किसान भाइयों, दुम्बा बकरी, जिसे मोटी पूंछ वाली भेड़ (Fat-tailed Sheep) के नाम से भी जाना जाता है, भारत के पशुपालकों के लिए आय का नया स्रोत बन रही है। यह विदेशी नस्ल मध्य एशिया से आई है, लेकिन अब राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश, और अन्य राज्यों में इसका पालन तेजी से बढ़ रहा है। दुम्बा का मांस स्वादिष्ट, पौष्टिक, और प्रोटीन से भरपूर होता है, जिसकी मांग बकरीद, शादी-समारोह, और होटलों में खूब रहती है। इसकी मोटी पूंछ में वसा जमा होती है, जो इसे अनोखा बनाती है। भारत देश में दुम्बा पालन कम लागत में बंपर मुनाफा देता है।
मांस का खजाना, दुम्बा की विशेषताएं
दुम्बा बकरी की सबसे बड़ी खासियत इसकी मोटी पूंछ है, जिसमें वसा जमा होती है। यह वसा मांस को रसीला और स्वादिष्ट बनाती है, जिससे बाजार में इसकी कीमत 800-1,200 रुपये प्रति किलो तक जाती है। दुम्बा का शरीर मध्यम से बड़ा होता है, और इसका रंग सफेद, भूरा, या काला हो सकता है। इसके कान छोटे और सींग अनुपस्थित होते हैं। नर दुम्बा का वजन 60-100 किलो और मादा का 40-70 किलो तक होता है। यह नस्ल गर्म और शुष्क जलवायु में आसानी से ढल जाती है, जो भारत के अधिकांश क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। दुम्बा साल में एक बार 1-2 बच्चे देती है, और इसके बच्चे 6-8 महीने में बिक्री के लिए तैयार हो जाते हैं।
दुम्बा बकरी पालन क्यों?
दुम्बा पालन भारत के छोटे और सीमांत पशुपालकों के लिए वरदान है। यह नस्ल कम चारा खाकर तेजी से बढ़ती है, जिससे रखरखाव का खर्च कम रहता है। दुम्बा की मांग स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बढ़ रही है, खासकर बकरीद और त्योहारों के समय। एक दुम्बा 6-8 महीने में 50-80 किलो वजन तक पहुंच जाता है, जिसे 40,000-80,000 रुपये में बेचा जा सकता है। इसके अलावा, इसकी ऊन, खाल, और खाद से अतिरिक्त आय होती है। दुम्बा को बकरी की तरह ही घर पर या छोटे शेड में पाला जा सकता है, जिससे बड़े बाड़े की जरूरत नहीं पड़ती। यह व्यवसाय ग्रामीण महिलाओं और युवाओं के लिए रोजगार का शानदार अवसर है।
जलवायु और स्थान का चयन
दुम्बा गर्म और शुष्क जलवायु में अच्छी तरह पनपता है, जैसे राजस्थान, गुजरात, और उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्र। 20-40 डिग्री सेल्सियस तापमान और कम वर्षा इसके लिए आदर्श है। पालन के लिए सूखा, हवादार, और साफ शेड बनाएं। शेड का फर्श कंक्रीट या बांस का हो, ताकि सफाई आसान हो। प्रति दुम्बा 10-15 वर्ग फीट जगह दें। शेड को जंगली जानवरों से सुरक्षित रखें और बारिश से बचाव के लिए छत मजबूत बनाएं। खुला मैदान चराई के लिए जरूरी है, लेकिन स्टॉल फीडिंग (बांधकर पालन) भी संभव है।
उन्नत शुरुआत, दुम्बा की खरीद
दुम्बा खरीदते समय स्वस्थ और प्रमाणित नस्ल चुनें। भारत में अफगानी या तुर्कमेनी दुम्बा लोकप्रिय हैं। एक स्वस्थ दुम्बा की कीमत 15,000-30,000 रुपये होती है, जो उम्र और वजन पर निर्भर करती है। स्थानीय पशु मंडी, ICAR संस्थान, या विश्वसनीय ब्रीडर से खरीदें। खरीदने से पहले दुम्बा की पूंछ, चमकदार आंखें, और सक्रियता जांचें। बच्चों (6-8 महीने) को खरीदना बेहतर है, क्योंकि वे जल्दी बिक्री के लिए तैयार हो जाते हैं।
पोषण का आधार, चारा और खुराक
दुम्बा कम चारे में भी तेजी से बढ़ता है। हरी घास (बरसीम, रिजका), सूखा चारा (भूसा, ज्वार), और दाना (मूंगफली खली, ग्वार) इसके लिए उपयुक्त हैं। प्रति दुम्बा रोजाना 2-3 किलो हरा चारा और 300-500 ग्राम दाना दें। नीम, बबूल, और बेर की पत्तियां भी इसे पसंद हैं। साफ और ताजा पानी दिन में 2-3 बार उपलब्ध कराएं। दूध देने वाली मादा को अतिरिक्त 100 ग्राम दाना दें। जैविक पालन के लिए गोबर की खाद और वर्मीकम्पोस्ट से उगाए गए चारे का उपयोग करें। नमक और खनिज मिश्रण (50 ग्राम रोज) वजन बढ़ाने में मदद करते हैं।
स्वास्थ्य का कवच, रोग प्रबंधन
दुम्बा में PPR (पेस्ट डेस पेटिट्स रूमिनेंट्स), खुरपका-मुंहपका, और दाद जैसे रोग हो सकते हैं। PPR वैक्सीन (1 मिलीलीटर, हर 3 साल में) और खुरपका-मुंहपका वैक्सीन (हर 6 महीने में) लगवाएं। नीम तेल (5 मिली/लीटर पानी) का छिड़काव दाद से बचाता है। शेड को नियमित रूप से साफ करें और बकरियों को गीले स्थान पर न रखें। ब्याने वाली मादा को आयोडीन से साफ करें और नवजात बच्चों को पहली खीस (कोलोस्ट्रम) 30 मिनट में पिलाएं। स्थानीय पशु चिकित्सक से नियमित जांच करवाएं।
प्रजनन का मंत्र, बच्चों की देखभाल
दुम्बा 12-18 महीने की उम्र में प्रजनन के लिए तैयार हो जाता है। मादा साल में एक बार 1-2 बच्चे देती है। गर्भावस्था 5 महीने की होती है। ब्याने से 6-8 सप्ताह पहले दूध निकालना बंद करें। नवजात बच्चों को साफ कपड़े से पोंछें और टिंचर आयोडीन से नाभि साफ करें। बच्चों को 3-4 महीने तक मां का दूध पिलाएं, फिर चारा शुरू करें। प्रजनन के लिए स्वस्थ नर चुनें और हर 20 मादा के लिए 1 नर रखें।
मुनाफे की गणना, लागत और आय
10 दुम्बा (8 मादा, 2 नर) के पालन में शुरुआती लागत 2-2.5 लाख रुपये आती है। इसमें दुम्बा खरीद (1.5 लाख), शेड (50,000 रुपये), और चारा (50,000 रुपये सालाना) शामिल हैं। एक दुम्बा 6-8 महीने में 50-80 किलो वजन का हो जाता है, जिसे 40,000-80,000 रुपये में बेचा जा सकता है। 10 दुम्बा से सालाना 5-8 लाख रुपये की आय हो सकती है। लागत हटाने के बाद 3-5 लाख रुपये का मुनाफा संभव है। ऊन (5-10 किलो प्रति दुम्बा) और खाद से अतिरिक्त 20,000-30,000 रुपये मिल सकते हैं।
बिक्री और वैल्यू एडिशन
दुम्बा को स्थानीय पशु मंडियों, eNAM, या होटलों में बेचें। बकरीद और त्योहारों में इसकी कीमत 20-30% अधिक होती है। मांस को पैकेजिंग करके निर्यात करें। ऊन से कालीन और कपड़े बनाकर मुनाफा बढ़ाएं। दुम्बा पालन की सफलता की कहानियां, टिप्स, और मांस की रेसिपी शेयर करें। FPO बनाकर सामूहिक बिक्री करें।
दुम्बा बकरी पालन भारत के पशुपालकों के लिए मांस, ऊन, और मुनाफे का खजाना है। यह कम लागत में शुरू होने वाला व्यवसाय आपके गाँव की अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगा। चाहे आप मांस बेचें, ऊन का व्यापार करें, या खाद बनाएं, यह आपकी आय दोगुनी करेगा। आज ही अपने नजदीकी पशु चिकित्सक से संपर्क करें, स्वस्थ दुम्बा खरीदें, और वैज्ञानिक पालन शुरू करें। यह आपके परिवार और गाँव की समृद्धि का आधार बनेगा।
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