Pusa-4 Ladyfinger Variety: उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के मुजेहना विकासखंड में बसा है सोहेली गाँव। यहाँ के शेषराम शुक्ला ने अपनी मेहनत से खेती को नया रंग दिया है। सिर्फ आठवीं तक पढ़े शेषराम आज भिंडी की खेती से लाखों रुपये कमा रहे हैं। उनकी कहानी हर उस किसान भाई के लिए प्रेरणा है, जो कम जमीन में ज्यादा मुनाफा कमाना चाहता है। शेषराम ने पुराने ढर्रे की खेती को छोड़कर भिंडी की खेती अपनाई और कामयाबी की नई मिसाल कायम की। आइए जानते हैं कि कैसे उन्होंने अपने खेतों को सोना उगलने वाला बनाया।
नई सोच का कमाल
शेषराम का खेती से लगाव बचपन से था। पढ़ाई में मन कम लगा, तो आठवीं के बाद खेत-खलिहान ही उनका ठिकाना बन गया। पहले वो गेहूँ और धान जैसी आम फसलें उगाते थे, लेकिन मुनाफा कम था। फिर पानी संस्थान के कुछ लोगों से उनकी बात हुई। इन लोगों ने भिंडी की खेती का सुझाव दिया। शेषराम ने सोचा, कुछ नया करके देखते हैं। बस, यहीं से उनकी जिंदगी बदल गई। उन्होंने डेढ़ बीघा जमीन में भिंडी की खेती शुरू की और आज उनकी कमाई देखकर गाँव वाले हैरान हैं।
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कम लागत में बंपर मुनाफा
शेषराम ने पूसा-4 भिंडी की किस्म चुनी, जो गुणवत्ता और उपज में शानदार है। डेढ़ बीघा में खेती शुरू करने में सिर्फ 1500 रुपये का खर्च आया। फसल मार्च में बोई जाती है और 7 से 8 महीने तक चलती है। इस दौरान हर दिन 1000 से 1200 रुपये की कमाई हो रही है। साल भर में उनकी कमाई लाखों तक पहुँच जाती है। शेषराम बताते हैं कि इस फसल की देखभाल आसान है। हफ्ते में एक बार सिंचाई काफी है, और खरपतवार हटाने से पौधे को पूरा पोषण मिलता है। कम खर्च में इतना मुनाफा देखकर गाँव के दूसरे किसान भी भिंडी की खेती की ओर बढ़ रहे हैं।
पूसा-4: भिंडी की खास किस्म
पूसा-4 भिंडी की किस्म की खासियत है कि यह जल्दी तैयार होती है और रोगों से कम प्रभावित होती है। इसकी सब्जी नरम और स्वादिष्ट होती है, जिसकी बाजार में अच्छी माँग है। शेषराम के खेतों में यह भिंडी लंबी और चमकदार उगती है, जो ग्राहकों को खूब पसंद आती है। इसकी उपज इतनी अच्छी है कि बाजार में हमेशा ऊँची कीमत मिलती है। कम पानी और कम देखभाल में यह किस्म बंपर फसल देती है, जो छोटे किसानों के लिए वरदान है।
भिंडी की खेती के आसान टिप्स
अगर आप भी भिंडी की खेती करना चाहते हैं, तो कुछ बातें ध्यान रखें। पूसा-4 जैसे अच्छे बीज चुनें। मार्च में बुवाई करें, ताकि गर्मी शुरू होने से पहले पौधे मजबूत हो जाएँ। बीज को 12 घंटे पानी में भिगोएँ, इससे अंकुरण तेजी से होता है। एक बीघा में 2-3 किलो बीज काफी है। खेत को जोतकर खरपतवार हटाएँ और गोबर की खाद डालें। हफ्ते में एक बार सिंचाई करें, लेकिन पानी ज्यादा ना रुके। मिट्टी की जाँच करवाएँ और जरूरत हो तो जैविक खाद डालें। इससे फसल स्वस्थ रहेगी और खर्चा भी कम होगा।
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