DDW 55D करन मंजरी: रबी सीजन की दस्तक के साथ मध्य और उत्तर भारत के किसान भाई गेहूं की बुवाई की तैयारी में जुटे हैं, और इस बार DDW 55D करन मंजरी नाम की कठिया गेहूं की ये उन्नत किस्म उनकी उम्मीदों को नई ऊंचाई देगी। भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान (ICAR-IIWBR), करनाल द्वारा विकसित ये बायोफोर्टिफाइड ड्यूरम व्हीट वैरायटी सीमित सिंचाई और समय पर बुवाई वाली स्थितियों के लिए बिल्कुल फिट बैठती है, जहां पहले पैदावार कम रहती थी।
इस साल मानसून की अच्छी बारिश से मिट्टी में नमी बनी हुई है, जो बुवाई को आसान बना रही है। मध्य प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, राजस्थान के कोटा-उदयपुर संभाग और उत्तर प्रदेश के झांसी संभाग जैसे इलाकों में ये किस्म खासतौर पर फायदेमंद साबित होगी, क्योंकि ये रोगों से लड़ने में माहिर है और प्रोटीन से भरपूर दाने देती है।
DDW 55D करन मंजरी की मुख्य खासियतें जो इसे बनाती हैं खास
ये कठिया गेहूं की उन्नत किस्म तीलिया (लूज स्मट) और कंडुआ (कर्नल बंट) रोगों के खिलाफ मजबूत ढाल की तरह काम करती है, जहां भारी पैदावार वाली स्थितियों में भी तीलिया का स्कोर सिर्फ 3.0 और कंडुआ का 11.1 रहता है। पीली रस्ट और स्ट्रीक रोगों से भी ये अच्छी तरह बचाव करती है, जिससे किसान भाई दवाओं पर कम खर्च करेंगे। दानों में प्रोटीन की मात्रा ज्यादा होने से ये पोषण के लिहाज से भी बेहतर है, और हजार दानों का औसत वजन 52 ग्राम रहता है, जो सूखा सहनशीलता को दर्शाता है।
वैज्ञानिकों ने इसे मध्य मैदानी क्षेत्रों के लिए खासतौर पर तैयार किया है, जहां पानी की कमी आम समस्या है। ये 2023 में रिलीज हुई वैरायटी है, जो अन्य किस्मों जैसे HW 8623, DDW 47 और HW 8823 से बेहतर प्रदर्शन करती है।
इस किस्म के फायदे जो किसानों की आय दोगुनी करेंगे
DDW 55D करन मंजरी अन्य प्रमुख किस्मों से कहीं बेहतर प्रदर्शन करती है, खासकर सीमित सिंचाई वाले खेतों में। सामान्य परिस्थितियों में ये उच्च पैदावार देती है, जिससे किसान भाइयों की कमाई में इजाफा होता है। प्रोटीन समृद्ध दाने बाजार में अच्छे दाम दिलाते हैं, और रोग प्रतिरोधक क्षमता से फसल सुरक्षित रहती है। छोटे किसान जो कम पानी पर निर्भर हैं, उनके लिए ये नई उम्मीद जगाती है, क्योंकि ये मिट्टी की सेहत बनाए रखते हुए उपज बढ़ाती है। ये बायोफोर्टिफाइड होने से पोषण मूल्य भी ऊंचा रखती है, जो उपभोक्ताओं के लिए फायदेमंद है।
बुवाई से कटाई तक, आसान खेती के टिप्स
बुवाई का सबसे अच्छा समय 20 अक्टूबर से 5 नवंबर तक रखें, ताकि फसल ठंड के मौसम में मजबूत हो सके। प्रति हेक्टेयर 100 किलोग्राम बीज इस्तेमाल करें, और बुवाई से पहले बीज को टेबुकोनाजोल 2% डीएस से 1 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित करें, जिससे शुरुआती रोगों से बचाव हो। उर्वरक में 90:60:40 किलोग्राम एनपीके प्रति हेक्टेयर डालें आधा नाइट्रोजन और पूरा फास्फोरस-पोटाश बुवाई के समय, बाकी नाइट्रोजन 45-50 दिन बाद प्रथम नोड अवस्था में। सिंचाई सिर्फ दो बार करें बुवाई से पहले और 45-50 दिन बाद ताकि पानी की बचत हो। विशेष कृषि तकनीक पैकेज अपनाकर पैदावार को और ऊंचा ले जा सकते हैं।
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पैदावार का अनुमान जो किसानों को खुश कर देगा
सामान्य हालातों में ये किस्म 35.6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है, लेकिन समय पर बुवाई और सीमित सिंचाई में ये 56.5 क्विंटल तक पहुंच जाती है। ये आंकड़े वैज्ञानिक ट्रायल्स पर आधारित हैं, जो साबित करते हैं कि सही देखभाल से फसल बंपर हो सकती है। बाजार में अच्छे दाने मिलने से किसान भाई अपनी मेहनत का पूरा फल पा लेंगे।
मध्य-उत्तर भारत के इन इलाकों में लगाएं ये किस्म
ये किस्म मुख्य रूप से मध्य और उत्तर भारत के मध्य मैदानी क्षेत्रों के लिए बनी है, जहां प्रतिबंधित सिंचाई और समयबद्ध बुवाई की जरूरत पड़ती है। मध्य प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़ के अलावा राजस्थान के कोटा-उदयपुर संभाग और उत्तर प्रदेश के झांसी संभाग में ये खूब चलेगी। अगर आप इन इलाकों के किसान हैं तो लोकल कृषि केंद्र से बीज लें और ट्रायल करें।
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