Dhan Bij Shodhan: किसान भाइयों, धान की खेती किसानों की आजीविका का आधार है। लेकिन अच्छी फसल की शुरुआत स्वस्थ बीजों से होती है। बीज शोधन एक वैज्ञानिक तकनीक है, जो अंकुरण को बेहतर बनाती है और रोगों से बचाती है। नमक, कार्बेन्डाजिम, और मैनकोज़ेब जैसे रसायनों का उपयोग बीज को फफूंद और कीटों से मुक्त करता है। ICAR के अनुसार, बीज शोधन से धान की उपज 15-20% तक बढ़ सकती है। यह प्रक्रिया नर्सरी में पौधों की गुणवत्ता और मुख्य खेत में फसल की वृद्धि को सुनिश्चित करती है। यह लेख धान के बीज शोधन की पूरी प्रक्रिया, इसके लाभ, लागत, और वैज्ञानिक विधि की जानकारी देगा।
बीज शोधन का महत्व
बीज शोधन फसल की सफलता की नींव है। धान के बीज में फफूंद, बैक्टीरिया, और कीटों के कारण रोग जैसे झुलसा रोग, तना सड़न, और जड़ सड़न लग सकते हैं। खराब बीज कम अंकुरण, कमजोर पौधे, और कम उपज का कारण बनते हैं। नमक का घोल खराब बीजों को अलग करता है, जबकि कार्बेन्डाजिम और मैनकोज़ेब रोगजनकों को नष्ट करते हैं। KVK के विशेषज्ञों का कहना है कि शोधित बीजों से नर्सरी में पौधों की मृत्यु दर 5% से कम हो जाती है। यह प्रक्रिया लागत-प्रभावी है और जैविक खेती में भी अपनाई जा सकती है।
बीज चयन की पहली कड़ी
शोधन से पहले उच्च गुणवत्ता वाले बीज चुनना जरूरी है। ICAR द्वारा अनुमोदित धान की किस्में जैसे IR-64, MTU-1010, Pusa Basmati-1509, और Swarna उपयुक्त हैं। बीज स्वस्थ, चमकदार, और रोगमुक्त होने चाहिए। राष्ट्रीय बीज निगम (NSC), राज्य बीज निगम, या कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) से प्रमाणित बीज लें। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म जैसे Bighaat और AgriBegri भी विश्वसनीय बीज प्रदान करते हैं। बीज की कीमत 50-100 रुपये/किलो है। सही बीज चयन शोधन की प्रभावशीलता को बढ़ाता है।
नमक का घोल: खराब बीज हटाएं
बीज शोधन की शुरुआत नमक के घोल से होती है। 10 लीटर पानी में 200 ग्राम नमक (2% घोल) मिलाएं। इसमें 3 किलो धान के बीज डालें। तैरते हुए बीज, जो खराब और हल्के होते हैं, हटा दें। ये बीज अंकुरण में कमजोर होते हैं। बचे हुए भारी और स्वस्थ बीजों को साफ पानी से दो बार धो लें। यह प्रक्रिया बीज की गुणवत्ता सुनिश्चित करती है। नमक सस्ता (10-15 रुपये/किलो) और आसानी से उपलब्ध है। यह विधि सरल है और हर किसान इसे घर पर कर सकता है।
रासायनिक उपचार: रोगों से सुरक्षा
नमक से छांटे गए बीजों को कार्बेन्डाजिम और मैनकोज़ेब (5 ग्राम/लीटर पानी) के घोल में 10 घंटे के लिए भिगोएं। यह घोल फफूंद रोगों जैसे झुलसा, तना सड़न, और जड़ सड़न को रोकता है। उपचार के बाद बीज को साफ पानी से हल्का धो लें, ताकि अतिरिक्त रसायन हट जाए। ICAR की सलाह है कि रसायनों की मात्रा सटीक रखें, ताकि बीज को नुकसान न हो। लागत 100-150 रुपये/50 ग्राम है। यह उपचार बीज की सतह पर मौजूद रोगजनकों को नष्ट करता है।
जैविक शोधन: पर्यावरण के अनुकूल
जैविक खेती करने वाले किसानों के लिए ट्राइकोडर्मा हार्ज़ियानम (10 ग्राम/किलो बीज) एक प्रभावी विकल्प है। इसे पानी में मिलाकर बीजों को 6-8 घंटे भिगोएं। ट्राइकोडर्मा मिट्टी में मौजूद हानिकारक फफूंद को नष्ट करता है और पौधों की वृद्धि को बढ़ाता है। लागत 200-300 रुपये/किलो है। नीम तेल (5 मिली/लीटर) भी जैविक उपचार के लिए उपयोगी है। यह पर्यावरण के अनुकूल और NPOP प्रमाणन के लिए उपयुक्त है। जैविक शोधन मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखता है।
अंकुरण और नर्सरी की तैयारी
उपचारित बीजों को छायादार जगह में गीले बोरे पर फैलाएं। 24-48 घंटे में बीज अंकुरित हो जाएंगे। इन्हें नर्सरी में 20-25 सेमी की कतारों में बोएं। नर्सरी में जल निकासी सुनिश्चित करें और खरपतवार हटाएं। 25-30 दिन बाद पौधों को मुख्य खेत में रोपें। नर्सरी में 10 टन/हेक्टेयर गोबर की खाद डालें, ताकि पौधे मजबूत हों। शोधित बीजों से नर्सरी में पौधों की वृद्धि एकसमान और स्वस्थ रहती है।
बीज शोधन के लाभ
बीज शोधन से अंकुरण दर 90% तक बढ़ती है, जबकि बिना उपचारित बीजों में यह 60-70% होती है। यह रोगों की संभावना को 80% तक कम करता है। ICAR के शोध बताते हैं कि शोधित बीजों से बने पौधे मजबूत होते हैं, जिससे उपज 15-20% बढ़ती है। नर्सरी में पौधों की मृत्यु दर कम होती है, और मुख्य खेत में फसल एकसमान रहती है। जैविक शोधन पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाता और मिट्टी की उर्वरता बनाए रखता है। यह प्रक्रिया कीटनाशकों और उर्वरकों की जरूरत को 20-30% कम करती है।
लागत और मुनाफा
बीज शोधन की लागत कम है। 3 किलो बीज के लिए नमक (200 ग्राम) की लागत 2-3 रुपये, कार्बेन्डाजिम और मैनकोज़ेब (15 ग्राम) की लागत 30-50 रुपये, और ट्राइकोडर्मा (30 ग्राम) की लागत 50-70 रुपये है। कुल लागत 100-150 रुपये/3 किलो बीज है। एक हेक्टेयर के लिए 30-40 किलो बीज की जरूरत होती है, जिसकी शोधन लागत 1000-1500 रुपये है। शोधित बीजों से उपज 50-60 क्विंटल/हेक्टेयर तक हो सकती है, जो बिना शोधन के 40-50 क्विंटल होती है। धान की कीमत 2000-2500 रुपये/क्विंटल मानें, तो अतिरिक्त 10 क्विंटल से 20,000-25,000 रुपये का मुनाफा होता है। लागत निकालने के बाद शुद्ध लाभ 18,000-23,000 रुपये/हेक्टेयर है।
रोग नियंत्रण और दीर्घकालिक प्रभाव
बीज शोधन फफूंद रोगों और कीटों को रोकता है। मैनकोज़ेब और कार्बेन्डाजिम बीज की सतह पर मौजूद रोगजनकों को नष्ट करते हैं। जैविक उपचार में ट्राइकोडर्मा और नीम तेल मिट्टी में रोगजनकों को नियंत्रित करते हैं। यह प्रक्रिया नर्सरी में पौधों की मृत्यु को 5% से कम करती है। दीर्घकाल में, शोधित बीजों से बनी फसल मजबूत होती है, जिससे कीटनाशकों की जरूरत कम हो जाती है। यह लागत बचत और पर्यावरण संरक्षण में मदद करता है। KVK की सलाह है कि नियमित शोधन से फसल की गुणवत्ता बनी रहती है।
रोगमुक्त बीज, समृद्ध खेती
बीज शोधन धान की खेती का आधार है। नमक, कार्बेन्डाजिम, मैनकोज़ेब, और ट्राइकोडर्मा का उपयोग अंकुरण को बेहतर बनाता है और रोगों को 80% तक कम करता है। यह कम लागत वाली तकनीक उपज को 15-20% बढ़ाती है और मुनाफा 20,000-25,000 रुपये/हेक्टेयर तक बढ़ा सकती है। वैज्ञानिक विधि, जैविक विकल्प, और सरकारी सहायता से किसान रोगमुक्त और उच्च गुणवत्ता वाली फसल प्राप्त कर सकते हैं। 2025 में KVK से बीज और प्रशिक्षण लें, और बीज शोधन की इस तकनीक को अपनाकर धान की खेती को लाभकारी बनाएं।
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