Desi Dhan Kisme: उत्तर भारत के हरे-भरे खेतों में लहलहाती धान की बालियाँ इस क्षेत्र की कृषि संस्कृति और आजीविका का प्रतीक हैं। गेहूँ के साथ-साथ धान यहाँ की प्रमुख फसल है, जो लाखों किसानों की जीवनरेखा है। वर्तमान में, हाइब्रिड और उन्नत धान किस्मों का प्रचलन बढ़ा है, लेकिन देसी धान की किस्में अपनी पोषण शक्ति, जलवायु सहनशीलता, और सांस्कृतिक महत्व के कारण आज भी अहम हैं। ये किस्में स्थानीय मिट्टी और मौसम के अनुकूल हैं, जिससे ये जैविक और कम लागत वाली खेती के लिए आदर्श हैं। यह लेख उत्तर भारत की प्रमुख देसी धान किस्मों, उनके लाभ, खेती की प्रक्रिया, बीज स्रोत, और भविष्य की संभावनाओं की विस्तृत जानकारी देगा।
देसी धान की खासियत
देसी धान की किस्में सैकड़ों वर्षों से उत्तर भारत के खेतों में उगाई जा रही हैं। इनका विकास स्थानीय जलवायु, मिट्टी, और किसानों की जरूरतों के अनुसार हुआ है। ये किस्में रासायनिक खाद और कीटनाशकों पर कम निर्भर होती हैं, जिससे खेती पर्यावरण के अनुकूल और किफायती बनती है। इनके चावल पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं, जिनमें फाइबर, प्रोटीन, और सूक्ष्म पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में होते हैं।
देसी धान की एक और खासियत है इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता। ये सूखा, बाढ़, और कीटों का बेहतर तरीके से मुकाबला कर सकती हैं। वर्तमान में, जब जलवायु परिवर्तन और मिट्टी की उर्वरता कम होना बड़ी चुनौतियाँ हैं, देसी धान की किस्में टिकाऊ खेती का आधार बन रही हैं। इसके अलावा, इनकी सुगंध, स्वाद, और बनावट बाजार में इन्हें विशेष स्थान दिलाती है।
उत्तर भारत की प्रमुख देसी धान किस्में
उत्तर भारत में कई देसी धान किस्में उगाई जाती हैं, जो अपने अनूठे गुणों और क्षेत्रीय महत्व के लिए जानी जाती हैं। इनमें से कुछ प्रमुख हैं:
काटकी धान: उत्तर प्रदेश के पूर्वी क्षेत्रों, जैसे गोरखपुर, बलिया, और देवरिया में लोकप्रिय काटकी धान अपनी लंबी बाली और सुगंधित चावल के लिए प्रसिद्ध है। यह 135-140 दिनों में पकती है और प्रति एकड़ 12-15 क्विंटल उपज देती है। इसका चावल पकने के बाद मुलायम और स्वादिष्ट होता है, जो स्थानीय बाजारों में अच्छी कीमत पर बिकता है।
बासमती 370: पंजाब, हरियाणा, और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उगाई जाने वाली यह देसी बासमती किस्म अपनी बेजोड़ खुशबू और लंबे दाने के लिए जानी जाती है। यह 130-135 दिनों में तैयार होती है और प्रति एकड़ 10-12 क्विंटल उपज देती है। इसका निर्यात भी होता है, जिससे किसानों को अच्छा मुनाफा मिलता है।
रामाजी धान: बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में रामाजी धान जैविक खेती के लिए आदर्श है। यह रोग प्रतिरोधी है और बिना रासायनिक खाद के भी अच्छी उपज देती है। यह 140-145 दिनों में पकती है और प्रति एकड़ 10-14 क्विंटल उपज देती है। इसका चावल हल्का मीठा और पाचन में आसान होता है।
चकिया धान: वाराणसी, चंदौली, और भदोही जिलों में उगाई जाने वाली चकिया धान जैविक खेती के लिए उपयुक्त है। यह 135-140 दिनों में तैयार होती है और प्रति एकड़ 12-15 क्विंटल उपज देती है। इसका चावल पौष्टिक और मधुमेह रोगियों के लिए लाभकारी माना जाता है।
काला नमक धान: सिद्धार्थनगर और आसपास के क्षेत्रों में उगाया जाने वाला काला नमक धान “पूर्वांचल का सुगंधित धान” कहलाता है। यह 140-150 दिनों में पकता है और प्रति एकड़ 10-12 क्विंटल उपज देता है। इसका चावल जैविक बाजारों और निर्यात के लिए लोकप्रिय है, जिसकी कीमत 100-150 रुपये प्रति किलो तक हो सकती है।
देसी धान की खेती की प्रक्रिया
देसी धान (Desi Dhan Kisme) की खेती के लिए खेत की तैयारी, बुवाई, और देखभाल की प्रक्रिया सामान्य धान की तरह ही है, लेकिन कुछ खास बातों का ध्यान रखना जरूरी है। खेत को मानसून से पहले (जून की शुरुआत) तैयार करें। 2-3 बार जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बनाएँ। देसी धान के लिए दोमट या चिकनी मिट्टी उपयुक्त है, जिसमें जल निकासी की अच्छी व्यवस्था हो।
बुवाई के लिए मेट टाइप नर्सरी या सीधी बुवाई का उपयोग करें। नर्सरी में 7-8 किलो बीज प्रति एकड़ के लिए पर्याप्त हैं। बीजों को 24 घंटे पानी में भिगोएँ और फिर अंकुरित होने दें। 15-18 दिनों में पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं। रोपाई जुलाई के पहले या दूसरे सप्ताह में करें, ताकि मानसून की बारिश का लाभ मिले। पौधों को 20×10 सेमी की दूरी पर रोपें।
देसी धान की खेती में जैविक खाद, जैसे गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट, का उपयोग करें। प्रति एकड़ 5-7 टन गोबर खाद पर्याप्त है। रासायनिक खाद से बचें, क्योंकि देसी किस्में प्राकृतिक पोषक तत्वों पर बेहतर पनपती हैं। खरपतवार नियंत्रण के लिए कोनो वीडर का उपयोग करें और कीटों के लिए नीम तेल (5 मिली/लीटर पानी) का छिड़काव करें।
बीज कहाँ से प्राप्त करें
देसी धान (Desi Dhan Kisme) की खेती की सफलता के लिए उच्च गुणवत्ता वाले बीज जरूरी हैं। उत्तर भारत में ये बीज कई विश्वसनीय स्रोतों से प्राप्त किए जा सकते हैं। स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र (KVK), जैसे गोरखपुर, वाराणसी, और सिद्धार्थनगर में स्थित केंद्र, काटकी, चकिया, और काला नमक जैसे देसी बीज प्रदान करते हैं। ICAR-भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान (IIRR), हैदराबाद, और इसके क्षेत्रीय केंद्र (लखनऊ, पटना) देसी किस्मों के प्रमाणित बीज उपलब्ध कराते हैं।
कृषि विश्वविद्यालय, जैसे चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय, कानपुर, और नरेन्द्र देव कृषि विश्वविद्यालय, फैजाबाद, बीज और प्रशिक्षण प्रदान करते हैं। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स, जैसे BigHaat, Seedbazaar, और Amazon.in, पर काला नमक और बासमती 370 जैसे बीज उपलब्ध हैं। स्थानीय जैविक किसान समूह, जैसे नवधान्य (देहरादून) और सहजा समृद्धा (बिहार), देसी बीजों का संरक्षण करते हैं और इन्हें किसानों तक पहुँचाते हैं।
बीज खरीदते समय उनकी प्रामाणिकता और 80% से अधिक अंकुरण दर सुनिश्चित करें। प्रगतिशील किसानों या बीज बैंकों से संपर्क करके भी स्थानीय किस्मों के बीज प्राप्त किए जा सकते हैं।
देसी धान के लाभ
देसी धान की खेती कई तरह से फायदेमंद है। ये किस्में स्थानीय मौसम और मिट्टी के अनुकूल होती हैं, जिससे ये गर्मी, सूखा, और कीटों का बेहतर मुकाबला करती हैं। इन्हें रासायनिक खाद और कीटनाशकों की कम जरूरत पड़ती है, जिससे खेती की लागत 20-30% तक कम हो जाती है। इनके चावल फाइबर, प्रोटीन, और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होते हैं, जो मधुमेह, हृदय रोग, और पाचन समस्याओं में लाभकारी हैं।
वर्तमान में, देसी और जैविक चावल की माँग भारत और विदेशों में बढ़ रही है। काला नमक और बासमती 370 जैसे चावल 100-200 रुपये प्रति किलो तक बिकते हैं, जिससे किसानों को अच्छा मुनाफा मिलता है। ये किस्में जैव विविधता को संरक्षित करती हैं, जो भविष्य में जलवायु परिवर्तन और खाद्य सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।
लागत और मुनाफे का हिसाब किताब
देसी धान की खेती की लागत प्रति एकड़ 20,000-25,000 रुपये है, जिसमें बीज, जैविक खाद, श्रम, और सिंचाई शामिल हैं। पारंपरिक हाइब्रिड धान की तुलना में यह लागत कम है, क्योंकि रासायनिक खाद और कीटनाशकों का उपयोग कम होता है। उपज 10-15 क्विंटल प्रति एकड़ होती है, और चावल की कीमत 50-150 रुपये प्रति किलो के बीच होती है।
उदाहरण के लिए, काला नमक धान से प्रति एकड़ 10 क्विंटल उपज पर 50,000-75,000 रुपये की आय हो सकती है। खर्च घटाने पर शुद्ध मुनाफा 30,000-50,000 रुपये प्रति एकड़ हो सकता है। बासमती 370 का निर्यात मूल्य और भी अधिक है, जिससे मुनाफा 1 लाख रुपये तक पहुँच सकता है।
उत्तर भारत की देसी धान किस्में, जैसे काटकी, बासमती 370, रामाजी, चकिया, और काला नमक, परंपरा, पोषण, और भविष्य का अनूठा मेल हैं। ये किस्में कम लागत, उच्च पोषण, और पर्यावरण के अनुकूल खेती का रास्ता दिखाती हैं। जैव विविधता को बचाने और मुनाफा बढ़ाने के लिए किसानों को देसी धान की खेती अपनानी चाहिए। स्थानीय KVK, ICAR, या जैविक समूहों से संपर्क करें, देसी बीज प्राप्त करें, और अपनी खेती को समृद्ध बनाएँ।
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