गर्मी की तपती धूप और मॉनसून का इंतजार, ये वो मौसम है जब खेत सूखे पड़े रहते हैं। लेकिन कुछ फसलें ऐसी हैं जो कम पानी में भी लहलहा उठती हैं। बाजरा और रागी ऐसी ही देसी फसलें हैं, जो न सिर्फ आसानी से उग जाती हैं, बल्कि आजकल बाजार में इनकी मांग भी जबरदस्त है। जैविक और पौष्टिक अनाज की चाहत बढ़ रही है, और ये मोटे अनाज किसानों के लिए कम लागत में मोटा मुनाफा देने का मौका लाए हैं। जून का महीना इन फसलों की बुवाई के लिए एकदम सही है, तो चलो जानते हैं कि कैसे इनकी खेती करके कमाई और सेहत दोनों दुरुस्त की जाए।
जून क्यों है बेस्ट टाइम
जून में मॉनसून की पहली बारिश शुरू होती है, और यही वक्त बाजरा और रागी की बुवाई के लिए सबसे मस्त रहता है। इन फसलों को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं पड़ती, और ये कम उपजाऊ मिट्टी में भी अच्छी पैदावार दे देती हैं। गर्म मौसम में ये जल्दी अंकुरित हो जाते हैं, और मॉनसून की हल्की बारिश इनके लिए काफी होती है। चाहे खेत छोटा हो या बड़ा, इन फसलों को लगाकर आप बिना ज्यादा मेहनत के अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। खास बात ये कि ये फसलें सूखे और गर्मी को आसानी से झेल लेती हैं।
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बाजरा और रागी का पौष्टिक खजाना
आजकल मधुमेह, मोटापा, और खून की कमी जैसी बीमारियां बढ़ रही हैं, और बाजरा-रागी जैसे देसी अनाज इनके लिए रामबाण की तरह काम कर रहे हैं। बाजरे में आयरन, फाइबर, और प्रोटीन खूब होता है, जो मधुमेह को कंट्रोल करने और दिल को तंदुरुस्त रखने में मदद करता है। दूसरी तरफ, रागी में कैल्शियम और अमीनो एसिड भरे पड़े हैं, जो हड्डियों को मजबूत बनाते हैं और बच्चों की ग्रोथ के लिए बेस्ट हैं। शहरी लोग इन्हें सुपरफूड कहते हैं, और इसकी वजह से बाजार में इनकी डिमांड आसमान छू रही है।
खेती के देसी नुस्खे
बाजरा और रागी की खेती शुरू करने से पहले खेत को अच्छे से तैयार करना जरूरी है। हल्की या मध्यम उपजाऊ मिट्टी, जहां पानी जमा न हो, इनके लिए एकदम सही रहती है। बुवाई से पहले खेत की दो बार जुताई कर लें, ताकि मिट्टी ढीली हो जाए। जून के दूसरे या तीसरे हफ्ते में बुवाई शुरू कर दें। बाजरे के लिए प्रति एकड़ 4-5 किलोग्राम बीज और रागी के लिए 5-6 किलोग्राम बीज काफी हैं। बीज को बोने से पहले जैविक ट्राइकोडर्मा से उपचारित कर लें, ताकि फंगस और कीटों से बचाव हो। देसी तरीके से गोबर की सड़ी हुई खाद या वर्मी कम्पोस्ट डालें, इससे मिट्टी को ताकत मिलेगी।
सिंचाई और खरपतवार का इंतजाम
इन फसलों को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं, लेकिन बुवाई के 15-20 दिन बाद एक हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए। अगर बारिश समय पर हो रही हो, तो शायद सिंचाई की जरूरत ही न पड़े। खरपतवार से बचने के लिए देसी कुदाली से निराई करें या मुल्चिंग का तरीका अपनाएं, जिसमें खेत में सूखी घास बिछा देते हैं। इससे खरपतवार कम उगते हैं, और मिट्टी में नमी भी बनी रहती है। अगर खरपतवार ज्यादा परेशान करें, तो बुवाई के 10-15 दिन बाद हल्की निराई कर लें। ये छोटे-छोटे नुस्खे फसल को हरा-भरा रखते हैं।
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बाजार में मांग और कमाई
बाजरा और रागी की डिमांड अब सिर्फ गाँवों तक सीमित नहीं, बल्कि शहरों और विदेशों में भी बढ़ रही है। जैविक मंडियों और ऑनलाइन मार्केट में इनके अच्छे दाम मिल रहे हैं। एक एकड़ से बाजरे की 8-10 क्विंटल और रागी की 6-8 क्विंटल पैदावार आसानी से हो जाती है। बाजार में इनका रेट 2500 से 3500 रुपये प्रति क्विंटल तक चल रहा है। यानी कम लागत में 20,000-30,000 रुपये प्रति एकड़ की कमाई हो सकती है। कुछ किसान तो जैविक सर्टिफिकेशन लेकर और भी ज्यादा दाम पा रहे हैं।
मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार “श्री अन्न मिशन” जैसी योजनाएं चला रही है। इसके तहत अच्छे बीज, खेती का प्रशिक्षण, और मार्केटिंग की सुविधा दी जा रही है। कई राज्यों में सब्सिडी भी मिल रही है, जैसे यूपी और राजस्थान में बीज और खाद पर 50% तक छूट। अपने नजदीकी कृषि केंद्र से इन योजनाओं की जानकारी ले लें, ताकि खेती और सस्ती हो जाए। सरकार का ये साथ किसानों की कमाई को दोगुना करने में मदद कर रहा है।
क्यों करें बाजरा-रागी की खेती
बाजरा और रागी की खेती सिर्फ पुरानी परंपरा नहीं, बल्कि सेहत और कमाई का नया रास्ता है। ये फसलें कम पानी और कम मेहनत मांगती हैं, और बाजार में इनकी कीमत भी अच्छी मिल रही है। जून में इन्हें लगाकर आप न सिर्फ अपनी जेब भर सकते हैं, बल्कि लोगों को पौष्टिक अनाज देकर उनकी सेहत भी सुधार सकते हैं। अपने खेत में इन देसी अनाजों को आजमाएं, और आत्मनिर्भर खेती की तरफ कदम बढ़ाएं। नजदीकी कृषि कार्यालय से बीज और सलाह ले लें, और बिना देर किए बुवाई शुरू कर दें।
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