किसान भाइयों, खेती का मौसम शुरू होते ही आपके के लिए बुरी खबर आ गई है। इस साल डीएपी (डाई-अमोनियम फॉस्फेट) की भारी कमी हो रही है, और सहकारी समितियों में ये खाद मिलना मुश्किल हो गया है। रूस-यूक्रेन युद्ध ने खाद की सप्लाई को बुरी तरह प्रभावित किया है, जिसके चलते खुले बाज़ार में डीएपी की कीमत 1750 रुपये प्रति बोरी तक पहुँच गई है। ऐसे में किसानों के सामने एनपीके (नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम) खाद एकमात्र आसान विकल्प नज़र आ रहा है। आइए, देसी समझते हैं कि ये संकट क्यों आया और किसान इसका सामना कैसे कर सकते हैं।
युद्ध की मार खेतों तक
रूस और यूक्रेन दुनिया के बड़े खाद सप्लायर हैं, खासकर डीएपी और इसके कच्चे माल जैसे फॉस्फेट और अमोनिया के लिए। 2022 से चल रहा युद्ध सप्लाई चेन को तोड़ रहा है। रूस से डीएपी और एनपीके की आपूर्ति में कमी आई है, और दूसरी तरफ मध्य पूर्व में चल रहे तनाव ने लाल सागर के रास्ते को बाधित किया, जिससे जहाज़ों को लंबा रास्ता लेना पड़ रहा है। इससे डीएपी की लागत बढ़ी, और भारत में आयात 43% तक कम हो गया। खुले बाज़ार में डीएपी की बोरी 1350 रुपये से बढ़कर 1750 रुपये तक पहुँच गई है, जो छोटे किसानों के लिए बड़ी मार है।
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डीएपी की जगह एनपीके क्यों
डीएपी की कमी ने किसानों को एनपीके की ओर मोड़ दिया है। एनपीके में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, और पोटैशियम का संतुलित मिश्रण होता है, जो मिट्टी को पोषण देता है और फसलों की ग्रोथ बढ़ाता है। गेहूँ, मक्का, और सरसों जैसी रबी फसलों के लिए एनपीके 20:20:0:13 जैसे ग्रेड फायदेमंद हैं, क्योंकि ये मिट्टी की सेहत को सुधारते हैं। हरियाणा में सरकार ने 60,000 मेट्रिक टन एनपीके की सप्लाई की है, जिसमें से 29,000 टन किसानों तक पहुँच चुका है। ये डीएपी से सस्ता भी पड़ता है और मिट्टी को लंबे समय तक उपजाऊ रखता है।
किसान क्या करें
डीएपी की कमी से घबराने की ज़रूरत नहीं। किसान एनपीके को अपनाकर फसल की पैदावार बढ़ा सकते हैं। कृषि विभाग सलाह दे रहा है कि एनपीके का इस्तेमाल मिट्टी की जाँच के बाद करें, ताकि सही मात्रा और अनुपात का पता चले। नज़दीकी कृषि केंद्रों से एनपीके के बारे में जानकारी लें और सब्सिडी का फायदा उठाएँ। सरकार ने डीएपी पर 3500 रुपये प्रति टन की अतिरिक्त सब्सिडी दी है, लेकिन एनपीके की कीमत अभी भी डीएपी से कम है। छोटे किसान पुरानी खाद का स्टॉक या जैविक खाद, जैसे वर्मी-कम्पोस्ट, के साथ एनपीके मिलाकर खर्च बचा सकते हैं।
भविष्य की राह
डीएपी की कमी लंबे समय तक परेशान कर सकती है, क्योंकि भारत 50-60% डीएपी आयात पर निर्भर है। सरकार जॉर्डन, मोरक्को, और सऊदी अरब जैसे देशों से आपूर्ति बढ़ाने की कोशिश कर रही है। तब तक किसानों को एनपीके और जैविक खाद पर ध्यान देना चाहिए। मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में कई किसान पहले ही एनपीके का इस्तेमाल शुरू कर चुके हैं और अच्छे नतीजे देख रहे हैं। अपने खेत को मज़बूत बनाने के लिए सही समय पर सही खाद चुनें और स्थानीय कृषि विशेषज्ञों से सलाह लें।
डीएपी की कमी ने मुश्किलें बढ़ाई हैं, लेकिन एनपीके जैसे विकल्प किसानों का सहारा बन सकते हैं। सरकार की सब्सिडी और सही जानकारी के साथ आप अपने खेत को लहलहा सकते हैं। बस हिम्मत रखें और नई तकनीक को अपनाएँ!
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