DSR विधि से खेती, गोरखपुर के पाली ब्लॉक में फसल ने बिखेरी हरियाली, इस तकनीक की सफलता देख चकित हुए अफसर!

DSR Paddy Cultivation in UP: उत्तर प्रदेश के खेतिहर समुदाय के लिए मॉनसून का समय फसलों की नई उम्मीद लेकर आता है, और इस बार गोरखपुर के विकास खंड पाली के गांवों मैला, मुस्तफाबाद, और बावंदर में एक खास बदलाव देखने को मिल रहा है। 21 जून 2025 को यहाँ धान की फसल को डीएसआर (Direct Seeded Rice) विधि से उगाने का निरीक्षण किया गया, जिसमें कृषि विभाग के अधिकारी और एडीओ एग्री, बीटीएम शामिल रहे। तस्वीर में आप इन्हें खेतों में खड़े देख सकते हैं, जहाँ हरी-भरी फसल और नीला आसमान उम्मीद की किरण दिखा रहा है। आइए, जानते हैं डीएसआर विधि क्या है और इससे कैसे फायदा हो सकता है।

DSR Paddy Cultivation in UP

डीएसआर विधि, परंपरा में बदलाव का कदम

डीएसआर यानी सीधी बुवाई वाली धान की खेती पुरानी पद्धति जिसमें नर्सरी तैयार कर रोपाई की जाती थी का आधुनिक विकल्प है। गोरखपुर के इन गांवों में किसानों ने इस विधि से धान की बुवाई की, और अब इसका जायजा लेने के लिए कृषि विशेषज्ञ मौके पर पहुँचे। तस्वीर में दिख रहे खेतों में बीज सीधे मिट्टी में बोए गए हैं, जहाँ बारिश की नमी ने अंकुरण को बढ़ावा दिया है। एडीओ एग्री और बीटीएम ने न सिर्फ फसल की सेहत जाँची, बल्कि आसपास के किसानों को भी इस विधि के फायदे बताए। उनका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि हर किसान इस तकनीक से परिचित हो और अपनी मेहनत को आसान बनाए।

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फसलों के लिए फायदा, पानी और मेहनत की बचत

डीएसआर विधि की खासियत यह है कि इसमें पारंपरिक रोपाई की तुलना में 15-20% कम पानी लगता है, जो सूखे की आशंका वाले क्षेत्रों के लिए वरदान है। खेत में 25-27 सिंचाई की जगह 15-18 बार ही पानी देना काफी है। साथ ही, नर्सरी तैयार करने और रोपाई की मेहनत से मुक्ति मिलती है, जिससे श्रम लागत घटती है। फसल 7-10 दिन पहले तैयार हो जाती है, जिससे किसानों को अगली फसल के लिए समय बचता है। निरीक्षण के दौरान देखा गया कि खेतों में धान की वृद्धि अच्छी है, और खरपतवार नियंत्रण के लिए भी यह विधि प्रभावी साबित हो रही है।

डीएसआर को सफल बनाने के लिए कुछ देसी टिप्स अपनाएँ। बुवाई से पहले खेत की 2-3 बार जुताई करें और प्रति हेक्टेयर 10-15 टन गोबर की खाद मिलाएँ, ताकि मिट्टी उपजाऊ बने। बीजों को 2-3 सेंटीमीटर गहराई में बोएँ और 20-25 किलो बीज प्रति एकड़ का इस्तेमाल करें। बुवाई के बाद खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए पहली निराई 15-20 दिन में करें और जरूरत पड़ने पर नीम का तेल (5 मिली प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें। मॉनसून की बारिश से नमी बनी रहेगी, लेकिन खेत में पानी जमा न होने दें इसके लिए मेड़ बनाएँ।

मिट्टी और पर्यावरण का साथी

डीएसआर विधि मिट्टी की सेहत के लिए भी फायदेमंद है। इसमें कम पानी और कम जुताई से मिट्टी का कटाव रुकता है, और कार्बनिक पदार्थ बने रहते हैं। पारंपरिक तरीके में ज्यादा पानी से मिट्टी की उर्वरता कम होती है, लेकिन डीएसआर इसे बचाता है। साथ ही, कम रासायनिक इस्तेमाल से पर्यावरण प्रदूषण कम होता है, और मित्र कीटों की रक्षा होती है। गोरखपुर के इन खेतों में यह विधि न सिर्फ फसल को ताकत दे रही है, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में टिकाऊ खेती को बढ़ावा दे रही है। यह बदलाव आने वाली पीढ़ियों के लिए मिट्टी को हरा-भरा रखेगा।

डीएसआर विधि खेती को आसान और फायदेमंद बनाने का एक सुनहरा मौका है। गोरखपुर के इन गांवों में शुरू हुई यह पहल पूरे उत्तर प्रदेश के लिए प्रेरणा बन सकती है। देसी मेहनत, सही तकनीक, और सरकारी सहायता से आप इस जून-जुलाई 2025 में अपनी फसलों को नई ऊँचाइयों पर ले जा सकते हैं। आज से शुरू करें और मुनाफे की फसल काटें!

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  • Dharmendra

    मै धर्मेन्द्र एक कृषि विशेषज्ञ हूं जिसे खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी साझा करना और नई-नई तकनीकों को समझना बेहद पसंद है। कृषि से संबंधित लेख पढ़ना और लिखना मेरा जुनून है। मेरा उद्देश्य है कि किसानों तक सही और उपयोगी जानकारी पहुंचे ताकि वे अधिक उत्पादन कर सकें और खेती को एक लाभकारी व्यवसाय बना सकें।

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