भारतीय रसोई में दाल और खाद्य तेल का महत्व हर कोई जानता है। गाँव के घरों से लेकर शहरों तक, दाल-रोटी और तेल में बनी सब्जी हर थाली का हिस्सा है। लेकिन इनकी बढ़ती कीमतें न सिर्फ घर का बजट बिगाड़ती हैं, बल्कि किसानों के लिए भी चुनौती बनती हैं। भारत को अभी भी दालों और खाद्य तेलों के लिए विदेशों पर निर्भर रहना पड़ता है। सरकार इस निर्भरता को कम करने और किसानों की कमाई बढ़ाने के लिए कई कदम उठा रही है। न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में बढ़ोतरी, मिनीकिट वितरण और नई योजनाओं के जरिए किसानों को दाल और तेल की फसलों की खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।
MSP में बढ़ोतरी
केंद्र सरकार ने हाल ही में खरीफ फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी की है, जिसमें दाल और तेल की फसलों पर खास ध्यान दिया गया है। पिछले एक दशक में अरहर की MSP में 86 फीसदी, तिल में 119 फीसदी और नाइजर सीड में 172 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। मूंग, उड़द, मूंगफली, सूरजमुखी और सोयाबीन जैसी फसलों की MSP भी 81 से 109 फीसदी तक बढ़ी है।
इसका मतलब है कि अब इन फसलों को उगाने पर किसानों को पहले से ज्यादा कीमत मिलेगी। यह बढ़ोतरी किसानों को धान और गेहूं जैसी फसलों के अलावा दाल और तेल की खेती की ओर आकर्षित करने का एक बड़ा कदम है। इससे न सिर्फ कमाई बढ़ेगी, बल्कि खेत की मिट्टी भी स्वस्थ रहेगी।
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मिनीकिट और जागरूकता
सरकार किसानों को दाल और तेल की खेती के लिए प्रोत्साहित करने के लिए मुफ्त मिनीकिट बांट रही है। इन मिनीकिट में अरहर, उड़द, मूंग, तिल और मूंगफली जैसे उन्नत बीज शामिल हैं। ये बीज अच्छी पैदावार देने वाले और रोगों से लड़ने में सक्षम होते हैं। साथ ही, विकसित कृषि संकल्प अभियान के तहत किसानों को नई और वैज्ञानिक खेती के तरीकों की जानकारी दी जा रही है।
मिसाल के तौर पर, किसानों को बताया जा रहा है कि मिट्टी की जांच और सही समय पर बीजों का उपचार कैसे उनकी फसल को रोगमुक्त रख सकता है। यह सब किसानों के लिए कम लागत में ज्यादा मुनाफे का रास्ता खोल रहा है।
दलहन और तिलहन मिशन: आत्मनिर्भरता की ओर कदम
केंद्र सरकार की दाल और तेल मिशन योजनाएं किसानों के लिए बड़ा सहारा बन रही हैं। इन योजनाओं का मकसद है कि भारत अपनी दाल और खाद्य तेल की जरूरतों को पूरा करने के लिए विदेशों पर कम निर्भर रहे। दाल मिशन के तहत अरहर, मूंग और उड़द जैसी फसलों की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। वहीं, तिलहन मिशन में मूंगफली, सोयाबीन और तिल जैसी फसलों पर जोर है। सरकार ने इसके लिए करोड़ों रुपये का बजट रखा है, ताकि किसानों को अच्छे बीज, खाद और तकनीक मिल सके। कुछ राज्यों में इन फसलों को ‘एक जिला, एक उत्पाद’ योजना में भी शामिल किया गया है, जिससे स्थानीय स्तर पर खेती और बिक्री को बढ़ावा मिल रहा है।
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पिछले आठ सालों में कितना बढ़ा उत्पादन
पिछले कुछ सालों में दाल और तेल की फसलों का उत्पादन बढ़ाने में अच्छी कामयाबी मिली है। आंकड़ों के मुताबिक, 2016-17 में तिलहन का उत्पादन करीब 12 लाख मीट्रिक टन था, जो 2023-24 में बढ़कर 20 लाख मीट्रिक टन से ज्यादा हो गया। यानी तिलहन की पैदावार में 128 फीसदी का उछाल आया है। दालों की खेती में भी अच्छी प्रगति हुई है। सरकार की योजनाएं, जैसे विश्वबैंक की मदद से चल रही परियोजनाएं, खेतों का रकबा और पैदावार बढ़ाने में मदद कर रही हैं। खासकर पूर्वी और दक्षिणी भारत के गाँवों में इन फसलों को बढ़ावा देने के लिए खास योजनाएं चल रही हैं।
एक दशक में MSP में वृद्धि (प्रति कुंतल कीमत और प्रतिशत)
फसल | वर्तमान MSP (₹/कुंतल) | वृद्धि (%) |
---|---|---|
अरहर | ₹8000 | 86% |
मूंग | ₹8768 | 95% |
उड़द | ₹7800 | 81% |
मूंगफली | ₹7263 | 82% |
सूरजमुखी | ₹7721 | 109% |
सोयाबीन | ₹5328 | 108% |
तिल | ₹9846 | 119% |
नाइजर सीड | ₹9537 | 172% |
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