पूर्वी भारत में दूसरी हरित क्रांति क्यों ज़रूरी है? जानिए असली कारण

पूर्वी भारत के राज्य असम, पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, और छत्तीसगढ़ 17°N अक्षांश और 80°E से 97°E देशांतर के बीच बसे हैं। ये क्षेत्र जल, उपजाऊ मिट्टी, और प्राकृतिक संसाधनों से भरे पड़े हैं, जहां करीब 72.36 मिलियन हेक्टेयर जमीन खेती के लिए तैयार है। इसकी समृद्धि को देखते हुए केंद्र सरकार ने यहां दूसरी हरित क्रांति की शुरुआत की है, ताकि देश की खाद्य सुरक्षा को मजबूत किया जा सके। इस क्षेत्र में 10 राज्य कृषि विश्वविद्यालय, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के 18 संस्थान, 32 क्षेत्रीय कार्यालय, और कई राज्य इकाइयां किसानों की मदद के लिए काम कर रही हैं। लेकिन इन सारी ताकतों के बावजूद, यहां की खेती कई मुश्किलों से जूझ रही है। आइए, जानते हैं कि ये चुनौतियां क्या हैं और इनसे पार पाने के रास्ते क्या हो सकते हैं।

खेती की चुनौतियां

इस क्षेत्र में खेती को गरीबी, जमीन के बंटवारे, और जनसंख्या के दबाव जैसी समस्याएं परेशान करती हैं। ज्यादातर किसान छोटे या सीमांत हैं, जिनके पास उन्नत बीज और मशीनें नहीं हैं। सूखा और बाढ़ की दोहरी मार हर साल फसल को नुकसान पहुंचाती है। इसके अलावा, मार्केटिंग और भंडारण की कमजोर व्यवस्था से किसानों को सही दाम नहीं मिल पाते। धान की खेती के बाद परती जमीन की अधिकता भी एक बड़ी दिक्कत है। फिर भी, ये क्षेत्र हार नहीं मानता और 73.76 मिलियन टन खाद्यान्न, 67.0 मिलियन टन सब्जियां, और 16.45 मिलियन टन फल पैदा करता है। चावल, सब्जियां, और मछली के उत्पादन में ये देश का अगुआ बना हुआ है।

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पशुपालन में संभावनाएं

पशुपालन भी इस क्षेत्र की ताकत है। 2012 के आंकड़ों के मुताबिक, देश के कुल 512.05 मिलियन पशुओं में से 165.30 मिलियन इसी क्षेत्र में हैं, जहां देसी नस्लों का बोलबाला है। विशेषज्ञ कहते हैं कि अगर कृत्रिम गर्भाधान, टीकाकरण, संतुलित चारा, और हरे भोजन को अपनाया जाए, तो दूध और मांस उत्पादन में 10-15% की बढ़ोतरी हो सकती है। देहात में कई किसान अपने पशुओं को स्थानीय घास और पत्तियों के साथ दाना खिलाते हैं, जो सस्ता और असरदार है। गाय-भैंस की देखभाल में साफ पानी और छांव का इंतजाम भी जरूरी है, ताकि वे स्वस्थ रहें और ज्यादा दूध दें।

नीली क्रांति की शुरुआत

मछली पालन में भी पूर्वी भारत आगे है, खासकर पश्चिम बंगाल जो इस मामले में सबसे ऊपर है। बिहार, ओडिशा, और अन्य राज्य भी नीली क्रांति की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं। तालाबों और नदियों का भरपूर इस्तेमाल हो रहा है, लेकिन उन्नत बीज, गुणवत्ता प्रबंधन, और अंगुलिका मछलियों की कमी अभी भी एक चुनौती है। देहाती मछुआरे अपने अनुभव से तालाबों में मछली पालते हैं और स्थानीय बाजार में बेचते हैं। अगर सरकार सस्ते बीज और ट्रेनिंग दे, तो ये क्षेत्र मछली उत्पादन में और आगे बढ़ सकता है।

कृषि जलवायु और उत्पादकता

पूर्वी भारत के पांच कृषि जलवायु क्षेत्रों में मध्य और निचला गांगेय क्षेत्र सबसे उपजाऊ माने जाते हैं। निचला गांगेय क्षेत्र चावल, मक्का, तिलहन, अंडा, और मछली में सबसे ज्यादा उत्पादन देता है। वहीं, मध्य गांगेय क्षेत्र गेहूं, दालें, सब्जियां, फल, मांस, और दूध में बेहतर प्रदर्शन करता है। पठारी क्षेत्र में उत्पादकता थोड़ी कम है, लेकिन वहां की मिट्टी छोटी फसलों और जड़ी-बूटियों के लिए मुफीद है। देहाती किसान इन क्षेत्रों की मिट्टी के हिसाब से फसल चुनते हैं, जैसे बाढ़ वाली जमीन में धान और ऊंची जगह पर सब्जियां।

मौसमी चुनौतियों से निपटना

सूखा और बाढ़ की समस्या से निपटने के लिए देहाती किसान पुराने तरीके आजमाते हैं। बाढ़ के वक्त मिट्टी के बांध बनाकर फसल बचाई जाती है, और सूखे में छोटे तालाबों से सिंचाई की जाती है। गर्मी में पेड़ों की छांव और मिट्टी को नम रखने से फसल को राहत मिलती है। सर्दियों में फसलों को कवर करने के लिए भूसे का इस्तेमाल होता है। ये देसी उपाय न सिर्फ सस्ते हैं, बल्कि प्रकृति के साथ चलते हैं। सरकार अगर इन तरीकों को बढ़ावा दे, तो उत्पादन और बेहतर हो सकता है।

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उन्नत तकनीक और संसाधन

उन्नत बीज और यंत्रीकरण की कमी को दूर करने के लिए स्थानीय स्तर पर जागरूकता फैलानी होगी। देहाती किसान साइकिल या बैलगाड़ी से बीज लाते हैं, लेकिन अगर छोटे ट्रैक्टर या सीड ड्रिल मिले, तो मेहनत कम होगी। ICAR के संस्थानों से ट्रेनिंग लेकर किसान नए तरीके सीख सकते हैं, जैसे ड्रिप सिंचाई या मल्चिंग, जो पानी और खाद बचाती है। पशुओं के लिए सौर ऊर्जा से चलने वाले चारा काटने के औजार भी फायदा पहुंचा सकते हैं।

भंडारण और मार्केटिंग में सुधार

विपणन और भंडारण की कमजोर प्रणाली से निपटने के लिए देहाती सहकारी समितियां बनाई जा सकती हैं। फसल कटने के बाद उसे सुखाकर गोदामों में रखें, जहां नमी से बचाव हो। स्थानीय हाट या मंडियों में सीधे बिक्री से मुनाफा बढ़ता है। मछली और दूध के लिए ठंडे स्टोरेज की व्यवस्था हो, ताकि बर्बादी न हो। सरकार अगर सस्ते गोदाम और ट्रांसपोर्ट दे, तो किसानों की आय दोगुनी हो सकती है।

पूर्वी भारत की मिट्टी और पानी की ताकत को सही दिशा देने से खेती, पशुपालन, और मछली पालन में क्रांति आ सकती है। छोटे किसानों को उन्नत बीज, सस्ती मशीनें, और ट्रेनिंग देकर उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। पशुओं के लिए देसी नस्लों को बेहतर बनाना और मछली पालन में गुणवत्ता लाना जरूरी है। देहाती किसान अपनी मेहनत और स्थानीय ज्ञान के साथ इन बदलावों को अपनाएं, तो आने वाले सालों में ये क्षेत्र देश का अन्न भंडार बन सकता है।

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  • Dharmendra

    मै धर्मेन्द्र एक कृषि विशेषज्ञ हूं जिसे खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी साझा करना और नई-नई तकनीकों को समझना बेहद पसंद है। कृषि से संबंधित लेख पढ़ना और लिखना मेरा जुनून है। मेरा उद्देश्य है कि किसानों तक सही और उपयोगी जानकारी पहुंचे ताकि वे अधिक उत्पादन कर सकें और खेती को एक लाभकारी व्यवसाय बना सकें।

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