किसान भाइयों, गाय पालन तो हमारी खेती-किसानी की रीढ़ है, मगर आजकल सवाल ये उठता है कि देसी गाय पालें या जर्सी गाय? दोनों के अपने फायदे हैं, अपने नुकसान भी। अगर आप इनका फर्क समझ लें, तो सही फैसला लेकर जेब भर सकते हैं। एक तरफ ज्यादा दूध का लालच, दूसरी तरफ देसी ताकत और कम खर्चा। चलिए, देसी और जर्सी गाय का पूरा हिसाब-किताब समझते हैं, ताकि आपके लिए सही रास्ता चुनना आसान हो जाए।
दूध का खेल: जर्सी आगे, देसी पीछे
दूध की बात करें तो जर्सी गाय बाजी मार लेती है। एक जर्सी गाय रोज 12 से 20 लीटर दूध दे सकती है, वहीं देसी गाय 4 से 8 लीटर तक ही देती है। यानी अगर आपको ज्यादा दूध चाहिए और बाजार में बेचना है, तो जर्सी गाय आपकी पसंद हो सकती है। गाँव में डेयरी वाले जर्सी का दूध खूब लेते हैं, क्योंकि मात्रा ज्यादा होती है। मगर ये भी सच है कि जर्सी को खिलाने-पिलाने में मेहनत ज्यादा लगती है। देसी गाय कम देती है, लेकिन उसकी अपनी ताकत है, जो आगे समझेंगे।
दूध की ताकत: देसी का A2, जर्सी का A1
दूध सिर्फ मात्रा से नहीं, गुणवत्ता से भी देखा जाता है। देसी गाय का दूध A2 प्रोटीन से भरपूर होता है, जो पचने में आसान और सेहत के लिए बढ़िया माना जाता है। लोग कहते हैं कि ये हड्डियों को ताकत देता है और बच्चों-बूढ़ों के लिए फायदेमंद है। जर्सी गाय का दूध A1 प्रोटीन वाला होता है, जो कुछ लोगों को पेट में गड़बड़ कर सकता है। शहरों में अब A2 दूध की माँग बढ़ रही है, और लोग इसके लिए 70-100 रुपये लीटर तक देने को तैयार हैं। जर्सी का दूध सस्ता (30-40 रुपये) बिकता है, मगर उसकी ताकत देसी से कम मानी जाती है।
खुराक और देखभाल: देसी सस्ती, जर्सी नखरीली
जर्सी गाय को पालना आसान नहीं। उसे अच्छा चारा, दाना, और ठंडी जगह चाहिए। गर्मी में उसे तकलीफ होती है, और बीमार भी जल्दी पड़ती है। हर दिन 30-40 किलो हरा चारा और 4-5 किलो दाना देना पड़ता है। अगर ध्यान न रखा, तो दूध कम हो जाता है। दूसरी तरफ, देसी गाय देसी चारे और कठोर मौसम में भी टिक जाती है। उसे 20-25 किलो चारा और थोड़ा गुड़-चना काफी है। लागत कम लगती है, और बीमारी भी कम होती है। गाँव में देसी गाय को पालना जर्सी से सस्ता और आसान पड़ता है।
गोबर और गोमूत्र: देसी का जादू
देसी गाय का गोबर और गोमूत्र खेती के लिए सोने से कम नहीं। इससे जैविक खाद, जीवामृत और कीटनाशक बनते हैं, जो मिट्टी को ताकत देते हैं। एक देसी गाय रोज 10-15 किलो गोबर देती है, जिससे सालाना 3-4 टन खाद बन सकती है। ये खाद फसल को बढ़िया करती है और रासायनिक खाद का खर्चा बचाती है। जर्सी गाय का गोबर भी काम आता है, मगर उसकी ताकत देसी जितनी नहीं। जैविक खेती करने वाले किसान देसी गाय को ही चुनते हैं, क्योंकि उसका गोबर और गोमूत्र खेत का अमृत है।
ताकत और ब्याने का फर्क
देसी गाय का शरीर मजबूत होता है। गर्मी, सर्दी, बारिश, सब झेल लेती है। बीमारी कम लगती है, और दवा का खर्चा भी कम। उसका बछड़ा भी तंदुरुस्त होता है, जिसे बेचकर 10-15 हजार मिल सकते हैं। जर्सी गाय नाजुक होती है। गर्मी में उसे छाया या AC चाहिए, वरना दूध कम हो जाता है। बीमारी भी जल्दी पकड़ती है, और इलाज में पैसा लगता है। ब्याने का चक्र देसी का लंबा और स्थिर है, जबकि जर्सी का थोड़ा कम। देसी गाय सालों तक साथ देती है, जर्सी जल्दी थक सकती है।
बाजार और मुनाफे का हिसाब
आजकल जैविक खेती और A2 दूध की डिमांड बढ़ रही है। देसी गाय का दूध 70-100 रुपये लीटर बिक रहा है। मान लीजिए 5 लीटर रोज दूध मिले, तो महीने में 10-15 हजार की कमाई। गोबर से खाद बेचकर 5-10 हजार और जोड़ लीजिए। जर्सी का दूध 30-40 रुपये लीटर है, मगर 15 लीटर रोज मिले, तो 15-18 हजार महीने का बनता है। मगर जर्सी की लागत (चारा, दवा) ज्यादा है, तो शुद्ध मुनाफा देसी से कम हो सकता है। सरकार भी जैविक खेती को बढ़ावा दे रही है, तो देसी गाय का भविष्य सुनहरा है।
कौन सही आपके लिए
अब सवाल ये है कि आपको क्या चुनना चाहिए? अगर आपके पास चारा, जगह और देखभाल की पूरी सुविधा है, और सिर्फ ज्यादा दूध बेचना मकसद है, तो जर्सी गाय ठीक है। मगर अगर आप कम खर्च में, देसी तरीके से खेती करना चाहते हैं, जैविक खाद बनाना है, और A2 दूध का मुनाफा लेना है, तो देसी गाय बेस्ट है। छोटे किसान के लिए देसी सस्ती और फायदेमंद है। बड़े डेयरी वाले जर्सी चुन सकते हैं। आपका बजट, खेत और मकसद तय करेगा कि कौन सही है।
आखिरी बात
देसी और जर्सी गाय दोनों की अपनी खासियत है। जर्सी दूध की मशीन है, मगर नखरे वाली। देसी कम देती है, मगर ताकत और फायदे में आगे है। लंबे वक्त के लिए सोचें, तो देसी गाय का दूध, गोबर और गोमूत्र आपके खेत और सेहत का खजाना बन सकता है। जर्सी से तुरंत मुनाफा मिलेगा, मगर लागत ज्यादा। अपने हालात देखिए, गाँव के बड़े-बुजुर्गों से सलाह लीजिए, और फैसला करिए। सही चुना, तो गाय पालन आपकी जेब और खेत दोनों को हरा-भरा करेगा।
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