इस फसल की खेती शुरू करते ही नोटों से भर जाएगी तिजोरी, जानिए पूरी प्रोसेस

Cotton farming: कपास की खेती गाँव के किसान भाइयों के लिए पुराने जमाने से कमाई का भरोसेमंद जरिया रही है। ये फसल न ज्यादा पानी माँगती है, न ही इसे बहुत ज्यादा देखभाल चाहिए। अगर सही तरीके से खेती की जाए, तो खेत से अच्छी पैदावार और जेब में मोटा मुनाफा आ सकता है। खेती के माहिर दिनेश जाखड़ जी बताते हैं कि कपास की बुवाई और देखभाल में थोड़ी सी समझदारी बरतने से पैदावार कई गुना बढ़ सकती है। आइए, जानते हैं कि कपास की खेती का देसी और आसान तरीका क्या है, ताकि आपका खेत हरा-भरा रहे और कमाई भी खूब हो।

कपास की खेती शुरू करने से पहले खेत को अच्छे से तैयार करना जरूरी है। जाखड़ जी की सलाह है कि खेत में दो-तीन बार जुताई करें, ताकि मिट्टी मुलायम और भुरभुरी हो जाए। पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें, फिर पलेवा करके एक-दो बार और जुताई कर लें। इसके बाद पाटा लगाकर खेत को बुवाई के लिए तैयार करें। अगर खेत में दीमक की समस्या है, तो जुताई से पहले क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत को 6 किलो प्रति बीघा की दर से मिट्टी में मिला दें। इससे दीमक फसल को नुकसान नहीं पहुँचाएगी और खेत की शुरुआत मजबूत होगी।

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बीज चयन और बुवाई का सही तरीका

कपास की अच्छी पैदावार के लिए बीज का चयन बहुत अहम है। बाजार में कई उन्नत किस्में मिलती हैं, जैसे आरसीएच 650 बीजी, अंकुर 555 बीजी, तुलसी 9 बीजी, और कावेरी 999 बीजी। बीटी कपास की बुवाई के लिए 475 ग्राम का एक पैकेट प्रति बीघा काफी है। साथ में 10 प्रतिशत नॉन-बीटी बीज खेत के चारों तरफ बोएं, ताकि कीटों से फसल को बचाने में मदद मिले। बीज बोने से पहले उनका उपचार जरूर करें। अगर खेत में जड़ गलन की दिक्कत है, तो 6 किलो जिंक सल्फेट प्रति बीघा मिट्टी में मिलाएं।

बीज को कार्बोक्सिन 70 प्रतिशत या कार्बेंडाजिम 50 प्रतिशत के घोल में डुबोकर छाया में सुखा लें। फिर ट्राइकोडर्मा या सूडोमोनास 10 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें। इससे बीज मजबूत रहेंगे और फसल की शुरुआत शानदार होगी। बुवाई के लिए कतार से कतार की दूरी 108 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 60 सेंटीमीटर रखें। इससे पौधों को हवा और धूप अच्छे से मिलेगी, और फसल खूब फलेगी-फूलेगी।

सिंचाई और कीटों से बचाव

कपास की फसल को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती, लेकिन सही समय पर सिंचाई करना जरूरी है। बुवाई के 35-40 दिन बाद पहली सिंचाई करें, और फिर हर 25-30 दिन बाद जरूरत के हिसाब से पानी दें। पूरे सीजन में 4-5 सिंचाई काफी हैं। कीटों से फसल को बचाना भी कपास की खेती का बड़ा हिस्सा है। बीटी कपास में बॉलवर्म का असर कम होता है, लेकिन सफेद मक्खी, थ्रिप्स, और माहू जैसे चूसक कीट परेशानी खड़ी कर सकते हैं। इनके लिए सही समय पर कीटनाशक छिड़कें।

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मिसाल के तौर पर, सफेद मक्खी के लिए बुप्रोफेजिन 25 प्रतिशत और थ्रिप्स के लिए फिप्रोनिल 5 प्रतिशत का इस्तेमाल करें। माहू के लिए इमिडाक्लोप्रिड या थायोमेथॉक्साम भी कारगर है। जाखड़ जी सलाह देते हैं कि कीटनाशकों की मात्रा का ध्यान रखें और जरूरत से ज्यादा छिड़काव न करें, वरना फसल को नुकसान हो सकता है।

खाद, उर्वरक और खरपतवार नियंत्रण

खाद और उर्वरक का सही इस्तेमाल कपास की पैदावार को दोगुना कर सकता है। खेत में गोबर की खाद खूब डालें, क्योंकि ये मिट्टी को ताकत देती है। साथ में 22.5 किलो नाइट्रोजन और 5 किलो फॉस्फोरस प्रति बीघा डालें। मिट्टी के हिसाब से नाइट्रोजन की मात्रा थोड़ी कम-ज्यादा कर सकते हैं। खरपतवार से बचने के लिए पहली सिंचाई के बाद निराई-गुड़ाई करें। अगर खरपतवार ज्यादा हो, तो पेंडीमेथालिन 30 ईसी को 1.25 लीटर प्रति बीघा की दर से पानी में मिलाकर छिड़क दें।

फसल चुनने के बाद खेत में बचे अवशेषों को जल्दी हटा दें, ताकि अगले साल कीटों की समस्या कम हो। अगर आप इन सभी बातों का ध्यान रखकर खेती करें, तो प्रति बीघा 5-7 क्विंटल तक पैदावार मिल सकती है। कपास की खेती में मेहनत और सही जानकारी के साथ काम करें, तो मुनाफा पक्का है।

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  • Shashikant

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