ग्वार की खेती: कम लागत में ज्यादा मुनाफा देने वाली फसल, जून में बुवाई का है सही समय

Guar Cultivation: बारिश पर निर्भर क्षेत्रों में ग्वार बारानी की खेती किसानों के लिए कम लागत में अच्छी आमदनी का ज़रिया है। यह फसल न केवल आर्थिक रूप से लाभकारी है, बल्कि मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व वैज्ञानिक और ग्वार विशेषज्ञ डॉ. बीडी यादव के अनुसार, जून ग्वार की बुवाई के लिए सबसे उपयुक्त समय है। जिन किसानों के पास नहर का पानी उपलब्ध है, वे जून में सिंचाई या मानसून की पहली बारिश के साथ बुवाई शुरू कर सकते हैं। वैज्ञानिक तरीकों और उन्नत किस्मों का उपयोग कर किसान इस फसल से बंपर उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।

उन्नत किस्मों का चयन

ग्वार की खेती में सही किस्म का चयन पैदावार बढ़ाने की कुंजी है। डॉ. यादव सुझाव देते हैं कि किसान एचजी 365 और एचजी 2-20 जैसी उन्नत किस्मों का उपयोग करें। एचजी 365 प्रति एकड़ 4 किलो बीज की दर से 1.5 फुट की दूरी पर बुवाई के लिए उपयुक्त है, जबकि एचजी 2-20 के लिए प्रति एकड़ 3 किलो बीज 2 फुट की दूरी पर पर्याप्त है। ये किस्में उच्च उपज और रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए जानी जाती हैं, जो बारानी क्षेत्रों की जलवायु के लिए आदर्श हैं।

ये भी पढ़ें- जून की गर्मी में करें इन सब्जियों की बुवाई, खेत से होगी ₹50,000 महीना की कमाई!

जड़ गलन रोग से बचाव

जड़ गलन रोग ग्वार की फसल की प्रमुख बीमारी है, जो उत्पादन को 20-45% तक प्रभावित कर सकती है। इस रोग के जीवाणु मिट्टी में पनपते हैं, और इसका सबसे प्रभावी समाधान बीज उपचार है। डॉ. यादव के अनुसार, बुवाई से पहले बीजों को 3 ग्राम कार्बान्डाज़िम 50% (बाविस्टिन) प्रति किलो बीज की दर से सूखा उपचारित करें। यह किफायती तरीका, जिसकी लागत मात्र ₹15 प्रति एकड़ है, जड़ गलन को 80-95% तक नियंत्रित कर सकता है। यह उपचार फसल को शुरुआती चरण में स्वस्थ रखता है और पैदावार को सुरक्षित करता है।

खाद और बुवाई की वैज्ञानिक विधि

ग्वार की बुवाई के दौरान उर्वरकों का संतुलित उपयोग ज़रूरी है। प्रति एकड़ 100 किलो सुपर फॉस्फेट और 15 किलो यूरिया या 35 किलो डीएपी ड्रिल विधि से डालें। इससे मिट्टी को आवश्यक पोषक तत्व मिलते हैं, और फसल की वृद्धि बेहतर होती है। बुवाई के लिए खेत की गहरी जुताई करें, फिर 2-3 बार कल्टीवेटर से जुताई कर पाटा चलाएँ। खेत को समतल रखें और जल निकासी का ध्यान दें, क्योंकि ग्वार की फसल जलभराव सहन नहीं करती। लाइन से लाइन की दूरी एचजी 365 के लिए 1.5 फुट और एचजी 2-20 के लिए 2 फुट रखें।

ये भी पढ़ें- 2025 में सोयाबीन की टॉप 10 वैरायटी: जानिए कौन सी किस्म आपके खेत में ज्यादा मुनाफा देगी

खरपतवार और पानी प्रबंधन

डॉ. यादव ने किसानों को सलाह दी कि ग्वार की खड़ी फसल में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के लिए किसी भी खरपतवारनाशक का उपयोग न करें। ये रसायन आगामी सरसों की फसल के अंकुरण, वृद्धि, और पैदावार पर बुरा असर डाल सकते हैं। इसके बजाय, समय पर निराई-गुड़ाई करें। साथ ही, ट्यूबवेल के खारे या सोडिक पानी का उपयोग बुवाई या खड़ी फसल में न करें, क्योंकि यह पौधों के विकास को रोकता है और पैदावार कम करता है। बारानी क्षेत्रों में मानसून की बारिश पर निर्भर रहें, और आवश्यकता पड़ने पर हल्की सिंचाई करें।

किसानों के लिए सलाह

ग्वार बारानी की खेती कम निवेश में अधिक मुनाफा देती है, बशर्ते वैज्ञानिक तरीकों का पालन किया जाए। बुवाई से पहले मिट्टी की जाँच कराएँ और उर्वरकों का उपयोग मिट्टी की ज़रूरत के अनुसार करें। उन्नत किस्मों और बीज उपचार से फसल को जड़ गलन जैसे रोगों से बचाएँ। मानसून की पहली बारिश का लाभ उठाकर जून में बुवाई शुरू करें। यह फसल न केवल आर्थिक लाभ देगी, बल्कि मिट्टी की उर्वरता बढ़ाकर अगली फसलों के लिए भी फायदेमंद होगी।

ये भी पढ़ें- घर पर गमले में लगाएं ब्रोकली की ये खास किस्म, यहां से मंगवाएं ऑनलाइन बीज

Author

  • Shashikant

    नमस्ते, मैं शशिकांत। मैं 2 साल से पत्रकारिता कर रहा हूं। मुझे खेती से सम्बंधित सभी विषय में विशेषज्ञता प्राप्‍त है। मैं आपको खेती-किसानी से जुड़ी एकदम सटीक ताजा खबरें बताऊंगा। मेरा उद्देश्य यही है कि मैं आपको 'काम की खबर' दे सकूं। जिससे आप समय के साथ अपडेट रहे, और अपने जीवन में बेहतर कर सके। ताजा खबरों के लिए आप Krishitak.com के साथ जुड़े रहिए।

    View all posts

Leave a Comment