Cultivating Maize Urad and Moong Benefits : आज के दौर में किसान पारंपरिक खेती के तरीके बदल रहे हैं। वे कम लागत, कम पानी और अधिक मुनाफा देने वाली फसलों की ओर बढ़ रहे हैं। मक्का, उड़द और मूंग जैसी फसलें इसी दिशा में एक क्रांतिकारी कदम हैं। ये न सिर्फ किसानों की आय बढ़ाती हैं, बल्कि मिट्टी की सेहत भी सुधारती हैं।
कम पानी, कम लागत, अधिक उत्पादन
मक्का, उड़द और मूंग की खेती की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इन्हें कम सिंचाई की जरूरत होती है। ये फसलें सूखे के प्रति सहनशील हैं और कम समय में तैयार हो जाती हैं। उदाहरण के लिए, मूंग की फसल मात्र 60-70 दिन में पककर तैयार हो जाती है। साथ ही, बाजार में इनकी मांग हमेशा बनी रहती है, जिससे किसानों को अच्छे दाम मिलते हैं।
मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में मददगार
दलहनी फसलें जैसे उड़द और मूंग की जड़ों में राइजोबियम बैक्टीरिया पाए जाते हैं, जो हवा से नाइट्रोजन लेकर मिट्टी में छोड़ते हैं। इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और अगली फसल के लिए खेत तैयार हो जाता है। मक्का की फसल भी मिट्टी को ढीला करके उसकी संरचना सुधारती है।
नि:शुल्क बीज और सहायता
किसानों को इन फसलों की ओर प्रेरित करने के लिए कृषि विभाग नि:शुल्क बीज किट बाँट रहा है। साथ ही, फसल बीमा, तकनीकी मार्गदर्शन और बाजार तक पहुँच जैसी सुविधाएँ भी उपलब्ध कराई जा रही हैं। उदाहरण के लिए, बिहार सरकार ने दलहन फसलों के लिए विशेष अनुदान योजनाएँ शुरू की हैं।
पर्यावरण के लिए वरदान
पारंपरिक फसलों जैसे धान और गन्ने को अधिक पानी की जरूरत होती है, जिससे भूजल स्तर नीचे जा रहा है। इसके विपरीत, मक्का, उड़द और मूंग की खेती से पानी की बचत होती है। साथ ही, रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम होने से मिट्टी और पर्यावरण दोनों सुरक्षित रहते हैं।
विशेषज्ञों की सलाह
कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि आने वाले समय में जल संकट और मिट्टी की गिरती उर्वरता को देखते हुए ये फसलें किसानों के लिए वरदान साबित होंगी। डॉ. राजेश कुमार, कृषि विशेषज्ञ, बताते हैं, “मक्का और दलहन फसलों से किसानों की लागत 30-40% तक कम होती है, जबकि मुनाफा दोगुना तक बढ़ जाता है।”
मक्का, उड़द और मूंग की खेती न सिर्फ किसानों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाएगी, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी अहम भूमिका निभाएगी। सरकारी सहायता और बाजार की मांग को देखते हुए यह समय इन फसलों को अपनाने का है। जल संरक्षण, कम लागत और अधिक मुनाफा… यही आधुनिक खेती का नया सूत्र है!