापमान बनाए रखा जाता है। धीरे-धीरे आर्द्रता को 50-60% तक कम किया जाता है, और पौधों को सामान्य रोशनी में उजागर किया जाता है।

CPRI ने एरोपोनिक सिस्टम को भी हार्डनिंग के साथ जोड़ा है, जिसमें पौधों की जड़ें पोषक तत्वों के एरोसोल में लटकी रहती हैं। यह तकनीक मिनीट्यूबर उत्पादन को बढ़ाती है, जिसमें प्रति पौधा 32-36 मिनीट्यूबर प्राप्त होते हैं। ये मिनीट्यूबर वायरस-मुक्त होते हैं और इन्हें बीज के रूप में उपयोग किया जाता है।

आलू की खेती में उपयोग

CPRI की यह तकनीक आलू की खेती में कई तरह से उपयोगी है। सबसे पहले, यह वायरस-मुक्त बीज उत्पादन को संभव बनाती है, जो पारंपरिक बीजों की तुलना में 20-30% अधिक उपज देता है। दूसरा, यह तकनीक मिनीट्यूबर उत्पादन को तेज करती है, जिससे किसानों को कम समय में अधिक बीज उपलब्ध होते हैं। तीसरा, यह तकनीक उन क्षेत्रों में उपयोगी है, जहाँ रोगजनकों के कारण आलू की खेती चुनौतीपूर्ण है, जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, और पश्चिम बंगाल।

वर्तमान में, CPRI ने कई आलू की किस्में, जैसे कुफरी ज्योति, कुफरी चंद्रमुखी, और कुफरी गंगा, के लिए इस तकनीक को अनुकूलित किया है। ये किस्में उच्च उपज और रोग प्रतिरोधकता के लिए जानी जाती हैं। एरोपोनिक सिस्टम के उपयोग से प्रति वर्ग मीटर 1200-1400 मिनीट्यूबर प्राप्त किए जा सकते हैं, जो पारंपरिक विधियों की तुलना में 4-5 गुना अधिक है। यह तकनीक छोटे और सीमांत किसानों के लिए विशेष रूप से लाभकारी है, क्योंकि यह कम लागत में उच्च गुणवत्ता वाले बीज प्रदान करती है।

लाभ और विशेषताएँ

CPRI की इन विट्रो हार्डनिंग तकनीक के कई लाभ हैं। यह तकनीक पौधों की मृत्यु दर को 60-70% से घटाकर 10-15% तक लाती है, जिससे उत्पादन लागत कम होती है। यह वायरस-मुक्त मिनीट्यूबर प्रदान करती है, जो रोगमुक्त फसल की गारंटी देता है। एरोपोनिक सिस्टम के उपयोग से बीज उत्पादन की गति बढ़ती है, जिससे किसान एक सीजन में अधिक फसल ले सकते हैं। यह तकनीक पर्यावरण के अनुकूल है, क्योंकि इसमें रासायनिक कीटनाशकों की आवश्यकता कम होती है।

इसके अलावा, यह तकनीक जैव विविधता संरक्षण में भी योगदान देती है। CPRI ने दुर्लभ और स्वदेशी आलू की किस्मों, जैसे कुफरी हिमालिनी, को संरक्षित करने के लिए इस तकनीक का उपयोग किया है। यह तकनीक छोटे पैमाने पर भी लागू की जा सकती है, जिससे स्थानीय नर्सरी और सहकारी समितियाँ इसका लाभ उठा सकती हैं।

CPRI की इन विट्रो प्लांट हार्डनिंग टेक्नोलॉजी आलू की खेती में एक क्रांतिकारी कदम है। यह वायरस-मुक्त बीज उत्पादन, उच्च उपज, और पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देती है। छोटे और सीमांत किसान इस तकनीक का उपयोग कर अपनी आय को कई गुना बढ़ा सकते हैं। CPRI, ICAR, और सरकारी योजनाओं के समर्थन से यह तकनीक ग्रामीण भारत में खाद्य सुरक्षा और आर्थिक विकास में योगदान दे रही है। किसान इस तकनीक को अपनाकर न केवल अपनी खेती को उन्नत कर सकते हैं, बल्कि जैव विविधता संरक्षण में भी योगदान दे सकते हैं।

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  • Dharmendra

    मै धर्मेन्द्र पिछले तिन साल से पत्रकारिता कर रहा हूँ मै ugc नेट क्वालीफाई हूँ भूगोल विषय से मै एक विषय प्रवक्ता हूँ , मुझे कृषि सम्बन्धित लेख लिखने में बहुत रूचि है मैंने सम्भावना संस्थान हिमाचल प्रदेश से कोर्स किया हुआ है |

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