आलू की अगेती खेती: उत्तर भारत के किसानों के लिए सितंबर का महीना आलू की अगेती खेती शुरू करने का सुनहरा मौका है। उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा और उत्तराखंड जैसे राज्यों में सितंबर के आखिरी हफ्ते से अक्टूबर के पहले हफ्ते तक अगेती आलू की बुवाई सबसे अच्छी रहती है। इस समय बुवाई करने से फसल 60-70 दिन में तैयार हो जाती है, जिससे बाज़ार में शुरुआती दाम अच्छे मिलते हैं।
अगर आप थोड़ा देर से बोना चाहें, तो अक्टूबर के मध्य से नवंबर तक मुख्य फसल की बुवाई हो सकती है। कुछ किसान नवंबर के आखिरी हफ्ते तक भी बुवाई करते हैं, लेकिन अगेती खेती का फायदा ज़्यादा मुनाफा देता है। दक्षिण भारत या पहाड़ी इलाकों में मार्च-अप्रैल और सितंबर-अक्टूबर में दो बार बुवाई की जा सकती है।
मिट्टी और मौसम का सही चयन
आलू की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे बढ़िया होती है। यह मिट्टी हल्की और भुरभुरी होती है, जिसमें पानी का निकास अच्छा रहता है। मिट्टी में जैविक खाद, जैसे गोबर की खाद, की अच्छी मात्रा होनी चाहिए। मिट्टी की जांच करवाएं और सुनिश्चित करें कि उसका पीएच मान 5.2 से 6.4 के बीच हो। अगर मिट्टी बहुत अम्लीय या क्षारीय है, तो कृषि विशेषज्ञ की सलाह लें। आलू के लिए ठंडा और मध्यम मौसम सबसे अच्छा है।
सितंबर से मार्च तक का समय, जब रातें लंबी और दिन छोटे होते हैं, आलू की वृद्धि के लिए आदर्श है। पौधों के बढ़ने के लिए 15-25 डिग्री सेल्सियस तापमान चाहिए, जबकि अंकुरण के लिए 25 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान ठीक रहता है।
अच्छे बीज का चयन करें
अच्छी फसल के लिए बीज की गुणवत्ता बहुत मायने रखती है। 30 से 50 ग्राम वजन के स्वस्थ और रोगमुक्त आलू के कंद चुनें। कंद पर 2-3 अंकुर होने चाहिए, ताकि पौधा जल्दी और मजबूती से बढ़े। उन्नत किस्में, जैसे कुफरी चंद्रमुखी, कुफरी अशोका, या कुफरी पुखराज, अगेती खेती के लिए बढ़िया हैं। ये किस्में कम समय में अच्छी पैदावार देती हैं। बीज खरीदते समय विश्वसनीय जगह, जैसे सरकारी बीज केंद्र या कृषि विज्ञान केंद्र, से लें।
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खेत की तैयारी का सही तरीका
खेत को तैयार करना आलू की खेती का पहला और ज़रूरी कदम है। सबसे पहले खेत की गहरी जुताई करें, ताकि मिट्टी पलट जाए और पुरानी फसल के अवशेष निकल जाएं। इसके बाद दो बार देसी हल या हैरो से जुताई करें। अगर मिट्टी में ढेले हैं, तो उसे भुरभुरा करने के लिए सरवन का इस्तेमाल करें। बुवाई से पहले खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए। प्रति हेक्टेयर 2.5 से 3 क्विंटल गोबर की खाद डालें। रासायनिक खाद का इस्तेमाल कृषि विशेषज्ञ की सलाह से करें, ताकि मिट्टी की उर्वरता बनी रहे।
पौधों की दूरी और देखभाल
आलू के पौधों को सही जगह देना ज़रूरी है। दो पौधों के बीच 10 सेंटीमीटर और दो कतारों के बीच 50-60 सेंटीमीटर की दूरी रखें। इससे कंदों को बढ़ने के लिए पर्याप्त जगह मिलती है और पौधे स्वस्थ रहते हैं। बुवाई के बाद नियमित रूप से खेत की निगरानी करें। अगर खरपतवार दिखें, तो उन्हें समय पर हटाएं। पानी की कमी न हो, लेकिन जलभराव से बचें, क्योंकि ज़्यादा पानी कंदों को सड़ा सकता है। कीटों और रोगों से बचाव के लिए जैविक कीटनाशक या विशेषज्ञ की सलाह लें।
अगेती खेती से मुनाफा
सितंबर में अगेती आलू की खेती करने से किसानों को बाज़ार में जल्दी फसल बेचने का मौका मिलता है। इस समय मांग ज़्यादा और सप्लाई कम होती है, जिससे अच्छे दाम मिलते हैं। अगर आप सही समय पर बुवाई, अच्छे बीज, और सही देखभाल करें, तो 60-70 दिन में बलुई मिट्टी से बंपर पैदावार ले सकते हैं। यह न सिर्फ आय बढ़ाता है, बल्कि अगली फसल के लिए खेत को भी जल्दी तैयार करने में मदद करता है।
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