अदरक की सुप्रभा वैरायटी की करें खेती, इस महीने बोरी भरके मिलेगी पैदावार

Ginger Farming: भारत की खेती में कुछ फसलें ऐसी हैं जो अपने स्वाद, सुगंध, और औषधीय गुणों के लिए जानी जाती हैं। अदरक ऐसी ही एक मसाला फसल है, जिसकी चाय से लेकर सब्जी और आयुर्वेद तक में धूम मची रहती है। सर्दियों में तो इसकी मांग आसमान छूती है। मई का महीना अदरक की खेती शुरू करने के लिए एकदम सही है, और खासकर इसकी सुप्रभा वैरायटी किसानों के लिए सोने पे सुहागा है। ये न सिर्फ अच्छी पैदावार देती है, बल्कि रोगों से लड़ने में भी माहिर है। चलिए, सुप्रभा और अदरक की चार अन्य उन्नत किस्मों की खासियत जानते हैं, और ये भी देखते हैं कि मई में इसकी खेती कैसे करनी है।

अदरक की सुप्रभा वैरायटी की खासियत

सुप्रभा अदरक की एक ऐसी किस्म है, जो किसानों के बीच अपनी खास पहचान रखती है। इसके पौधे ढेर सारे कल्ले देते हैं, जिससे पैदावार बढ़ती है। इसके कंद का छिलका सफेद और चमकदार होता है, जो बाजार में अच्छा दाम दिलाता है। इसकी फसल 225-230 दिन में तैयार हो जाती है, और प्रति एकड़ 80-90 क्विंटल तक पैदावार दे सकती है। सबसे बड़ी बात, ये वैरायटी प्रकंद विगलन रोग से लड़ने में माहिर है, यानी फसल खराब होने का डर कम रहता है। मई में बुवाई करके आप सर्दियों के सीजन में बंपर मुनाफा कमा सकते हैं।

रियो डी जेनेरियो का कमाल

रियो डी जेनेरियो अदरक की एक हाइब्रिड किस्म है, जो बड़ी पैदावार के लिए मशहूर है। इसके कंद भी सफेद और चमकदार होते हैं, और ये 225-230 दिन में पककर तैयार हो जाती है। प्रति हेक्टेयर 200-230 क्विंटल की पैदावार इसे किसानों का फेवरेट बनाती है। ये भी प्रकंद विगलन रोग के खिलाफ मजबूत है, यानी फसल को बीमारी से बचाना आसान है।

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सुरभि वैरायटी की खूबियां

सुरभि वैरायटी के अदरक की गांठें इतनी आकर्षक होती हैं कि बाजार में देखते ही बिक जाती हैं। ये फसल 225-235 दिन में तैयार हो जाती है, और प्रति एकड़ 80-100 क्विंटल तक पैदावार दे सकती है। प्रकंद विगलन रोग के खिलाफ इसकी सहनशीलता इसे भरोसेमंद बनाती है।

मरान वैरायटी की बात

मरान अदरक की एक ऐसी किस्म है, जिसके कंद हल्के सुनहरे रंग के होते हैं। ये 230-240 दिन में पककर तैयार हो जाती है, और प्रति हेक्टेयर 175-200 क्विंटल तक पैदावार दे सकती है। मृदु विगलन रोग, जिसमें पत्तियां पीली पड़कर सूख जाती हैं, इस वैरायटी को नहीं सताता।

अथिरा वैरायटी का जलवा

अथिरा वैरायटी किसानों के बीच खूब पॉपुलर है। ये 220-240 दिन में तैयार हो जाती है, और प्रति एकड़ 84-92 क्विंटल पैदावार देती है। इसमें 22.6% सूखी अदरक और 3.4% तेल की मात्रा होती है, जो इसे बाजार में खास बनाती है।

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अदरक की खेती का तरीका

अदरक की खेती गर्म इलाकों में अच्छी होती है, जहां तापमान 25-35 डिग्री के बीच रहता है। मई में बुवाई शुरू करने से पहले खेत का चयन सोच-समझकर करें। ऐसी जगह चुनें, जहां जल निकासी की अच्छी व्यवस्था हो, क्योंकि ज्यादा पानी रुका तो फसल खराब हो सकती है। बलुई दोमट या चिकनी मिट्टी इसके लिए बेस्ट है। बुवाई के लिए कतारों का ध्यान रखें। एक कतार से दूसरी कतार की दूरी 30-40 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 25 सेंटीमीटर रखें। बुवाई के बाद कंदों को हल्की मिट्टी या गोबर की सड़ी खाद से ढक दें। गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट डालने से मिट्टी को ताकत मिलती है।

अदरक को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं, लेकिन बुवाई के 15-20 दिन बाद हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए। अगर मॉनसून की बारिश समय पर हो, तो शायद सिंचाई की जरूरत न पड़े। खरपतवार से बचने के लिए देसी कुदाली से निराई करें या सूखी घास बिछाकर मुल्चिंग करें। इससे मिट्टी में नमी बनी रहती है, और खरपतवार कम उगते हैं। फसल को कीटों और रोगों से बचाने के लिए जैविक नीम तेल का छिड़काव करें।

अदरक की मांग सर्दियों में बढ़ जाती है, और सुप्रभा जैसी वैरायटियों की चमकदार गांठें बाजार में अच्छा दाम लाती हैं। प्रति एकड़ 80-100 क्विंटल पैदावार से 2-3 लाख रुपये की कमाई हो सकती है, क्योंकि बाजार में अदरक 3000-5000 रुपये प्रति क्विंटल तक बिक रही है। जैविक अदरक की डिमांड और भी ज्यादा है। अपने नजदीकी कृषि केंद्र से सुप्रभा या अन्य उन्नत वैरायटियों के बीज लें, और मई में खेती शुरू करके सर्दियों में मुनाफा कमाएं।

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  • Rahul Maurya

    मेरा नाम राहुल है। मैं उत्तर प्रदेश से हूं और मैंने संभावना इंस्टीट्यूट से पत्रकारिता में शिक्षा प्राप्त की है। मैं Krishitak.com का संस्थापक और प्रमुख लेखक हूं। पिछले 3 वर्षों से मैं खेती-किसानी, कृषि योजनाएं, और ग्रामीण भारत से जुड़े विषयों पर लेखन कर रहा हूं।

    Krishitak.com के माध्यम से मेरा उद्देश्य है कि देशभर के किसानों तक सटीक, व्यावहारिक और नई कृषि जानकारी आसान भाषा में पहुँचे। मेरी कोशिश रहती है कि हर लेख पाठकों के लिए ज्ञानवर्धक और उपयोगी साबित हो, जिससे वे खेती में आधुनिकता और आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ सकें।

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