Cucumber Farming Tips: खीरा (Cucumber) की खेती गाँवों में किसानों के लिए जल्दी कमाई का बढ़िया जरिया है, लेकिन कई बार रोग इसकी राह में रोड़ा बन जाते हैं। “खीरा में पाउडरी मिल्ड्यू का इलाज”, “खीरा की फसल में पीले पत्ते क्यों होते हैं?” और “जैविक तरीके से खीरे के रोग नियंत्रण” जैसे सवाल अक्सर परेशान करते हैं। पाउडरी मिल्ड्यू, डाउनी मिल्ड्यू और फल सड़न जैसे रोग फसल को कमजोर करते हैं और पैदावार घटाते हैं। इनसे बचाव के लिए सही समय पर सही कदम उठाना जरूरी है। आइए, इन रोगों और उनके देसी-जैविक समाधानों को आसान अंदाज़ में समझते हैं।
खीरा में पाउडरी मिल्ड्यू का इलाज
पाउडरी मिल्ड्यू, जिसे सफेद चूर्ण रोग भी कहते हैं, खीरे की फसल का बड़ा दुश्मन है। इसके लक्षण हैं पत्तियों पर सफेद पाउडर जैसे धब्बे, जो धीरे-धीरे फैलते हैं। पौधे की बढ़त रुक जाती है और फल छोटे रह जाते हैं। गर्म और शुष्क मौसम में ये रोग तेजी से बढ़ता है। इसका जैविक इलाज है गोमूत्र और नीम का तेल। 10 मिली नीम तेल को 1 लीटर गोमूत्र में मिलाकर छिड़कें। हर 7-10 दिन में दोहराएँ। अगर रोग ज्यादा हो, तो रासायनिक उपाय करें – हेक्साकोनाज़ोल 1 मिली या सल्फर 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें। ये तरीके फसल को बचाने में कारगर हैं।
डाउनी मिल्ड्यू – पीले और मुड़े पत्तों का कारण
“खीरा की फसल में पीले पत्ते क्यों होते हैं?” इसका जवाब कई बार डाउनी मिल्ड्यू होता है। इस रोग में पत्तियों के निचले हिस्से पर बैंगनी धब्बे बनते हैं, जो बाद में पीले पड़कर मुड़ने लगते हैं। नमी और ठंडा मौसम इसे बढ़ावा देता है। इसका इलाज है मेटालैक्सिल 2 ग्राम या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम को 1 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना। प्रभावित पत्तियों को तोड़कर जला दें, ताकि रोग न फैले। साफ मौसम में सुबह छिड़कें। ये उपाय खीरे को मजबूत करता है।
फल सड़न रोग – ज्यादा नमी का नुकसान
फल सड़न रोग खीरे की फसल में तब लगता है, जब ज्यादा नमी और फंगस मिलकर फलों को गलाने लगते हैं। फल जमीन से सटते हैं और सड़ने शुरू हो जाते हैं। इसका कारण अनियमित पानी या खेत में जलभराव है। इसे रोकने के लिए फलों को जमीन से ऊपर रखें। बाँस या जाल का सहारा दें। बोर्डो मिश्रण (2:2:50) बनाकर छिड़काव करें। ये फंगस को खत्म करता है। ड्रिप इरिगेशन से पानी दें, ताकि नमी सही रहे। ये तरीका फल की गुणवत्ता बचाता है।
जैविक तरीके से खीरे के रोग नियंत्रण
“जैविक तरीके से खीरे के रोग नियंत्रण” किसानों के लिए सस्ता और सुरक्षित रास्ता है। पाउडरी और डाउनी मिल्ड्यू के लिए गोमूत्र और नीम तेल का मिश्रण बढ़िया काम करता है। 10 मिली नीम तेल को 1 लीटर गोमूत्र में मिलाकर हर 10 दिन में छिड़कें। लेडीबर्ड बीटल जैसे मित्र कीट एफिड्स को खाते हैं, इन्हें खेत में बुलाने के लिए नीम की पत्तियाँ बिछाएँ। फल सड़न के लिए जैविक खाद और बोर्डो मिश्रण इस्तेमाल करें। ये देसी उपाय फसल को स्वस्थ रखते हैं।
खेती की तैयारी और देखभाल
खीरे की बुवाई से पहले खेत को मिट्टी पलटने वाले हल से जोतें। 5 टन गोबर की खाद प्रति एकड़ डालें। बीज को 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम से उपचारित करें। 5-7 दिन पर हल्की सिंचाई करें। ड्रिप सिस्टम से पानी दें। पत्तियों पर सफेद धब्बे या पीलेपन के निशान दिखें, तो तुरंत नीम तेल या दवा डालें। फूल आने पर बोर्डो मिश्रण का छिड़काव करें। ये सावधानियाँ रोगों से बचाती हैं।
बंपर पैदावार का मौका
इन उपायों से खीरे की फसल मजबूत रहती है। प्रति एकड़ 80-100 क्विंटल तक उपज मिल सकती है। बाजार में भाव 20-30 रुपये प्रति किलो रहता है, जिससे 1.5-2 लाख रुपये की कमाई हो सकती है। लागत 20-25 हजार रुपये के आसपास आती है। ये देसी और जैविक समाधान खेती को फायदे का सौदा बनाते हैं।
ये भी पढ़ें- आ गया रासायनिक खाद का बाप यह ‘आर्गेनिक खाद’ फसल देगी रिकॉर्ड तोड़ पैदावार