गेहूं की फसल कटने के बाद खेत में जो डंठल या नरवाई बचती है, उसे अक्सर लोग आग लगाकर साफ कर देते हैं। ये तरीका पुराना है, लेकिन क्या ये सही है? सच तो ये है कि नरवाई जलाने से खेत की मिट्टी कमजोर होती है। उसमें जो ताकत होती है, वो आग में जलकर राख बन जाती है। हवा में धुआं फैलता है, साँस लेना मुश्किल होता है। ऊपर से सरकार भी अब इसे रोक रही है और जुर्माना लगा रही है। तो क्यों न इस नरवाई को जलाने की बजाय कुछ ऐसा करें, जो खेत को फायदा दे और जेब में भी पैसा लाए? वो रास्ता है जैविक खाद बनाना।
नरवाई से खाद बनाने का फायदा
नरवाई को जलाने की जगह अगर उससे खाद बनाई जाए, तो ये खेत के लिए किसी खजाने से कम नहीं। ये डंठल सड़कर मिट्टी में पोषण डालते हैं, जिससे अगली फसल ज्यादा अच्छी होती है। बाजार से रसायन वाली खाद खरीदने का खर्चा बच जाता है, जो हर साल सैकड़ों-हजारों रुपये ले लेता है। जैविक खेती से फसल का दाम भी बाजार में बढ़िया मिलता है, क्योंकि लोग अब साफ-सुथरा अनाज पसंद करते हैं। साथ ही, धुआं नहीं फैलता, हवा साफ रहती है, और गाँव का माहौल अच्छा बना रहता है। ये छोटा बदलाव खेती को नया रंग दे सकता है।
जैविक खाद बनाने का आसान तरीका
नरवाई से खाद बनाना बिल्कुल आसान है, बस थोड़ी मेहनत चाहिए। गेहूं कटने के बाद खेत में बची नरवाई को इकट्ठा कर लें। एक गड्ढा खोदें—लगभग 3 फीट गहरा और 4-5 फीट चौड़ा। नरवाई को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लें, ताकि जल्दी सड़े। इसे गड्ढे में डालें और ऊपर से गोबर या पुरानी खाद की पतली परत बिछाएं। थोड़ा पानी छिड़कें, ताकि नमी बनी रहे, ज्यादा गीला न करें। हर 10-15 दिन में इसे पलट दें, ताकि हवा लगे और सड़न अच्छे से हो। 2-3 महीने में ये काली, भुरभुरी खाद बन जाएगी। इसे खेत में डालें, और देखें कैसे फसल खिल उठती है।
ढेर बनाकर खाद का दूसरा तरीका
अगर गड्ढा खोदना मुश्किल लगे, तो खेत के किनारे ढेर बनाना भी बढ़िया तरीका है। नरवाई को इकट्ठा करें, उसमें गोबर, हरी घास या थोड़ी पुरानी खाद मिलाएं। ऊपर से मिट्टी की हल्की परत डाल दें। थोड़ा पानी डालकर इसे पुराने बोरे या चटाई से ढक दें। हर हफ्ते इसे हिलाएं, ताकि हवा अंदर जाए। 2-3 महीने में ये खाद तैयार हो जाएगी। ये तरीका गाँव में आसानी से आजमाया जा सकता है, और मेहनत भी कम लगती है। दोनों तरीकों से खाद बनाकर खेत को ताकत दी जा सकती है।
खेत और जेब दोनों को फायदा
इस जैविक खाद को खेत में डालने से मिट्टी में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश जैसे जरूरी तत्व बढ़ते हैं। अगली फसल चाहे मूंग हो, चना हो, या कोई सब्जी ज्यादा हरी-भरी और स्वस्थ होगी। बाजार से रसायन वाली खाद पर हर साल 2-3 हजार रुपये खर्च होते हैं, जो अब जेब में रह जाएंगे। जैविक फसल का दाम 20-30% ज्यादा मिलता है, क्योंकि लोग इसे पसंद करते हैं। अगर खाद ज्यादा बने, तो गाँव में दूसरे किसानों को बेचकर भी थोड़ी कमाई हो सकती है। यानी ये तरीका खेत की सेहत के साथ-साथ जेब को भी मजबूत करता है।
सावधानियाँ जो ध्यान में रखें
खाद बनाते वक्त कुछ बातों का ख्याल रखना जरूरी है। नरवाई को सूखा न छोड़ें, थोड़ी नमी चाहिए, वरना सड़ने में वक्त लगेगा। ज्यादा पानी भी न डालें, नहीं तो बदबू शुरू हो जाएगी। गड्ढे या ढेर को हवा लगने दें, ताकि खाद अच्छी बने। प्लास्टिक, पत्थर या कचरा नरवाई में न मिलाएं, वरना खाद खराब हो सकती है। शुरू में थोड़ी मेहनत लगेगी, लेकिन एक बार तरीका हाथ लग गया, तो ये रोज का काम आसान हो जाएगा। धीरे-धीरे गाँव में सब इसे अपनाने लगेंगे।
नरवाई जलाना छोड़ें, खेत को नया जीवन दें
सोचिए, हर साल गेहूं की नरवाई जलाने से धुआं उठता है, मिट्टी कमजोर होती है, और परेशानी बढ़ती है। लेकिन वही नरवाई अगर खाद बन जाए, तो खेत हरा-भरा होगा, फसल की पैदावार बढ़ेगी, और पैसा भी बचेगा। ये तरीका न सिर्फ खेती को फायदा देता है, बल्कि हवा को साफ रखता है और गाँव का नाम रोशन करता है। अपने खेत में इसे आजमाएं, पास के किसानों को इसके बारे में बताएं, और देखें कैसे ये छोटा सा कदम बड़ा बदलाव लाता है। नरवाई को आग की भेंट न चढ़ाएं, उसे खेत का खजाना बनाएं।