Cultivation of Unhulled Barley: भारत में जौ की खेती प्रमुख रूप से राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में की जाती है। इन सभी में राजस्थान सबसे आगे है, जहाँ देश की लगभग 60 से 70 प्रतिशत जौ की फसल उगाई जाती है। इसके बाद मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा का स्थान आता है। हालांकि, देश में अब भी सीमित क्षेत्र में ही जौ की बुवाई होती है, जिसके चलते घरेलू मांग को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भरता बनी रहती है।
अब मिलेगी बिना छिलके वाली जौ की बेहतर किस्म
भारतीय कृषि वैज्ञानिकों ने लगातार अनुसंधान और फील्ड ट्रायल के बाद बिना छिलके वाली जौ की पाँच नई किस्में विकसित की हैं। ये किस्में न केवल अधिक उत्पादन देने वाली हैं बल्कि इनसे प्रसंस्करण लागत में भी कमी आएगी क्योंकि इन्हें छिलने की जरूरत नहीं होगी। सभी किस्मों के अंतिम परीक्षण पूरे हो चुके हैं और अब ये आईसीएआर (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद) से अंतिम स्वीकृति की प्रतीक्षा में हैं। स्वीकृति मिलते ही यह नई जौ की किस्में देशभर के किसानों को उपलब्ध कराई जाएंगी, जिससे उनके मुनाफे में सीधा इजाफा होगा।
बिना छिलके वाली जौ के फायदे
(Barley Farming) यह नई किस्में कम पानी में पक जाएंगी और अन्य फसलों की तुलना में ज्यादा उत्पादन देंगी। इसके अलावा, बेहतर गुणवत्ता होने के कारण बाजार में इन्हें अच्छा मूल्य भी मिलेगा। आने वाले समय में इसे गेहूं और बाजरे की तरह भोजन में उपयोग किया जा सकेगा, जिससे यह आम लोगों के आहार में शामिल होगी और पोषण का एक अच्छा स्रोत बनेगी।
इन नई किस्मों से बनने वाला भूसा (चारा) भी अधिक पौष्टिक होगा, जिससे पशुपालन करने वाले किसानों को भी लाभ मिलेगा। यह पशुओं के लिए बेहतरीन आहार के रूप में उपयोग किया जा सकेगा।
किस्मों का विकास और परीक्षण
राजस्थान कृषि अनुसंधान संस्थान, दुर्गापुरा में 2016 से यह प्रोजेक्ट चल रहा है। इसके तहत आरडी 3088 से 3092 नामक जौ की किस्मों को विकसित किया गया है। इन किस्मों को अब आईसीएआर में परीक्षण के लिए भेजा गया है। अनुमोदन मिलने में 1 से 2 साल का समय लग सकता है। प्रारंभिक परीक्षण खेतों में भी किए गए हैं, जिनके परिणाम सकारात्मक रहे हैं।
इन किस्मों में 10 से 13 प्रतिशत तक प्रोटीन की मात्रा होगी, जो इसे स्वास्थ्य के लिए अधिक उपयोगी बनाएगी। इसमें 5 से 6 प्रतिशत बीटा ग्लूकॉन होगा, जो हृदय रोगों को रोकने में मदद करेगा और खराब कोलेस्ट्रॉल को कम करेगा। इसका सेवन करने से नर्वस सिस्टम मजबूत होगा, जिससे शरीर को बेहतर पोषण मिलेगा।
शुगर मरीजों के लिए लाभदायक
इस जौ का ग्लाइसेमिक इंडेक्स (GI) 25-30 के बीच है, जबकि गेहूं और चावल का GI 60 से अधिक होता है। इसका अर्थ है कि यह मधुमेह (Diabetes) के रोगियों के लिए अधिक सुरक्षित और उपयोगी रहेगा। इसके सेवन से ब्लड शुगर लेवल को स्थिर रखा जा सकता है, जिससे डायबिटीज को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी।
खेती के लिए अनुकूल जलवायु और मिट्टी
यह जौ की किस्में कम पानी में भी बेहतरीन उत्पादन दे सकती हैं। साथ ही, खारे पानी में भी इसका उत्पादन संभव है। इसकी फसल 4 महीने से भी कम समय (लगभग 120 दिन) में पक जाएगी। राजस्थान में अब तक जौ का औसत उत्पादन 36 क्विंटल प्रति हेक्टेयर था, जबकि भारत का औसत 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर रहा है।
भारत में कई ऐसे इलाके हैं जहां कम वर्षा और कम उपजाऊ भूमि होने के कारण खेती नहीं की जाती। इन नई किस्मों के आने से ऐसे क्षेत्रों में भी खेती संभव होगी, जिससे किसानों को अधिक लाभ मिलेगा।
पशुपालन क्षेत्र में भी क्रांतिकारी बदलाव
जौ पशुओं के लिए एक बहुत पौष्टिक आहार माना जाता है। इस नई किस्म से बनने वाला भूसा अधिक पोषक तत्वों से भरपूर होगा, जिससे पशुपालन करने वाले किसानों को भी आर्थिक लाभ मिलेगा। डेयरी फार्मिंग में बेहतर पोषणयुक्त चारे की आवश्यकता होती है। इस जौ के उपयोग से दूध उत्पादन में वृद्धि हो सकती है और पशुओं की सेहत भी बेहतर बनी रहेगी।
बिना छिलके वाली जौ की ये नई किस्में भारतीय कृषि के लिए एक बड़ा कदम साबित हो सकती हैं। इससे किसानों को उच्च उत्पादन, कम पानी की आवश्यकता, अच्छा बाजार मूल्य और बेहतर पशु चारे का लाभ मिलेगा। साथ ही, यह स्वास्थ्य के लिए भी अत्यधिक लाभकारी होगी, विशेष रूप से डायबिटीज और हृदय रोगियों के लिए।
अब सिर्फ आईसीएआर से अनुमोदन का इंतजार है। अनुमोदन मिलते ही, यह किस्में जल्द ही किसानों तक पहुंच जाएंगी, जिससे भारतीय कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा मिलेगी।
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