Dhaniya RCR 446 Variety: धनिया भारतीय रसोई का दिल है। चाहे सब्जी में स्वाद बढ़ाना हो, चटनी में जायका लाना हो या आयुर्वेदिक दवाओं में इस्तेमाल, धनिया हर जगह छाया रहता है। अब इसकी आरसीआर 446 किस्म ने किसानों के लिए कमाई का नया रास्ता खोल दिया है। ये किस्म ज्यादा पैदावार, बेहतर क्वालिटी और रोगों से लड़ने की ताकत के लिए मशहूर है। कम समय में तैयार होने वाली इस फसल से किसान भाई अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। आइए, जानते हैं कि धनिया की आरसीआर 446 की खेती कैसे करें, इसके फायदे क्या हैं और इससे कितनी कमाई हो सकती है।
आरसीआर 446: धनिया की सुपरस्टार किस्म
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) ने धनिया की आरसीआर 446 किस्म (Dhaniya RCR 446 Variety) को खास तौर पर तैयार किया है। ये किस्म अपनी खूबियों की वजह से किसानों की पहली पसंद बन रही है। एक एकड़ में 6-7 क्विंटल बीज देती है, जो पुरानी किस्मों से कहीं ज्यादा है। इसके बीजों में तेल की मात्रा ज्यादा होती है, जिससे बाजार में अच्छा दाम मिलता है। ये किस्म कई रोगों और कीटों से लड़ने में माहिर है, यानी फसल खराब होने का डर कम। सबसे खास बात, ये 110-120 दिनों में तैयार हो जाती है, जिससे समय और मेहनत दोनों बचते हैं।
सही मौसम और मिट्टी
धनिया की आरसीआर 446 को ठंडा और शीतोष्ण मौसम बहुत भाता है। 20 से 30 डिग्री सेल्सियस का तापमान इसके लिए परफेक्ट है। ज्यादा गर्मी या सर्दी इसकी ग्रोथ रोक सकती है। मिट्टी की बात करें तो दोमट मिट्टी, जिसमें पानी अच्छे से निकल जाए, इसके लिए बेस्ट है। मिट्टी का pH 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और बिहार जैसे राज्यों में ये फसल खूब फलती है। खेत में जलभराव न हो, इसका खास ध्यान रखें, वरना जड़ें सड़ सकती हैं।
बुवाई का सही तरीका
धनिया की खेती शुरू करने से पहले खेत को अच्छे से जोत लें। 2-3 बार जुताई करें और खेत को समतल बनाएं। 10-15 टन गोबर की खाद या वर्मीकंपोस्ट प्रति एकड़ डालें, ताकि मिट्टी उपजाऊ बने। बीजों को बोने से पहले फंगीसाइड से ट्रीट करें, ताकि रोगों से बचाव हो। बुवाई का सही समय अक्टूबर-नवंबर है। बीजों को 30 सेंटीमीटर की दूरी वाली पंक्तियों में बोएं, और पौधों के बीच 15 सेंटीमीटर का गैप रखें। प्रति एकड़ 8-10 किलो बीज काफी हैं। बुवाई के बाद हल्का पानी दें, ताकि बीज अच्छे से जम जाएं।
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पानी और खाद का सही इंतजाम
धनिया की फसल को नियमित पानी चाहिए। बुवाई के बाद पहली सिंचाई 7-10 दिन बाद करें। इसके बाद मौसम के हिसाब से हर 8-12 दिन में पानी दें। फूल और बीज बनने के वक्त पानी का खास ध्यान रखें, लेकिन ज्यादा पानी न डालें। खाद की बात करें तो बुवाई से पहले 20 किलो नाइट्रोजन, 40 किलो फास्फोरस और 20 किलो पोटैश प्रति एकड़ डालें। फसल बढ़ने पर 20 किलो नाइट्रोजन की एक और खुराक दें। डीएपी और एनपीके का सही इस्तेमाल करें, और मिट्टी की जांच के बाद ही खाद डालें। जैविक खाद मिलाने से फसल की क्वालिटी और बढ़ती है।
कीट और रोगों से बचाव
हालांकि आरसीआर 446 (Dhaniya RCR 446 Variety) रोगों से लड़ने में माहिर है, फिर भी झुलसा रोग, उकठा रोग और जड़ सड़न परेशान कर सकते हैं। इनसे बचने के लिए बीजों को बोने से पहले फंगीसाइड से ट्रीट करें और फसल चक्र अपनाएं। एफिड्स और थ्रिप्स जैसे कीटों से निपटने के लिए नीम का तेल या जैविक कीटनाशक छिड़कें। अगर पत्तियां मुरझाएं या बीज खराब दिखें, तो तुरंत कृषि विशेषज्ञ से सलाह लें। खेत को साफ रखें और खरपतवार समय-समय पर हटाएं।
कटाई का सही समय और उपज
धनिया की फसल 110-120 दिन में तैयार हो जाती है। जब बीज पीले या भूरे हो जाएं और पत्तियां सूखने लगें, तो कटाई शुरू करें। सुबह के वक्त कटाई करें, ताकि बीज न झड़ें। कटाई के बाद बीजों को अच्छे से सुखाएं और साफ करें। एक एकड़ से 6-7 क्विंटल बीज मिल सकते हैं। अगर देखभाल अच्छी हो, तो उपज 8 क्विंटल तक भी जा सकती है। सूखे बीजों को ठंडी और सूखी जगह स्टोर करें, ताकि उनकी क्वालिटी बनी रहे।
कमाई का हिसाब
धनिया के बीज बाजार में 5000 से 7000 रुपये प्रति क्विंटल बिकते हैं। अगर एक एकड़ से 6-7 क्विंटल बीज मिले, तो 30,000 से 50,000 रुपये की कमाई हो सकती है। लागत की बात करें तो बीज, खाद, मजदूरी और पानी मिलाकर 15,000-20,000 रुपये खर्च आता है। यानी एक एकड़ से 20,000-30,000 रुपये का शुद्ध मुनाफा। बड़े पैमाने पर खेती करें, तो लाखों रुपये की कमाई पक्की। इसके अलावा, धनिया की पत्तियां भी 50-100 रुपये प्रति किलो बिकती हैं, जो अतिरिक्त कमाई देती हैं।
क्यों है आरसीआर 446 खास
धनिया की आरसीआर 446 (Dhaniya RCR 446 Variety) किस्म कम समय में ज्यादा पैदावार देती है। इसके बीजों की क्वालिटी इतनी शानदार है कि मसाला कंपनियां और सौंदर्य प्रसाधन इंडस्ट्री इसे हाथों-हाथ लेती हैं। ये रोगों से लड़ने में माहिर है, जिससे फसल खराब होने का डर कम रहता है। छोटे और मझोले किसानों के लिए ये किसी वरदान से कम नहीं। साथ ही, इसकी खेती से देश की अर्थव्यवस्था को भी बल मिलता है।
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