बिना अधिक लागत, बिना खाद इस फसल की खेती कर किसान हुआ मालामाल

Desi arahar ki kheti: अरहर, जिसे तूर या पिजन पी (Pigeon Pea) के नाम से भी जाना जाता है, भारत की एक प्रमुख दलहनी फसल है। यह न केवल पोषण का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, बल्कि किसानों के लिए आय का एक बड़ा जरिया भी है। देसी अरहर की खेती मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में की जाती है। यह फसल मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में भी मददगार होती है, क्योंकि यह वायुमंडलीय नाइट्रोजन को मिट्टी में स्थिर करती है। इस लेख में हम देसी अरहर की खेती के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।

इसकी खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी

अरहर की खेती के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु उपयुक्त मानी जाती है। इसकी खेती के लिए तापमान 20°C से 30°C के बीच होना चाहिए। अरहर की फसल को अधिक वर्षा की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन यह सूखे को सहन करने की क्षमता रखती है। इसकी खेती के लिए दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है, जिसमें जल निकासी की अच्छी व्यवस्था हो। मिट्टी का pH मान 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए।

खेत की तैयारी

देशी अरहर की खेती (Desi arahar ki kheti) के लिए खेत की अच्छी तरह से तैयारी करना आवश्यक है। पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए, ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए। इसके बाद 2-3 बार हैरो या कल्टीवेटर से जुताई करके खेत को समतल कर लेना चाहिए। खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था करना भी जरूरी है, क्योंकि अरहर की फसल जलभराव को सहन नहीं कर पाती है।

बीज की बुवाई

देशी अरहर की बुवाई का सही समय जून से जुलाई के बीच होता है, जब मानसून की अच्छी बारिश हो चुकी हो। बीज की बुवाई से पहले उसे फफूंदनाशक दवा से उपचारित करना चाहिए, ताकि बीज जनित रोगों से बचाव हो सके। बीज की बुवाई के लिए कतार से कतार की दूरी 45-60 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 15-20 सेमी रखनी चाहिए। बीज की गहराई 5-7 सेमी से अधिक नहीं होनी चाहिए।

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खाद और सिंचाई प्रबंधन

अरहर की फसल को नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश की आवश्यकता होती है। खेत की तैयारी के समय 10-15 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डालनी चाहिए। इसके अलावा, 20-25 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50-60 किलोग्राम फॉस्फोरस और 20-30 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से डालना चाहिए। नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फॉस्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय देनी चाहिए, जबकि नाइट्रोजन की शेष मात्रा फसल में फूल आने के समय देनी चाहिए।

अरहर की फसल को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि यह सूखे को सहन करने वाली फसल है। हालांकि, यदि वर्षा न हो तो फसल में दो सिंचाई करना आवश्यक है। पहली सिंचाई बुवाई के 20-25 दिन बाद और दूसरी सिंचाई फूल आने के समय करनी चाहिए। जलभराव से बचाने के लिए खेत में उचित जल निकासी की व्यवस्था करना जरूरी है।

खरपतवार और कीट प्रबंधन

अरहर की फसल में खरपतवार नियंत्रण बहुत महत्वपूर्ण है। बुवाई के 20-25 दिन बाद पहली निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। इसके बाद 40-45 दिन बाद दूसरी निराई-गुड़ाई करना आवश्यक है। खरपतवार नियंत्रण के लिए रासायनिक खरपतवारनाशी का भी उपयोग किया जा सकता है, लेकिन इसका उपयोग सावधानीपूर्वक करना चाहिए। 

अरहर की फसल में कई तरह के रोग और कीट लग सकते हैं, जैसे फ्यूजेरियम विल्ट, स्टेम रॉट, और पॉड बोरर। इनके नियंत्रण के लिए समय-समय पर फसल का निरीक्षण करना चाहिए और आवश्यकता पड़ने पर कीटनाशक और फफूंदनाशक दवाओं का उपयोग करना चाहिए। जैविक तरीकों से भी रोग और कीटों का नियंत्रण किया जा सकता है।

फसल की कटाई और उपज

अरहर की फसल 6-8 महीने में पककर तैयार हो जाती है। जब फलियों का रंग भूरा हो जाए और पत्तियां पीली पड़ने लगें, तो फसल की कटाई करनी चाहिए। कटाई के बाद फलियों को सुखाकर दाना निकाल लेना चाहिए। अरहर की औसत उपज 15-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।

देसी अरहर की खेती किसानों के लिए एक लाभदायक उद्यम है। यह न केवल पोषण का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, बल्कि मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में भी मददगार है। उचित प्रबंधन और देखभाल के साथ अरहर की खेती से अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है। इसके साथ ही, यह फसल किसानों की आय बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

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  • Dharmendra

    मै धर्मेन्द्र एक कृषि विशेषज्ञ हूं जिसे खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी साझा करना और नई-नई तकनीकों को समझना बेहद पसंद है। कृषि से संबंधित लेख पढ़ना और लिखना मेरा जुनून है। मेरा उद्देश्य है कि किसानों तक सही और उपयोगी जानकारी पहुंचे ताकि वे अधिक उत्पादन कर सकें और खेती को एक लाभकारी व्यवसाय बना सकें।

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