हरी खाद के लिए किसानों को मिलेंगे मुफ्त ढैंचा के बीज, जानें यूपी सरकार की नई योजना

Dhaincha Seeds for green fertilizer : किसान भाइयों, धान की खेती के लिए मिट्टी को ताकतवर बनाना जरूरी है, और इसके लिए हरी खाद में ढैंचा का कोई जवाब नहीं। सीतापुर जिले में 5.5 लाख हेक्टेयर जमीन पर खेती होती है, जिसमें 1.5 लाख हेक्टेयर से ज्यादा पर धान उगता है। इस बार उत्तर प्रदेश कृषि विभाग ने बड़ी पहल की है। सीतापुर के लिए 300 क्विंटल ढैंचा बीज आवंटित किए गए हैं। बीज विकास निगम इन्हें सप्लाई करेगा, और ब्लॉक स्तर पर कृषि बीज भंडारों से किसानों तक पहुँचाया जाएगा। अप्रैल 2025 में ये बीज उपलब्ध होंगे। चलिए, ढैंचा की खेती और इसके फायदों की पूरी बात समझते हैं।

धान के लिए ढैंचा क्यों जरूरी

विशेषज्ञों का कहना है कि धान की खेती के लिए ढैंचा हरी खाद का सबसे अच्छा विकल्प है। सीतापुर में किसान धान की रोपाई से 30-45 दिन पहले ढैंचा बोते हैं। ये मिट्टी में नाइट्रोजन और कार्बनिक तत्व बढ़ाता है, जिससे धान की पैदावार में इजाफा होता है। जिले में धान की खेती बड़े पैमाने पर होती है, और इसके लिए मिट्टी का स्वस्थ रहना जरूरी है।

पिछले साल बीज की कमी ने किसानों को परेशान किया था। कईयों को बाजार से 50-60 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बीज खरीदना पड़ा। इस बार 300 क्विंटल बीज से उम्मीद है कि ज्यादातर किसानों को राहत मिलेगी। ढैंचा न सिर्फ मिट्टी को पोषण देता है, बल्कि खरपतवार को भी काबू में रखता है। अप्रैल में बीज मिलने से गर्मियों की बुवाई सही वक्त पर शुरू हो सकेगी।

ढैंचा क्या है और क्यों खास है

ढैंचा सेस्बेनिया प्रजाति का पौधा है, जो भारत में हरी खाद के लिए मशहूर है। इसकी शाखाएँ लंबी होती हैं और ये गीली जमीन व भारी मिट्टी में आसानी से उग जाता है। सदियों से किसान इसे मिट्टी सुधारने और पशुओं के चारे के लिए इस्तेमाल करते आए हैं। इसके बीज में 33% कच्चा प्रोटीन और 10.9% कच्चा फाइबर होता है। जरूरत पड़ने पर इसे चारे के तौर पर भी काम में लिया जा सकता है।

ढैंचा को बोने के 40-45 दिन बाद खेत में पलट दिया जाता है। ये जल्दी सड़कर मिट्टी में मिल जाता है और पोषक तत्वों का खजाना छोड़ता है। धान की रोपाई से पहले इसे इस्तेमाल करने से फसल की सेहत और पैदावार दोनों बढ़ती हैं।

हरी खाद के फायदे

हरी खाद मिट्टी और फसल के लिए वरदान है। ढैंचा मिट्टी के पीएच को संतुलित करता है और पानी सोखने की क्षमता बढ़ाता है। इससे नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश जैसे पोषक तत्व बढ़ते हैं। खरपतवार भी कम होते हैं, जिससे फसल को पूरा पोषण मिलता है। ये रासायनिक खाद की जरूरत को 50 किलो प्रति हेक्टेयर तक कम कर सकता है। मिट्टी भुरभुरी बनती है, सूक्ष्म जीव बढ़ते हैं और उर्वरता लंबे वक्त तक बनी रहती है। सीतापुर जैसे बड़े खेती वाले इलाके में ये तकनीक किसानों की लागत घटाकर मुनाफा बढ़ा सकती है। एक हेक्टेयर में 20-25 किलो बीज बोने से 20-30 टन हरी खाद मिलती है।

शुरू करने का आसान तरीका

किसान भाइयों, ढैंचा की खेती शुरू करने के लिए अप्रैल का इंतजार करें। बीज ब्लॉक स्तर के भंडारों से लें। खेत को जोतकर गोबर खाद डालें और मिट्टी भुरभुरी करें। पंक्तियों में 2-3 फीट की दूरी पर बीज बोएँ। 6-8 घंटे धूप वाली जगह चुनें। 40-45 दिन बाद पौधों को पलट दें और हल्की सिंचाई करें। धान की रोपाई से पहले ये मिट्टी को तैयार कर देगा। नजदीकी कृषि विभाग से संपर्क करें और सब्सिडी का फायदा उठाएँ। ये छोटी मेहनत आपकी फसल और कमाई को बड़ा बनाएगी।

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  • Rahul Maurya

    मेरा नाम राहुल है। मैं उत्तर प्रदेश से हूं और संभावना इंस्टीट्यूट से पत्रकारिता में शिक्षा प्राप्त की है। मैं krishitak.com पर लेखक हूं, जहां मैं खेती-किसानी, कृषि योजनाओं पर केंद्रित आर्टिकल लिखता हूं। अपनी रुचि और विशेषज्ञता के साथ, मैं पाठकों को लेटेस्ट और उपयोगी जानकारी प्रदान करने का प्रयास करता हूं।

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