धान की बंपर नर्सरी तैयार करने का रामबाण तरीका, जानिए डीएपी-पोटाश-नाइट्रोजन का सही मिश्रण

प्यारे किसान भाइयों, वर्तमान में, धान भारत की सबसे महत्वपूर्ण खाद्य फसल है, जो उत्तर प्रदेश, बिहार, और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में किसानों की आय का प्रमुख स्रोत है। धान की खेती में नर्सरी की बिजाई एक महत्वपूर्ण चरण है, जो फसल की गुणवत्ता और पैदावार को सीधे प्रभावित करता है। नर्सरी की सफलता के लिए खेत की सही तैयारी, पोषक तत्वों का संतुलित प्रबंधन, और बीज उपचार आवश्यक हैं। यह लेख धान की नर्सरी की बिजाई के लिए खेत की तैयारी, उर्वरक प्रबंधन, बीज उपचार, नर्सरी प्रक्रिया, कीट व रोग नियंत्रण, और पैदावार बढ़ाने की तकनीकों पर विस्तृत जानकारी देगा।

खेत की तैयारी का महत्व

धान की नर्सरी की बिजाई से पहले खेत की तैयारी सबसे महत्वपूर्ण कदम है। सही तैयारी से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है, खरपतवार कम होते हैं, और कीट व रोगों का प्रकोप नियंत्रित होता है। सबसे पहले, खेत की गहरी जुताई (20-25 सेमी) ट्रैक्टर या हल से करें। यह मिट्टी को भुरभुरा बनाता है और उसमें छिपे कीटों (जैसे तना बेधक) और फंगस (जैसे राइज़ोक्टोनिया) को नष्ट करता है। जुताई के बाद खेत को 5-7 दिन खुला छोड़ दें, ताकि सूर्य की गर्मी से खरपतवार के बीज नष्ट हो जाएँ और मिट्टी में नमी बनी रहे।

जुताई के बाद खेत को लेजर लेवलर या हल से समतल करें। समतल खेत में पानी का वितरण एकसमान होता है, जिससे बीज समान रूप से अंकुरित होते हैं। यदि खेत में जल जमाव की समस्या है, तो नालियाँ बनाकर जल निकास की व्यवस्था करें। दोमट या चिकनी दोमट मिट्टी, जिसका pH 5.5-7.5 हो, धान की नर्सरी के लिए आदर्श है। अम्लीय मिट्टी में प्रति एकड़ 100-150 किलो चूना डालकर pH संतुलित करें। खेत की तैयारी के दौरान मृदा परीक्षण कराएँ, ताकि पोषक तत्वों की कमी का पता चल सके।

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उर्वरक प्रबंधन और पोषक तत्वों की पूर्ति

धान की नर्सरी में पौधों को स्वस्थ और मजबूत बनाने के लिए पोषक तत्वों का संतुलित उपयोग आवश्यक है। नर्सरी के लिए जैविक और रासायनिक उर्वरकों का संयोजन सर्वोत्तम परिणाम देता है। खेत की तैयारी के दौरान प्रति एकड़ 2-3 टन गोबर खाद या वर्मी कम्पोस्ट डालें। यह मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है और सूक्ष्म पोषक तत्व प्रदान करता है।

रासायनिक उर्वरकों में डायमोनियम फॉस्फेट (DAP), पोटाश (MOP), और नाइट्रोजन (यूरिया) का उपयोग करें। प्रति एकड़ निम्नलिखित मात्रा उपयुक्त है:

  • DAP: 5-7 किलो (फॉस्फोरस और नाइट्रोजन की पूर्ति)।

  • पोटाश: 3-5 किलो (जड़ विकास और रोग प्रतिरोधकता)।

  • नाइट्रोजन: 2 किलो यूरिया (पत्तियों और तने की वृद्धि)।

इन उर्वरकों को खेत में समान रूप से बिखेरें और हल या रोटावेटर से मिट्टी में मिलाएँ। इसके बाद खेत में 2-3 सेमी पानी भरें और 2-3 दिन तक स्थिर रखें, ताकि उर्वरक मिट्टी में घुल जाएँ। पानी छोड़ने से पहले मिट्टी को पुनः समतल करें। जैविक खेती के लिए, अज़ोटोबैक्टर या PSB (1 किलो/50 किलो FYM) का उपयोग करें, जो नाइट्रोजन और फॉस्फोरस की उपलब्धता बढ़ाता है। ICAR-IIRR सलाह देता है कि उर्वरकों का अधिक उपयोग न करें, क्योंकि यह पौधों को कमजोर कर सकता है।

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बीज चयन और उपचार

स्वस्थ और रोगमुक्त बीज नर्सरी की सफलता की नींव हैं। उच्च उपज देने वाली धान की किस्में, जैसे IR-64, स्वर्णा, पूसा बासमती-1509, या स्थानीय किस्में (सांभा मंसूरी, मालवीय धान), चुनें। प्रति एकड़ मुख्य खेत की रोपाई के लिए 8-10 किलो बीज पर्याप्त हैं, और नर्सरी के लिए 20-25 वर्ग मीटर क्षेत्र की आवश्यकता होती है। बीज को KVK, ICAR, या प्रमाणित नर्सरी (जैसे NSC) से खरीदें।

बुवाई से पहले बीज को उपचारित करें। बीज को 24 घंटे पानी में भिगोएँ, फिर छाया में सुखाएँ। इसके बाद ट्राइकोडर्मा वाइराइड (5 ग्राम/किलो बीज) या कार्बेन्डाजिम (2 ग्राम/किलो बीज) से उपचार करें। यह बीज जनित रोगों (जैसे ब्लास्ट, झुलसा) से बचाता है। जैविक उपचार के लिए, नीम तेल (5 मिली/किलो बीज) या गोमूत्र (10% घोल) का उपयोग करें। उपचारित बीज को 2-3 दिन तक नम कपड़े में रखें, ताकि अंकुरण शुरू हो जाए।

नर्सरी की बिजाई और प्रक्रिया

नर्सरी की बिजाई का उपयुक्त समय उत्तर प्रदेश, बिहार, और पश्चिम बंगाल में मई-जून (खरीफ मौसम) है। बुवाई से पहले खेत में 2-3 सेमी पानी भरें और मिट्टी को कीचड़ जैसा बनाएँ। अंकुरित बीजों को खेत में समान रूप से बिखेरें। प्रति वर्ग मीटर 50-60 ग्राम बीज पर्याप्त हैं। बीज बिखेरने के बाद हल्की मिट्टी की परत डालें, ताकि बीज स्थिर रहें।

बिजाई के बाद खेत में 1-2 सेमी पानी का स्तर बनाए रखें। 5-7 दिन बाद पौधे अंकुरित होने लगते हैं। नर्सरी में पानी का प्रबंधन सावधानी से करें। अधिक पानी से बीज सड़ सकते हैं, और कम पानी से अंकुरण रुक सकता है। ड्रिप सिंचाई या माइक्रो-स्प्रिंकलर का उपयोग पानी की बचत करता है। 15-20 दिन बाद पौधे 15-20 सेमी ऊँचे हो जाते हैं, जो रोपाई के लिए तैयार होते हैं।

पैदावार बढ़ाने की तकनीकें

स्वस्थ नर्सरी धान की रोपाई को समय पर और प्रभावी बनाती है, जिससे पैदावार बढ़ती है। निम्नलिखित तकनीकें उपयोगी हैं:

  • सही समय पर रोपाई: नर्सरी के पौधों को 20-25 दिन की उम्र में रोपें, ताकि जड़ें मजबूत हों।

  • सिस्टम ऑफ राइस इंटेंसिफिकेशन (SRI): कम बीज और पानी के साथ अधिक उपज के लिए SRI तकनीक अपनाएँ।

  • जैविक खेती: नीम खली, वर्मी कम्पोस्ट, और जैव उर्वरकों का उपयोग मृदा स्वास्थ्य को बनाए रखता है।

  • मृदा परीक्षण: हर मौसम से पहले मृदा परीक्षण कराएँ, ताकि उर्वरकों की सही मात्रा का उपयोग हो।

    धान की नर्सरी की बिजाई में खेत की सही तैयारी और उर्वरक प्रबंधन फसल की सफलता की कुंजी है। गहरी जुताई, समतल खेत, संतुलित उर्वरक (DAP, पोटाश, नाइट्रोजन), और बीज उपचार से नर्सरी जल्दी और मजबूती से तैयार होती है।

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  • Dharmendra

    मै धर्मेन्द्र पिछले तिन साल से पत्रकारिता कर रहा हूँ मै ugc नेट क्वालीफाई हूँ भूगोल विषय से मै एक विषय प्रवक्ता हूँ , मुझे कृषि सम्बन्धित लेख लिखने में बहुत रूचि है मैंने सम्भावना संस्थान हिमाचल प्रदेश से कोर्स किया हुआ है |

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