Ethanol Production: भारत में एथेनॉल उत्पादन तेज़ी से बढ़ रहा है और इसके लिए मक्का एक बड़ा कच्चा माल बन गया है। इस साल 2025 में एथेनॉल बनाने के लिए करीब 110 लाख टन मक्के की जरूरत पड़ सकती है। ऐसे में मक्के की खेती को बढ़ावा देने की तैयारी जोर-शोर से चल रही है। सरकार का लक्ष्य है कि 2025-26 तक पेट्रोल में 20% एथेनॉल ब्लेंडिंग का सपना पूरा हो। इसके लिए मक्के का उत्पादन बढ़ाना जरूरी है, जिससे किसानों को अच्छी कीमत मिले और उनकी आमदनी में इजाफा हो। आइए जानते हैं कि मक्के की खेती और एथेनॉल उत्पादन से क्या-क्या फायदे हैं।
मक्का: एथेनॉल का नया सितारा
मक्का एक ऐसी फसल है, जो करीब 1000 उत्पादों के लिए कच्चे माल का काम करती है। पहले इसका ज्यादातर इस्तेमाल पोल्ट्री फीड, स्टार्च और कुछ औद्योगिक कामों में होता था। लेकिन अब एथेनॉल बनाने में इसकी वैल्यू आसमान छू रही है। दुनिया में मक्के का 80% उत्पादन फीड, स्टार्च और जैव ईंधन उद्योगों में जाता है। भारत में कुल मक्के का 47% हिस्सा पोल्ट्री फीड में खप जाता है, लेकिन अब एथेनॉल के लिए इसकी माँग तेज़ी से बढ़ी है। भारत दुनियाभर के मक्के का सिर्फ 2% हिस्सा पैदा करता है, लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। इस साल एथेनॉल के लिए 110 लाख टन मक्के की जरूरत से किसानों को अच्छे दाम मिलने की उम्मीद है।
एथेनॉल के लिए मक्के की कितनी जरूरत?
मक्के से एथेनॉल बनाने वाली डिस्टिलरियों को 431 करोड़ लीटर एथेनॉल सप्लाई करने का ऑर्डर मिला है, जिसके लिए 110 लाख टन से ज्यादा मक्के की जरूरत होगी। चालू सीजन में 306 करोड़ लीटर एथेनॉल के लिए 80 लाख टन मक्का लगेगा। टूटे चावल की कीमतें ज्यादा होने और उपलब्धता कम होने की वजह से डिस्टिलर मक्के को तरजीह दे रहे हैं। इससे पोल्ट्री फीड कंपनियों पर दबाव बढ़ा है, लेकिन किसानों के लिए ये फायदे की बात है। अभी मक्के की MSP 2,225 रुपये प्रति क्विंटल है, जबकि बाज़ार में इसका दाम 2300 से 2500 रुपये प्रति क्विंटल के बीच चल रहा है। एथेनॉल की माँग बढ़ने से किसानों को और बेहतर कीमत मिल सकती है।
मक्के की खेती को बढ़ावा: IIMR का प्रोजेक्ट
एथेनॉल उत्पादन को रफ्तार देने के लिए भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान (IIMR) ने एक खास प्रोजेक्ट शुरू किया है, जिसका नाम है ‘एथेनॉल उद्योगों के जलग्रहण क्षेत्र में मक्का उत्पादन में वृद्धि’। IIMR के निदेशक डॉ. हनुमान सहाय जाट बताते हैं कि इस प्रोजेक्ट में अच्छी किस्मों के मक्के की बुवाई करवाई जा रही है। किसानों को मक्के की खेती के फायदे समझाए जा रहे हैं। 2025-26 तक 20% एथेनॉल ब्लेंडिंग का लक्ष्य पूरा करने के लिए मक्के का उत्पादन बढ़ाना होगा। इसके लिए अच्छे बीज और वैज्ञानिक तरीके से खेती जरूरी है।
वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एसएल जाट कहते हैं कि मक्के का उत्पादन बढ़ाने के लिए न सिर्फ खेती का एरिया बढ़ाना होगा, बल्कि हाइब्रिड बीजों पर भी जोर देना होगा। खरपतवार और बीमारियों से बचाव के लिए सही मैनेजमेंट भी जरूरी है।
खरीफ में मक्के की बुवाई: कब और कैसे करें?
भारत में लगभग 75% मक्का खरीफ मौसम में उगाया जाता है। खेत की तैयारी जून के पहले हफ्ते से शुरू कर देनी चाहिए। खरीफ फसल के लिए 15-20 सेमी गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें। अगर खेत गर्मियों में खाली पड़ा हो, तो गर्मियों में जुताई करना बेहतर है। इससे खरपतवार, कीट और बीमारियाँ कम होती हैं। खेत की नमी बचाने के लिए जुताई के बाद तुरंत पाटा लगाएँ। जुताई का मकसद मिट्टी को भुरभुरी बनाना है। अगर नई तकनीक जैसे शून्य जुताई इस्तेमाल नहीं कर रहे, तो कल्टीवेटर और डिस्क हैरो से खेत अच्छे से तैयार करें। बुवाई से पहले बीज उपचार जरूर करें, ताकि फसल स्वस्थ रहे।
मक्के की खास किस्में
एथेनॉल उत्पादन में क्रांति लाने के लिए मक्के की नई किस्में तैयार की जा रही हैं। अब इन किस्मों में 42% एथेनॉल रिकवरी स्तर होगा, जो पहले से ज्यादा है। एक और बड़ा फैसला लिया गया है कि नए मक्का बीज को रिलीज़ करने से पहले उनकी एथेनॉल सामग्री का ज़िक्र करना होगा। पहले ये जरूरी नहीं था, लेकिन अब ये नियम लागू होगा। इससे एथेनॉल उद्योग को सही कच्चा माल मिलेगा और किसानों को भी फायदा होगा।
किसानों के लिए फायदे और चुनौतियाँ
मक्के की खेती से किसानों को कई फायदे हैं। एथेनॉल की माँग बढ़ने से मक्के का दाम MSP से ऊपर जा रहा है। अभी बाज़ार में 2300-2500 रुपये प्रति क्विंटल मिल रहा है। मक्के की खेती में ज्यादा देखभाल की जरूरत नहीं। सही समय पर बुवाई और हल्की मैनेजमेंट से काम चल जाता है। हाइब्रिड तकनीक से उत्पादन बढ़ेगा, जिससे किसानों की आमदनी में इजाफा होगा। मक्का पोल्ट्री फीड और एथेनॉल दोनों के लिए इस्तेमाल हो रहा है, जिससे इसकी डिमांड बनी रहेगी। लेकिन चुनौतियाँ भी हैं।
एथेनॉल के लिए इतनी बड़ी माँग को पूरा करने के लिए उत्पादन बढ़ाना ज़रूरी है। इसके लिए खेती का क्षेत्र बढ़ाना होगा। हाइब्रिड और अच्छी किस्म के बीज उपलब्ध कराने होंगे। खरपतवार और बीमारियों से बचाव के लिए ट्रेनिंग देनी होगी। MSP और बाज़ार कीमत का सही तालमेल बनाना होगा।
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