किसान साथियों, धान भारत की आत्मा है, जो गाँव के किसानों की मेहनत और खेतों की उर्वरता का प्रतीक है। सही उर्वरक प्रबंधन धान की फसल को न केवल अधिक उपज देता है, बल्कि मिट्टी की सेहत को भी बनाए रखता है। चाहे आप सिद्धार्थनगर के छोटे खेतों में शीघ्र पकने वाली किस्में उगा रहे हों या बिहार के बड़े खेतों में संकर धान, उर्वरक की सही मात्रा और समय आपकी फसल को समृद्ध बनाता है। इस लेख में हम शीघ्र पकने वाली, माध्यम से पकने वाली, और संकर धान की किस्मों के लिए प्रति हेक्टेयर पोषक तत्वों के उपयोग को सरल भाषा में समझाएंगे।
उर्वरक प्रबंधन: धान की सफलता का आधार
धान की फसल को नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश, और सूक्ष्म पोषक तत्वों जैसे जस्ता की जरूरत होती है। एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन (INM) में रासायनिक उर्वरक, जैविक खाद, और हरी खाद का संतुलित उपयोग फसल की उपज को 20-30% बढ़ा सकता है। मृदा परीक्षण सबसे पहला कदम है। एक किसान ने मृदा परीक्षण के बाद उर्वरक की सही मात्रा डाली और अपनी उपज को 40 क्विंटल से 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक बढ़ाया। अगर मृदा परीक्षण संभव न हो, तो सामान्य सिफारिशों का पालन करें। गोबर खाद (5-10 टन प्रति हेक्टेयर) या ढैंचा/सनई से हरी खाद मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाती है। जैविक और रासायनिक उर्वरकों का संतुलन लागत कम करता है।
शीघ्र पकने वाली किस्में: तेजी से उपज, कम उर्वरक
शीघ्र पकने वाली किस्में जैसे JR-75, पूर्णिमा, और PR-126 80-100 दिनों में पककर तैयार हो जाती हैं। ये किस्में कम समय में अच्छी उपज देती हैं, जिससे पानी और उर्वरक की बचत होती है। प्रति हेक्टेयर 40-45 किलो नाइट्रोजन, 20-30 किलो फॉस्फोरस, और 15-20 किलो पोटाश की जरूरत होती है। नाइट्रोजन की आधी मात्रा (यूरिया के रूप में) रोपाई या बुवाई के समय डालें। शेष नाइट्रोजन को दो भागों में बाँटें: एक चौथाई हिस्सा कल्ले फूटने की अवस्था (20-25 दिन बाद) और बाकी गभोट की अवस्था (40-45 दिन बाद) में टॉप ड्रेसिंग करें। फॉस्फोरस (सिंगल सुपर फॉस्फेट) और पोटाश (म्यूरेट ऑफ पोटाश) की पूरी मात्रा रोपाई से पहले मिट्टी में मिलाएँ।
माध्यम से पकने वाली किस्में: संतुलित उर्वरक, अधिक उपज
माध्यम से पकने वाली किस्में जैसे IR-64, महामाया, और MTU-1010 100-130 दिनों में पकती हैं। ये किस्में अधिक उपज देती हैं और मध्यम उर्वरक की माँग करती हैं। प्रति हेक्टेयर 80-100 किलो नाइट्रोजन, 30-40 किलो फॉस्फोरस, और 20-25 किलो पोटाश की सिफारिश की जाती है। नाइट्रोजन को तीन बार में डालें: आधा रोपाई के समय, एक चौथाई कल्ले फूटने की अवस्था में, और बाकी गभोट की अवस्था में। टॉप ड्रेसिंग के समय खेत से पानी निकाल दें और 24 घंटे बाद फिर पानी भरें। फॉस्फोरस और पोटाश को आधार खाद के रूप में मिट्टी में मिलाएँ। जस्ता के लिए 20-25 किलो जिंक सल्फेट या 0.5% जिंक सल्फेट का पर्णीय छिड़काव करें।
संकर प्रजातियाँ: अधिक उर्वरक, बंपर उपज
संकर धान की प्रजातियाँ जैसे PHB-71, Arize-6444, और US-312 अधिक उपज (60-70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर) देती हैं, लेकिन इन्हें अधिक पोषक तत्व चाहिए। प्रति हेक्टेयर 120-140 किलो नाइट्रोजन, 60-70 किलो फॉस्फोरस, और 50-60 किलो पोटाश की जरूरत होती है। नाइट्रोजन को तीन बराबर हिस्सों में डालें: एक तिहाई रोपाई के समय, एक तिहाई कल्ले फूटने की अवस्था में, और बाकी पुष्पन की अवस्था में। फॉस्फोरस और पोटाश को आधार खाद के रूप में डालें। जस्ता के लिए 20-25 किलो जिंक सल्फेट या 1% जिंक ऑक्साइड का घोल पौधों की जड़ों में डुबोकर उपयोग करें। जैव उर्वरक जैसे एजोटोबैक्टर और PSB (500 ग्राम प्रति हेक्टेयर) गोबर खाद में मिलाकर डालें, जिससे 15-20 किलो नाइट्रोजन की बचत होती है।
मृदा परीक्षण: उर्वरक की सही रणनीति
मृदा परीक्षण उर्वरक प्रबंधन की रीढ़ है। यह मिट्टी में उपलब्ध पोषक तत्वों की जानकारी देता है, जिससे अनावश्यक उर्वरक खर्च से बचा जा सकता है। सिद्धार्थनगर के नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र में मृदा परीक्षण कराएं। अगर जस्ता या गंधक की कमी हो, तो जिंक सल्फेट (25 किलो प्रति हेक्टेयर) या सिंगल सुपर फॉस्फेट (गंधक युक्त) का उपयोग करें। X पर @KrishiJagran ने साझा किया कि मृदा परीक्षण से 10-15% उर्वरक लागत कम हो सकती है। मृदा परीक्षण न कराने पर सामान्य सिफारिशों का पालन करें, लेकिन जैविक खाद का उपयोग जरूर करें। ढैंचा की हरी खाद से मिट्टी की उर्वरता 20% तक बढ़ती है।
जैविक उर्वरक: लागत कम, मिट्टी स्वस्थ
जैविक उर्वरक जैसे गोबर खाद, वर्मी कम्पोस्ट, और जैव उर्वरक (एजोटोबैक्टर, PSB) रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम करते हैं। प्रति हेक्टेयर 5-10 टन गोबर खाद खेत की तैयारी के समय डालें। अजोला (15 किलो प्रति हेक्टेयर) खेत में भुरकाव करें, जो 20 किलो नाइट्रोजन की बचत करता है। जैव उर्वरकों को 50 किलो गोबर खाद में मिलाकर बुवाई के समय कूँड़ों में डालें। बिहार के एक किसान ने जैव उर्वरकों से उर्वरक लागत को 25% कम किया। जैविक खेती मिट्टी की संरचना को बेहतर बनाती है और दीर्घकालिक मुनाफा देती है।
लागत और मुनाफा: उर्वरक से समृद्धि
धान की खेती में उर्वरक की लागत प्रति हेक्टेयर 10,000-15,000 रुपये होती है। शीघ्र पकने वाली किस्मों से 30-40 क्विंटल, माध्यम से पकने वाली से 50-60 क्विंटल, और संकर धान से 60-70 क्विंटल उपज मिलती है। बाजार में धान की कीमत 2000-2500 रुपये प्रति क्विंटल है, जिससे 60,000-1,75,000 रुपये की कमाई हो सकती है। बड़ौदा किसान प्राइड योजना से सस्ता ऋण लेकर उर्वरक और बीज की लागत को कम करें। उर्वरक प्रबंधन और सफल किसानों की कहानियाँ शेयर करें।
आज शुरू करें, खेतों को हरा-भरा बनाएँ
धान की फसल में सही उर्वरक प्रबंधन गाँव के किसानों के लिए समृद्धि का द्वार खोलता है। चाहे आप शीघ्र पकने वाली JR-75, माध्यम से पकने वाली IR-64, या संकर Arize-6444 उगा रहे हों, उर्वरक की सही मात्रा और समय आपकी मेहनत को दोगुना मुनाफा देगा। मृदा परीक्षण कराएँ, जैविक और रासायनिक उर्वरकों का संतुलन बनाएँ, और अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से सलाह लें। सिद्धार्थनगर से लेकर हरियाणा तक, धान की खेती आपके गाँव की खुशहाली का प्रतीक बनेगी। आज ही शुरू करें और अपने खेतों को हरा-भरा बनाएँ!
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